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− | '''सुश्रुत संहिता''' के रचयिता [[प्राचीन भारत]] के प्रसिद्ध चिकित्साशास्त्री तथा शल्य चिकित्सक सुश्रुत थे। सुश्रुत शल्य चिकित्सा के जनक माने जाते हैं। इस [[ग्रंथ]] में शल्य क्रियाओं के लिए आवश्यक यंत्रों (साधनों) तथा शस्त्रों (उपकरणों) का विस्तार से वर्णन किया गया है। | + | {{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय |
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'सुश्रुत संहिता' में आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं के विषय में बताया गया है- | 'सुश्रुत संहिता' में आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं के विषय में बताया गया है- | ||
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सुश्रुत संहिता
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विवरण | 'सुश्रुत संहिता' आयुर्वेद के तीन मूलभूत ग्रन्थों में से एक है। विविध रोगों के साथ ही इसमें आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं के विषय में बताया गया है। |
रचयिता | सुश्रुत |
भाषा | संस्कृत |
खण्ड | दो ('पूर्वतंत्र' तथा 'उत्तरतंत्र') |
विशेष | 'सुश्रुत संहिता' में मनुष्य की आंतों में कर्कट रोग (कैंसर) के कारण उत्पन्न हानिकर ऊतकों को शल्य क्रिया से हटा देने का विवरण है। |
संबंधित लेख | चरक संहिता, अष्टांगहृदयम् |
अन्य जानकारी | इस ग्रन्थ में 24 प्रकार के स्वास्तिकों, 2 प्रकार के संदसों, 28 प्रकार की शलाकाओं तथा 20 प्रकार की नाड़ियों का उल्लेख हुआ है। |
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सुश्रुत संहिता के रचयिता प्राचीन भारत के प्रसिद्ध चिकित्साशास्त्री तथा शल्य चिकित्सक सुश्रुत थे। सुश्रुत शल्य चिकित्सा के जनक माने जाते हैं। इस ग्रंथ में शल्य क्रियाओं के लिए आवश्यक यंत्रों (साधनों) तथा शस्त्रों (उपकरणों) का विस्तार से वर्णन किया गया है।
खण्ड
'सुश्रुत संहिता' दो खण्डों में विभक्त है- 'पूर्वतंत्र' तथा 'उत्तरतंत्र'।
पूर्वतंत्र
पूर्वतंत्र के पाँच भाग हैं- 'सूत्रस्थान', 'निदानस्थान', 'शरीरस्थान', 'कल्पस्थान' तथा 'चिकित्सास्थान'। इसमें 120 अध्याय हैं, जिनमें आयुर्वेद के प्रथम चार अंगों, 'शल्यतंत्र', 'अगदतंत्र', 'रसायनतंत्र', 'वाजीकरण', का विस्तृत विवेचन है।[1]
उत्तरतंत्र
इस तंत्र में 64 अध्याय हैं, जिनमें आयुर्वेद के शेष चार अंगों, 'शालाक्य', 'कौमार्यभृत्य', 'कायचिकित्सा' तथा 'भूतविद्या', का विस्तृत विवेचन है। इस तंत्र को 'औपद्रविक' भी कहते हैं, क्योंकि इसमें शल्यक्रिया से होने वाले 'उपद्रवों' के साथ ही ज्वर, पेचिस, हिचकी, खांसी, कृमिरोग, पाण्डु (पीलिया), कमला आदि का वर्णन है। उत्तरतंत्र का एक भाग 'शालाक्यतंत्र' है, जिसमें आँख, कान, नाक एवं सिर के रोगों का वर्णन है।
अध्याय
'सुश्रुत संहिता' आयुर्वेद एवं शल्य चिकित्सा का प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ है। यह आयुर्वेद के तीन मूलभूत ग्रन्थों में से एक है। आठवीं शताब्दी में इस ग्रन्थ का अरबी भाषा में 'किताब-ए-सुश्रुत' नाम से अनुवाद हुआ था। 'सुश्रुत संहिता' में 184 अध्याय हैं, जिनमें 1120 रोगों, 700 औषधीय पौधों, खनिज-स्रोतों पर आधारित 64 प्रक्रियाओं, जन्तु-स्रोतों पर आधारित 57 प्रक्रियाओं तथा आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का उल्लेख है।
शल्य क्रियाएँ
'सुश्रुत संहिता' में आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं के विषय में बताया गया है-
- छेद्य (छेदन हेतु)
- भेद्य (भेदन हेतु)
- लेख्य (अलग करने हेतु)
- वेध्य (शरीर में हानिकारक द्रव्य निकालने के लिए)
- ऐष्य (नाड़ी में घाव ढूंढने के लिए)
- अहार्य (हानिकारक उत्पत्तियों को निकालने के लिए)
- विश्रव्य (द्रव निकालने के लिए)
- सीव्य (घाव सिलने के लिए)
इस प्रसिद्ध ग्रंथ में शल्य क्रियाओं के लिए आवश्यक यंत्रों (साधनों) तथा शस्त्रों (उपकरणों) का भी विस्तार से वर्णन किया गया है। ग्रन्थ में 24 प्रकार के स्वास्तिकों, 2 प्रकार के संदसों, 28 प्रकार की शलाकाओं तथा 20 प्रकार की नाड़ियों का उल्लेख हुआ है। इनके अतिरिक्त मानव शरीर के प्रत्येक अंग की शस्त्र-क्रिया के लिए बीस प्रकार के शस्त्रों का भी वर्णन किया गया है। ऊपर जिन आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का संदर्भ आया है, वे विभिन्न साधनों व उपकरणों से की जाती थीं।
विषयवस्तु
'सुश्रुत संहिता' में मनुष्य की आंतों में कर्कट रोग (कैंसर) के कारण उत्पन्न हानिकर ऊतकों को शल्य क्रिया से हटा देने का विवरण है। शल्य क्रिया द्वारा शिशु-जन्म की विधियों का वर्णन किया गया है। ‘न्यूरो-सर्जरी‘ अर्थात् रोग-मुक्ति के लिए नाड़ियों पर शल्य क्रिया का उल्लेख है तथा आधुनिक काल की सर्वाधिक पेचीदी क्रिया ‘प्लास्टिक सर्जरी‘ का सविस्तार वर्णन सुश्रुत के ग्रन्थ में है। अस्थिभंग, कृत्रिम अंगरोपण, प्लास्टिक सर्जरी, दंतचिकित्सा, नेत्रचिकित्सा, मोतियाबिंद का शस्त्रकर्म, पथरी निकालना, माता का उदर चीरकर शिशु जन्म करना आदि की विस्तृत विधियाँ इस ग्रंथ में वर्णित हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ चरकसंहिता और अष्टांगहृदयम ग्रंथों में भी 120 अध्याय ही हैं।
संबंधित लेख
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