"आत्‍मकथ्‍य -जयशंकर प्रसाद": अवतरणों में अंतर

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मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह,
मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
 
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य जीवन-इतिहास,
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्‍यंग्‍य मलिन उपहास,
 
यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्‍यंग्‍य मलिन उपहास
 
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।


तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती,
 
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही ख़ाली करने वाले,
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
 
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
 
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं,
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं।
 
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।


उज्‍ज्‍वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
उज्‍ज्‍वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की,
 
अरे खिल-खिलाकर हँसने वाली उन बातों की,
अरे खिल-खिलाकर हँसतने वाली उन बातों की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्‍वप्‍न देखकर जाग गया।
 
आलिंगन में आते-आते मुसक्‍या कर जो भाग गया,
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्‍वप्‍न देकर जाग गया।
जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्‍दर छाया में,
 
आलिंगन में आते-आते मुसक्‍या कर जो भाग गया।
 
जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्‍दर छाया में।
 
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।


उसकी स्‍मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
उसकी स्‍मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की,
 
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्‍यों मेरी कथा की?
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्‍यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
 
छोटे से जीवन की कैसे बड़े कथाएँ आज कहूँ?
 
क्‍या यह अच्‍छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
क्‍या यह अच्‍छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्‍या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्‍मकथा?
सुनकर क्‍या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्‍मकथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्‍यथा।  
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्‍यथा।  
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==संबंधित लेख==
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14:01, 6 मार्च 2012 के समय का अवतरण

आत्‍मकथ्‍य -जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद
कवि जयशंकर प्रसाद
जन्म 30 जनवरी, 1889
जन्म स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 15 नवम्बर, सन् 1937
मुख्य रचनाएँ चित्राधार, कामायनी, आँसू, लहर, झरना, एक घूँट, विशाख, अजातशत्रु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ


मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य जीवन-इतिहास,
यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्‍यंग्‍य मलिन उपहास,
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।

तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती,
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही ख़ाली करने वाले,
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं,
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।

उज्‍ज्‍वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की,
अरे खिल-खिलाकर हँसने वाली उन बातों की,
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्‍वप्‍न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्‍या कर जो भाग गया,
जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्‍दर छाया में,
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

उसकी स्‍मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की,
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्‍यों मेरी कथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्‍या यह अच्‍छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्‍या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्‍मकथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्‍यथा।

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