एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"।

"तेरा मेरा मनुवां -कबीर" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Kabirdas-2.jpg |...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो (Text replace - "गुरू " to "गुरु ")
 
पंक्ति 42: पंक्ति 42:
 
तू तो रंगी फिरै बिहंगी, सब धन डारा खोई रे ॥
 
तू तो रंगी फिरै बिहंगी, सब धन डारा खोई रे ॥
  
सतगुरू धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे ।
+
सतगुरु धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे ।
 
कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे ॥  
 
कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे ॥  
 
</poem>
 
</poem>

14:39, 16 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

तेरा मेरा मनुवां -कबीर
संत कबीरदास
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे ।

मै कहता हौं आँखन देखी, तू कहता कागद की लेखी ।
मै कहता सुरझावन हारी, तू राख्यो अरुझाई रे ॥

मै कहता तू जागत रहियो, तू जाता है सोई रे ।
मै कहता निरमोही रहियो, तू जाता है मोहि रे ॥

जुगन-जुगन समझावत हारा, कहा न मानत कोई रे ।
तू तो रंगी फिरै बिहंगी, सब धन डारा खोई रे ॥

सतगुरु धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे ॥









संबंधित लेख