"हल्दीघाटी": अवतरणों में अंतर
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[[राजस्थान]] के [[उदयपुर ज़िला|उदयपुर ज़िले]] से 27 मील उत्तर-पश्चिम एवं नाथद्वार से 7 मील पश्चिम में इतिहास प्रसिद्ध रणस्थली हल्दीघाटी है। यहीं सम्राट [[अकबर]] की [[मुग़ल]] सेना एवं [[महाराणा प्रताप]] तथा उनकी राजपूत सेना में [[18 जून]], 1576 को भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में प्रताप के साथ कई राजपूत योद्धाओं सहित हकीम ख़ाँ सूर भी उपस्थित था। इस युद्ध में [[राणा प्रताप]] का साथ स्थानीय [[भील|भीलों]] ने दिया, जो इस युद्ध की मुख्य बात थी। मुग़लों की ओर से [[मान सिंह]] सेना का नेतृत्व कर रहा था। | [[राजस्थान]] के [[उदयपुर ज़िला|उदयपुर ज़िले]] से 27 मील उत्तर-पश्चिम एवं नाथद्वार से 7 मील पश्चिम में इतिहास प्रसिद्ध रणस्थली हल्दीघाटी है। यहीं सम्राट [[अकबर]] की [[मुग़ल]] सेना एवं [[महाराणा प्रताप]] तथा उनकी राजपूत सेना में [[18 जून]], 1576 को भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में प्रताप के साथ कई राजपूत योद्धाओं सहित हकीम ख़ाँ सूर भी उपस्थित था। इस युद्ध में [[राणा प्रताप]] का साथ स्थानीय [[भील|भीलों]] ने दिया, जो इस युद्ध की मुख्य बात थी। मुग़लों की ओर से [[मान सिंह]] सेना का नेतृत्व कर रहा था। | ||
==हल्दीघाटी का युद्ध== | ==हल्दीघाटी का युद्ध== | ||
[[अकबर]] ने सन 1624 में मेवाड़ पर आक्रमण कर चित्तौड़ को घेर लिया, पर [[राणा उदयसिंह]] ने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की थी और प्राचीन आधाटपुर के पास [[उदयपुर]] नामक अपनी राजधानी बसाकर वहाँ चला गया था। उनके बाद [[महाराणा प्रताप]] ने भी युद्ध जारी रखा और अधीनता नहीं मानी थी। उनका हल्दीघाटी का युद्ध इतिहास प्रसिद्ध है। | [[अकबर]] ने सन 1624 में मेवाड़ पर आक्रमण कर चित्तौड़ को घेर लिया, पर [[राणा उदयसिंह]] ने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की थी और प्राचीन आधाटपुर के पास [[उदयपुर]] नामक अपनी राजधानी बसाकर वहाँ चला गया था। उनके बाद [[महाराणा प्रताप]] ने भी युद्ध जारी रखा और अधीनता नहीं मानी थी। उनका हल्दीघाटी का युद्ध इतिहास प्रसिद्ध है। इस युद्ध के बाद प्रताप की युद्ध-नीति छापामार लड़ाई की रही थी। अकबर ने कुम्भलमेर दुर्ग से भी प्रताप को खदेड़ दिया तथा मेवाड़ पर अनेक आक्रमण करवाये थे पर प्रताप ने अधीनता स्वीकार नहीं की थी। अंत में सन 1642 के बाद अकबर का ध्यान दूसरे कामों में लगे रहने के कारण प्रताप ने अपने स्थानों पर फिर अधिकार कर लिया था। सन 1654 में चावंड में उनकी मृत्यु हो गई थी। | ||
[[चित्र:Battlefield-Death-Of-Pratap-Singh-Chetak.jpg|thumb|250px|left|युद्धभूमि पर [[महाराणा प्रताप]] के चेतक (घोड़े) की मौत]] | |||
==युद्ध की समाप्ति== | ==युद्ध की समाप्ति== | ||
युद्ध राणा प्रताप के पक्ष में निर्णायक न हो सका। खुला युद्ध समाप्त हो गया था किंतु संघर्ष समाप्त नहीं हुआ था। भविष्य में संघर्षो को अंजाम देने के लिए, प्रताप एवं उसकी सेना युद्धस्थल से हटकर पहाड़ी प्रदेश में आ गयी थी। [[अकबर]] की अधीनता स्वीकार न किए जाने के कारण प्रताप के साहस एवं शौर्य की गाथाएँ तब तक गुंजित रहेंगी जब तक युद्धों का वर्णन किया जाता रहेगा। युद्ध के दौरान प्रताप का स्वामिभक्त घोड़ा चेतक घायल हो गया था। फिर भी, उसने अपने स्वामी की रक्षा की। अंत में चेतक वीरगति को प्राप्त हुआ। युद्धस्थली के समीप ही चेतक की स्मृति में स्मारक बना हुआ है। अब यहाँ पर एक संग्रहालय है। इस संग्रहालय में हल्दीघाटी के युद्ध के मैदान का एक