"विजयी के सदृश जियो रे -रामधारी सिंह दिनकर" के अवतरणों में अंतर
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स्वातंत्र्य जाति की लगन व्यक्ति की धुन है | स्वातंत्र्य जाति की लगन व्यक्ति की धुन है | ||
बाहरी वस्तु यह नहीं भीतरी गुण है | बाहरी वस्तु यह नहीं भीतरी गुण है | ||
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वीरत्व छोड़ पर का मत चरण गहो रे | वीरत्व छोड़ पर का मत चरण गहो रे | ||
जो पड़े आन खुद ही सब आग सहो रे! | जो पड़े आन खुद ही सब आग सहो रे! | ||
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जब कभी अहम पर नियति चोट देती है | जब कभी अहम पर नियति चोट देती है | ||
कुछ चीज़ अहम से बड़ी जन्म लेती है | कुछ चीज़ अहम से बड़ी जन्म लेती है | ||
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नर पर जब भी भीषण विपत्ति आती है | नर पर जब भी भीषण विपत्ति आती है | ||
वह उसे और दुर्धुर्ष बना जाती है | वह उसे और दुर्धुर्ष बना जाती है | ||
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चोटें खाकर बिफरो, कुछ अधिक तनो रे | चोटें खाकर बिफरो, कुछ अधिक तनो रे | ||
धधको स्फुलिंग में बढ़ अंगार बनो रे! | धधको स्फुलिंग में बढ़ अंगार बनो रे! | ||
पंक्ति 79: | पंक्ति 78: | ||
उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है | उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है | ||
सुख नहीं धर्म भी नहीं, न तो दर्शन है | सुख नहीं धर्म भी नहीं, न तो दर्शन है | ||
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विज्ञान ज्ञान बल नहीं, न तो चिंतन है | विज्ञान ज्ञान बल नहीं, न तो चिंतन है | ||
जीवन का अंतिम ध्येय स्वयं जीवन है | जीवन का अंतिम ध्येय स्वयं जीवन है | ||
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सबसे स्वतंत्र रस जो भी अनघ पियेगा | सबसे स्वतंत्र रस जो भी अनघ पियेगा | ||
पूरा जीवन केवल वह वीर जियेगा! | पूरा जीवन केवल वह वीर जियेगा! |
09:49, 23 अगस्त 2011 का अवतरण
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वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा संभालो |
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