"आत्मकथ्य -जयशंकर प्रसाद": अवतरणों में अंतर
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|जन्म=[[30 जनवरी]], 1889 | |जन्म=[[30 जनवरी]], 1889 | ||
|जन्म स्थान=[[वाराणसी]], [[उत्तर प्रदेश]] | |जन्म स्थान=[[वाराणसी]], [[उत्तर प्रदेश]] | ||
|मृत्यु=[[15 नवम्बर]], | |मृत्यु=[[15 नवम्बर]], सन् 1937 | ||
|मृत्यु स्थान= | |मृत्यु स्थान= | ||
|मुख्य रचनाएँ=चित्राधार, [[कामायनी]], आँसू, लहर, झरना, एक घूँट, विशाख, [[अजातशत्रु नाटक|अजातशत्रु]] | |मुख्य रचनाएँ=चित्राधार, [[कामायनी]], [[आँसू -प्रसाद|आँसू]], लहर, झरना, एक घूँट, विशाख, [[अजातशत्रु नाटक|अजातशत्रु]] | ||
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<poem> | <poem> | ||
मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह, | मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह, | ||
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी। | मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी। | ||
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास | इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास, | ||
यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्यंग्य मलिन उपहास | यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्यंग्य मलिन उपहास, | ||
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती। | तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती। | ||
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर | तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती, | ||
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही | किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही ख़ाली करने वाले, | ||
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले। | अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले। | ||
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ | यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं, | ||
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं। | भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं। | ||
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों | उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की, | ||
अरे खिल-खिलाकर हँसने वाली उन बातों | अरे खिल-खिलाकर हँसने वाली उन बातों की, | ||
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। | मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। | ||
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग | आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया, | ||
जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्दर छाया | जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्दर छाया में, | ||
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में। | अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में। | ||
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा | उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की, | ||
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कथा की? | सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कथा की? | ||
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ? | छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ? | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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14:01, 6 मार्च 2012 के समय का अवतरण
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मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह, |