मॉडल रखा गया है। इसके अलावा यहाँ महाराणा प्रताप से संबंधित वस्तुओं को रखा गया है। | युद्ध राणा प्रताप के पक्ष में निर्णायक न हो सका। खुला युद्ध समाप्त हो गया था किंतु संघर्ष समाप्त नहीं हुआ था। भविष्य में संघर्षो को अंजाम देने के लिए, प्रताप एवं उसकी सेना युद्धस्थल से हटकर पहाड़ी प्रदेश में आ गयी थी। [[अकबर]] की अधीनता स्वीकार न किए जाने के कारण प्रताप के साहस एवं शौर्य की गाथाएँ तब तक गुंजित रहेंगी जब तक युद्धों का वर्णन किया जाता रहेगा। युद्ध के दौरान प्रताप का स्वामिभक्त घोड़ा चेतक घायल हो गया था। फिर भी, उसने अपने स्वामी की रक्षा की। अंत में चेतक वीरगति को प्राप्त हुआ। युद्धस्थली के समीप ही चेतक की स्मृति में स्मारक बना हुआ है। अब यहाँ पर एक संग्रहालय है। इस संग्रहालय में हल्दीघाटी के युद्ध के मैदान का एक मॉडल रखा गया है। इसके अलावा यहाँ महाराणा प्रताप से संबंधित वस्तुओं को रखा गया है। |
11:32, 23 जुलाई 2011 का अवतरण

Statue Of Maharana Pratap, Haldighati, Udaipur
राजस्थान के उदयपुर ज़िले से 27 मील उत्तर-पश्चिम एवं नाथद्वार से 7 मील पश्चिम में इतिहास प्रसिद्ध रणस्थली हल्दीघाटी है। यहीं सम्राट अकबर की मुग़ल सेना एवं महाराणा प्रताप तथा उनकी राजपूत सेना में 18 जून, 1576 को भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में प्रताप के साथ कई राजपूत योद्धाओं सहित हकीम ख़ाँ सूर भी उपस्थित था। इस युद्ध में राणा प्रताप का साथ स्थानीय भीलों ने दिया, जो इस युद्ध की मुख्य बात थी। मुग़लों की ओर से मान सिंह सेना का नेतृत्व कर रहा था।
हल्दीघाटी का युद्ध
अकबर ने सन 1624 में मेवाड़ पर आक्रमण कर चित्तौड़ को घेर लिया, पर राणा उदयसिंह ने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की थी और प्राचीन आधाटपुर के पास उदयपुर नामक अपनी राजधानी बसाकर वहाँ चला गया था। उनके बाद महाराणा प्रताप ने भी युद्ध जारी रखा और अधीनता नहीं मानी थी। उनका हल्दीघाटी का युद्ध इतिहास प्रसिद्ध है। इस युद्ध के बाद प्रताप की युद्ध-नीति छापामार लड़ाई की रही थी। अकबर ने कुम्भलमेर दुर्ग से भी प्रताप को खदेड़ दिया तथा मेवाड़ पर अनेक आक्रमण करवाये थे पर प्रताप ने अधीनता स्वीकार नहीं की थी। अंत में सन 1642 के बाद अकबर का ध्यान दूसरे कामों में लगे रहने के कारण प्रताप ने अपने स्थानों पर फिर अधिकार कर लिया था। सन 1654 में चावंड में उनकी मृत्यु हो गई थी।

युद्ध की समाप्ति
युद्ध राणा प्रताप के पक्ष में निर्णायक न हो सका। खुला युद्ध समाप्त हो गया था किंतु संघर्ष समाप्त नहीं हुआ था। भविष्य में संघर्षो को अंजाम देने के लिए, प्रताप एवं उसकी सेना युद्धस्थल से हटकर पहाड़ी प्रदेश में आ गयी थी। अकबर की अधीनता स्वीकार न किए जाने के कारण प्रताप के साहस एवं शौर्य की गाथाएँ तब तक गुंजित रहेंगी जब तक युद्धों का वर्णन किया जाता रहेगा। युद्ध के दौरान प्रताप का स्वामिभक्त घोड़ा चेतक घायल हो गया था। फिर भी, उसने अपने स्वामी की रक्षा की। अंत में चेतक वीरगति को प्राप्त हुआ। युद्धस्थली के समीप ही चेतक की स्मृति में स्मारक बना हुआ है। अब यहाँ पर एक संग्रहालय है। इस संग्रहालय में हल्दीघाटी के युद्ध के मैदान का एक मॉडल रखा गया है। इसके अलावा यहाँ महाराणा प्रताप से संबंधित वस्तुओं को रखा गया है।
वीथिका
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हल्दीघाटी संग्रहालय, उदयपुर
Haldighati Museum Udaipur -
मान सिंह पर हमला करते हुए महाराणा प्रताप और चेतक
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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