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'''शाकंभरी''' या वर्तमान सांभर ज़िला, [[जयपुर]] ([[राजस्थान]]) में [[सीकर]] के निकट स्थित है। यह शाकंभरी देवी के नाम पर प्रसिद्ध स्थान है। 12शती के अन्तिम चरण में सांभर के प्रदेश में [[चौहान वंश|चौहान]] [[राजपूत|राजपूतों]] का राज्य था। [[अर्णोराज|अर्णोराज चौहान]] यहां के प्रतापी राजा थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=893|url=}}</ref>
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'''शाकंभरी''' या वर्तमान सांभर ज़िला, [[जयपुर]] ([[राजस्थान]]) में [[सीकर]] के निकट स्थित है। यह [[शाकम्भरी देवी|शाकंभरी देवी]] के नाम पर प्रसिद्ध स्थान है। 12शती के अन्तिम चरण में सांभर के प्रदेश में [[चौहान वंश|चौहान]] [[राजपूत|राजपूतों]] का राज्य था। [[अर्णोराज|अर्णोराज चौहान]] यहां के प्रतापी राजा थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=893|url=}}</ref>
  
 
*[[राजस्थान]] का यह ऐतिहासिक स्थान देवी शाकंभरी के नाम पर प्रसिद्ध है। इसका उल्लेख [[महाभारत]], [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] के तीर्थयात्रा प्रसंग में है-
 
*[[राजस्थान]] का यह ऐतिहासिक स्थान देवी शाकंभरी के नाम पर प्रसिद्ध है। इसका उल्लेख [[महाभारत]], [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] के तीर्थयात्रा प्रसंग में है-
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*शाकंभरी या वर्तमान सांभर ज़िला, [[जयपुर]] ([[राजस्थान]]) में [[सीकर]] के निकट स्थित है।
 
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*[[सांभर झील जयपुर|सांभर झील]] जो पास ही में स्थित है, शाकंभरी देवी के नाम पर ही प्रसिद्ध है। यहां शाकंभरी का प्राचीन मंदिर भी है।
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*[[सांभर झील जयपुर|सांभर झील]] जो पास ही में स्थित है, [[शाकम्भरी देवी|शाकंभरी देवी]] के नाम पर ही प्रसिद्ध है। यहां शाकंभरी का प्राचीन मंदिर भी है।
 
*12शती के अन्तिम चरण में सांभर के प्रदेश में [[चौहान वंश|चौहानों]] का राज्य था। [[अर्णोराज]] यहां के प्रतापी राजा थे। इनकी रानी देवलदेवी [[गुजरात]] के राजा कुमारपाल की बहन थीं। एक छोटी-सी बात पर रुष्ट होकर कुमारपाल ने अर्णोराज पर आक्रमण कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप अर्णोराज को कैद कर लिया गया। किंतु उनके मंत्री उदयमहता और देवलदेवी के प्रयत्न से वे छूट गये और अंत में शाकंभरी नरेश ने अपनी कन्या मीनलकुमारी का [[विवाह]] कुमारपाल के साथ कर दिया।
 
*12शती के अन्तिम चरण में सांभर के प्रदेश में [[चौहान वंश|चौहानों]] का राज्य था। [[अर्णोराज]] यहां के प्रतापी राजा थे। इनकी रानी देवलदेवी [[गुजरात]] के राजा कुमारपाल की बहन थीं। एक छोटी-सी बात पर रुष्ट होकर कुमारपाल ने अर्णोराज पर आक्रमण कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप अर्णोराज को कैद कर लिया गया। किंतु उनके मंत्री उदयमहता और देवलदेवी के प्रयत्न से वे छूट गये और अंत में शाकंभरी नरेश ने अपनी कन्या मीनलकुमारी का [[विवाह]] कुमारपाल के साथ कर दिया।
  

09:01, 18 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

शाकंभरी या वर्तमान सांभर ज़िला, जयपुर (राजस्थान) में सीकर के निकट स्थित है। यह शाकंभरी देवी के नाम पर प्रसिद्ध स्थान है। 12शती के अन्तिम चरण में सांभर के प्रदेश में चौहान राजपूतों का राज्य था। अर्णोराज चौहान यहां के प्रतापी राजा थे।[1]

  • राजस्थान का यह ऐतिहासिक स्थान देवी शाकंभरी के नाम पर प्रसिद्ध है। इसका उल्लेख महाभारत, वनपर्व के तीर्थयात्रा प्रसंग में है-

'ततो गच्छेत् राजेन्द्र देव्याः स्थानं सुदुर्लभम, शाकम्भरीति विख्याता त्रिषु लोकेषु विश्रुता।'[2]

  • इसके बाद शाकंभरी देवी के नाम का कारण इस प्रकार बताया गया है-

'दिव्यं वर्षसहस्त्रं हि शाकेन किल सुब्रता, आहारं सकृत्वती मासि मासि नराधिप, ऋषयोऽभ्यागता स्तत्र देव्या भक्त्या तपोधनाः, आतिथ्यं च कृतं तेषां शाकेन किल भारत ततः शाकम्भरीत्येवनाम तस्याः प्रतिष्ठम्।'[3]

  • शाकंभरी या वर्तमान सांभर ज़िला, जयपुर (राजस्थान) में सीकर के निकट स्थित है।
  • सांभर झील जो पास ही में स्थित है, शाकंभरी देवी के नाम पर ही प्रसिद्ध है। यहां शाकंभरी का प्राचीन मंदिर भी है।
  • 12शती के अन्तिम चरण में सांभर के प्रदेश में चौहानों का राज्य था। अर्णोराज यहां के प्रतापी राजा थे। इनकी रानी देवलदेवी गुजरात के राजा कुमारपाल की बहन थीं। एक छोटी-सी बात पर रुष्ट होकर कुमारपाल ने अर्णोराज पर आक्रमण कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप अर्णोराज को कैद कर लिया गया। किंतु उनके मंत्री उदयमहता और देवलदेवी के प्रयत्न से वे छूट गये और अंत में शाकंभरी नरेश ने अपनी कन्या मीनलकुमारी का विवाह कुमारपाल के साथ कर दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 893 |
  2. महाभारत, वनपर्व 84,13
  3. महाभारत, वनपर्व 84,14-15-16

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