दीन चहैं करतार जिन्हें सुख, सो तौ ’रहीम’ टरै नहिं टारे। उद्यम पौरुष कीने बिना, धन आवत आपुहिं हाथ पसारे॥ दैव हँसै अपनी अपनी, बिधि के परपंच न जात बिचारे। बेटा भयो बसुदेव के धाम औ दुंदुभि बाजत नंद के द्वारे॥