"आत्‍मकथ्‍य -जयशंकर प्रसाद": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
छो (Text replace - " सन " to " सन् ")
 
(4 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{| style="background:transparent; float:right"
{| style="background:transparent; float:right"  
|-
|-
|
|
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
|जन्म=[[30 जनवरी]], 1889  
|जन्म=[[30 जनवरी]], 1889  
|जन्म स्थान=[[वाराणसी]], [[उत्तर प्रदेश]]
|जन्म स्थान=[[वाराणसी]], [[उत्तर प्रदेश]]
|मृत्यु=[[15 नवम्बर]], सन 1937
|मृत्यु=[[15 नवम्बर]], सन् 1937
|मृत्यु स्थान=
|मृत्यु स्थान=
|मुख्य रचनाएँ=चित्राधार, [[कामायनी]], आँसू, लहर, झरना, एक घूँट, विशाख, [[अजातशत्रु नाटक|अजातशत्रु]]
|मुख्य रचनाएँ=चित्राधार, [[कामायनी]], [[आँसू -प्रसाद|आँसू]], लहर, झरना, एक घूँट, विशाख, [[अजातशत्रु नाटक|अजातशत्रु]]
|यू-ट्यूब लिंक=
|यू-ट्यूब लिंक=
|शीर्षक 1=
|शीर्षक 1=
पंक्ति 28: पंक्ति 28:
</div></div>
</div></div>
|}
|}
{{Poemopen}}
{{Poemopen}}
<poem>
<poem>
मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह,
मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
 
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य जीवन-इतिहास,
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्‍यंग्‍य मलिन उपहास,
 
यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्‍यंग्‍य मलिन उपहास
 
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।


तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती,
 
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही ख़ाली करने वाले,
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
 
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
 
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं,
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं।
 
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।


उज्‍ज्‍वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
उज्‍ज्‍वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की,
 
अरे खिल-खिलाकर हँसने वाली उन बातों की,
अरे खिल-खिलाकर हँसने वाली उन बातों की।
 
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्‍वप्‍न देखकर जाग गया।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्‍वप्‍न देखकर जाग गया।
 
आलिंगन में आते-आते मुसक्‍या कर जो भाग गया,
आलिंगन में आते-आते मुसक्‍या कर जो भाग गया।
जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्‍दर छाया में,
 
जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्‍दर छाया में।
 
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।


उसकी स्‍मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
उसकी स्‍मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की,
 
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्‍यों मेरी कथा की?
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्‍यों मेरी कथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्‍या यह अच्‍छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
क्‍या यह अच्‍छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्‍या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्‍मकथा?
सुनकर क्‍या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्‍मकथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्‍यथा।  
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्‍यथा।  
</poem>
</poem>
{{Poemclose}}
{{Poemclose}}
 
==संबंधित लेख==
{{भारत के कवि}}
[[Category:पद्य साहित्य]][[Category:जयशंकर प्रसाद]][[Category:कविता]][[Category:हिन्दी कविता]][[Category:काव्य कोश]]
[[Category:पद्य साहित्य]][[Category:जयशंकर प्रसाद]][[Category:कविता]][[Category:हिन्दी कविता]][[Category:काव्य कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

14:01, 6 मार्च 2012 के समय का अवतरण

आत्‍मकथ्‍य -जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद
कवि जयशंकर प्रसाद
जन्म 30 जनवरी, 1889
जन्म स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 15 नवम्बर, सन् 1937
मुख्य रचनाएँ चित्राधार, कामायनी, आँसू, लहर, झरना, एक घूँट, विशाख, अजातशत्रु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ


मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य जीवन-इतिहास,
यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्‍यंग्‍य मलिन उपहास,
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।

तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती,
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही ख़ाली करने वाले,
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं,
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।

उज्‍ज्‍वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की,
अरे खिल-खिलाकर हँसने वाली उन बातों की,
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्‍वप्‍न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्‍या कर जो भाग गया,
जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्‍दर छाया में,
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

उसकी स्‍मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की,
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्‍यों मेरी कथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्‍या यह अच्‍छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्‍या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्‍मकथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्‍यथा।

संबंधित लेख