"कृपानिवास": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
(''''कृपानिवास''' रसिक रामोपासना के एक प्रमुख आचार्य थे। ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "khoj.bharatdiscovery.org" to "bharatkhoj.org") |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
'''कृपानिवास''' रसिक रामोपासना के एक प्रमुख आचार्य थे। इन्होंने रामानुजीय वैष्णव संत आनंद विलास से दीक्षा ग्रहण की थी। कृपानिवास ने अपने शेष जीवन का अधिकांश समय [[चित्रकूट]] में व्यतीत किया था। इनकी रचनाएँ भावानात्मक तथा राग-रागनियों में गेय हैं।<ref>{{cite web |url=http:// | '''कृपानिवास''' रसिक रामोपासना के एक प्रमुख आचार्य थे। इन्होंने रामानुजीय वैष्णव संत आनंद विलास से दीक्षा ग्रहण की थी। कृपानिवास ने अपने शेष जीवन का अधिकांश समय [[चित्रकूट]] में व्यतीत किया था। इनकी रचनाएँ भावानात्मक तथा राग-रागनियों में गेय हैं।<ref>{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8|title=कृपानिवास|accessmonthday=09 अप्रैल|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
*कृपानिवास का जन्म 1750 ई. के आस-पास [[दक्षिण भारत]] में हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम 'सीतानिवास' तथा [[माता]] का नाम 'गुणशीला' था। | *कृपानिवास का जन्म 1750 ई. के आस-पास [[दक्षिण भारत]] में हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम 'सीतानिवास' तथा [[माता]] का नाम 'गुणशीला' था। |
12:21, 25 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
कृपानिवास रसिक रामोपासना के एक प्रमुख आचार्य थे। इन्होंने रामानुजीय वैष्णव संत आनंद विलास से दीक्षा ग्रहण की थी। कृपानिवास ने अपने शेष जीवन का अधिकांश समय चित्रकूट में व्यतीत किया था। इनकी रचनाएँ भावानात्मक तथा राग-रागनियों में गेय हैं।[1]
- कृपानिवास का जन्म 1750 ई. के आस-पास दक्षिण भारत में हुआ था। इनके पिता का नाम 'सीतानिवास' तथा माता का नाम 'गुणशीला' था।
- वे श्री रंग के उपासक थे। उन्होंने इन्हें बचपन ही में रामानुजीय वैष्णव संत आनंद विलास से दीक्षा दिलाई।
- पंद्रह वर्ष की अवस्था में कृपानिवास को संसार से विरक्ति हुई और वे घर त्याग कर मिथिला चले आए और रसिक भावना का आश्रय लिया।
- बाद में वे चारों धाम की पैदल यात्रा करते हुए अग्रदास के आचार्य पीठ रेवासा (जयपुर, राजस्थान) गए। वहाँ से अयोध्या आए और कुछ दिनों वहाँ रहे।
- कृपानिवास अयोध्या से वे उज्जैन गए और वहाँ कुछ काल तक रहे। तदनंतर वे चित्रकूट आए ओर शेष जीवन वहीं व्यतीत किया।
- चित्रकूट में ही स्फटिक शिला के पास कृपानिवास का देहावसान हुआ।
- 'युगलप्रिया' के अनुसार उन्होंने लगभग एक लाख छंदों की रचना की थी, किंतु इनके जो ग्रंथ उपलब्ध हैं, उनमें पच्चीस हजार से अधिक छंद नहीं हैं।
- कृपानिवास के लिखे समस्त ग्रंथ सांप्रदायिक सिद्धांत निरूपण की दृष्टि से लिखे गए है। कुछ रचनाएँ भावनात्मक भी हैं, जो विभिन्न राग-रागिनियों में गेय हैं।
|
|
|
|
|