चिड़िया -आरसी प्रसाद सिंह

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चिड़िया -आरसी प्रसाद सिंह
आरसी प्रसाद सिंह
कवि आरसी प्रसाद सिंह
जन्म 19 अगस्त 1911
जन्म स्थान एरौत गाँव, बिहार
मृत्यु 15 नवंबर 1996
मुख्य रचनाएँ नन्ददास, रजनीगंधा
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
आरसी प्रसाद सिंह की रचनाएँ

पीपल की ऊँची डाली पर बैठी चिड़िया गाती है ।
तुम्हें ज्ञात अपनी बोली में क्या संदेश सुनाती है ?

चिड़िया बैठी प्रेम-प्रीति की रीति हमें सिखलाती है ।
वह जग के बंदी मानव को मुक्ति-मंत्र बतलाती है ।

वन में जितने पंछी हैं- खंजन, कपोत, चातक, कोकिल,
काक, हंस, शुक, आदि वास करते सब आपस में हिलमिल ।

सब मिल-जुलकर रहते हैं वे, सब मिल-जुलकर खाते हैं ।
आसमान ही उनका घर है, जहाँ चाहते, जाते हैं ।

रहते जहाँ, वहीं वे अपनी दुनिया एक बनाते हैं ।
दिनभर करते काम रात में पेड़ों पर सो जाते हैं ।

उनके मन में लोभ नहीं है, पाप नहीं, परवाह नहीं ।
जग का सारा माल हड़पकर जीने की भी चाह नहीं ।

जो मिलता है, अपने श्रम से उतना भर ले लेते हैं ।
बच जाता तो औरों के हित, उसे छोड़ वे देते हैं ।

सीमा-हीन गगन में उड़ते निर्भय विचरण करते हैं ।
नहीं कमाई से औरों की अपना घर वे भरते हैं ।

वे कहते हैं-- मानव, सीखो तुम हमसे जीना जग में ।
हम स्वच्छंद, और क्यों तुमने डाली है बेड़ी पग में ?

तुम देखो हमको, फिर अपनी सोने की कड़ियाँ तोड़ो ।
ओ मानव, तुम मानवता से द्रोह भावना को छोड़ो ।

पीपल की डाली पर चिड़िया यही सुनाने आती है ।
बैठ घड़ीभर, हमें चकित कर, गाकर फिर उड़ जाती है ।

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