मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी -माखन लाल चतुर्वेदी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी -माखन लाल चतुर्वेदी
माखन लाल चतुर्वेदी
कवि माखन लाल चतुर्वेदी
जन्म 4 अप्रैल, 1889 ई.
जन्म स्थान बावई, मध्य प्रदेश
मृत्यु 30 जनवरी, 1968 ई.
मुख्य रचनाएँ कृष्णार्जुन युद्ध, हिमकिरीटिनी, साहित्य देवता, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा, अमीर इरादे, ग़रीब इरादे
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
माखन लाल चतुर्वेदी की रचनाएँ

मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी !
उस सीमा-रेखा पर
जिसके ओर न छोर निशानी;
मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी !

घास-पात से बनी वहीं
मेरी कुटिया मस्तानी,
कुटिया का राजा ही बन
रहता कुटिया की रानी !
मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी !

राज-मार्ग से परे, दूर, पर
पगडंडी को छू कर
अश्रु-देश के भूपति की है
बनी जहाँ रजधानी ।
मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी !

आँखों में दिलवर आता है,
सैन-नसैनी चढ़कर,
पलक बाँध पुतली में
झूले देती कस्र्ण कहानी।
मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी !

प्रीति-पिछौरी भीगा करती
पथ जोहा करती हूँ,
जहाँ गवन की सजनि
रमन के हाथों खड़ी बिकानी।
मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी !

दो प्राणों में मचे न माधव
बलि की आँख मिचौनी,
जहाँ काल से कभी चुराई
जाती नहीं जवानी।
मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी !

भोजन है उल्लास, जहाँ
आँखों का पानी, पानी!
पुतली परम बिछौना है
ओढ़नी पिया की बानी।
मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी !

प्रान-दाँव की कुंज-गली
है, गो-गन बीचों बैठी,
एक अभागिन बनी श्याम धन
बनकर राधारानी।
मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी !

सोते हैं सपने, ओ पंथी !
मत चल, मत चल, मत चल,
नजर लगे मत, मिट मत जाये
साँसों की नादानी।
मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी !

संबंधित लेख