जदों ज़ाहिर होए नूर होरी -बुल्ले शाह
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कवि
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बुल्ले शाह
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जन्म
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1680 ई.
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जन्म स्थान
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गिलानियाँ उच्च, वर्तमान पाकिस्तान
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मृत्यु
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1758 ई.
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मुख्य रचनाएँ
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बुल्ले नूँ समझावन आँईयाँ, अब हम गुम हुए, किते चोर बने किते काज़ी हो
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इन्हें भी देखें
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कवि सूची, साहित्यकार सूची
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जदों ज़ाहिर होए नूर होरी,
जल गए पहाड़ कोह तूर होरी,
तदों दार चढ़े मंसूर होरी,
ओथे शेखी मेंहडी ना तेहँडी अय
मूँह आई बात न रेहँदी अय,
जे ज़ाहिर करां इसरार ताईं।
सभ भुल जावन तकरार ताईं,
फिर मारन बुल्ले यार ताईं।
एथे मखफ़ी गल सोहेन्दी अय,
मूँह आईं बात ना रेहँदी अय।
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हिन्दी अनुवाद
परम ज्योति के प्रकाशित होने पर
तूर पर्वत जलकर भस्म हो गया।
फिर मंसूर को फाँसी मिली।
वहाँ कोई शेखी नहीं बघार सकता।
मैं बोले बिना नहीं रह सकता।
यदि मैं रहस्य खोल दूँ
तो सब अपने-अपने झगड़े भूल जाएँगे
और अपने मित्र बुल्ले को मार डालेंगे।
अतः यहाँ यही उचित है कि मैं रहस्य न खोलूँ।
मैं बोले बिना नहीं रह सकता।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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