ठाकुर असनी दूसरे

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
सारा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:07, 11 अगस्त 2011 का अवतरण ('ठाकुर असनी दूसरे ऋषिनाथ कवि के पुत्र और [[से...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

ठाकुर असनी दूसरे ऋषिनाथ कवि के पुत्र और सेवक कवि के पितामह थे। सेवक के भतीजे श्रीकृष्ण ने अपने पूर्वजों का जो वर्णन लिखा है, उसके अनुसार ऋषिनाथ जी के पूर्वज देवकीनंदन मिश्र गोरखपुर जिले के एक कुलीन सरयूपारी ब्राह्मण, पयासी के मिश्र थे , और अच्छी कविता करते थे। एक बार मँझौली के राजा के यहाँ विवाह के अवसर पर देवकीनंदन जी ने भाटों की तरह कुछ कवित्त पढ़े और पुरस्कार लिया। इस पर उनके भाई-बन्धुओं ने उन्हें जातिच्युत कर दिया और वे असनी के भाट नरहर कवि की कन्या के साथ अपना विवाह करके असनी में जा रहे और भाट हो गए। उन्हीं देवकीनंदन के वंश में ठाकुर के पिता ऋषिनाथ कवि हुए।

रचनाएँ

ठाकुर ने संवत् 1861 में 'सतसई बरनार्थ' नाम की 'बिहारी सतसई' की एक टीका (देवकीनंदन टीका) बनाई। अत: इनका कविताकाल संवत् 1860 के इधर उधर माना जा सकता है। ये काशिराज के संबंधी काशी के नामी रईस[1] बाबू देवकीनंदन के आश्रित थे। इनका विशेष वृत्तांत स्व. पं.अंबिकादत्त व्यास ने अपने 'बिहारी बिहार' की भूमिका में दिया है। ये ठाकुर भी बड़ी सरस कविता करते थे। इनके पद्यों में भाव या दृश्य का निर्वाह अबाध रूप में पाया जाता है। -

कारे लाज करहे पलासन के पुंज तिन्हैं
अपने झकोरन झुलावन लगी है री।
ताही को ससेटी तृन पत्रन लपेटी धारा ,
धाम तैं अकास धूरि धावन लगी है री
ठाकुर कहत सुचि सौरभ प्रकाशन मों
आछी भाँति रुचि उपजावन लगी है री।
ताती सीरी बैहर बियोग वा संयोगवारी,
आवनि बसंत की जनावन लगी है री

प्रात झुकामुकि भेष छपाय कै गागर लै घर तें निकरी ती।
जानि परी न कितीक अबार है, जाय परी जहँ होरी धारी ती
ठाकुर दौरि परे मोहिं देखि कै, भागि बची री, बड़ी सुघरी ती।
बीर की सौं जो किवार न देऊँ तौ मैं होरिहारन हाथ परी ती॥



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जिनकी हवेली अब तक प्रसिद्ध है

आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 265।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख