"तामिस्र" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
(''''नासिम्र''' हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथानु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
  
 
*दूसरों के धन, सन्तान, अथवा स्त्रियों का हरण करने वाला “तामिस्र नरक” की यातनाएँ भोगता है। अन्न-जल न मिलना, मार-पिटाई होना, विविध प्रकार से पीड़ित किया जाना, पीड़ा व दु:ख से मूर्च्छित होना आदि इस नरक के लक्षण व रूप हैं। जिस मनुष्य या प्राणी के जीवन काल में यह दशा हो तो समझना चाहिए कि उसे “तामिरत्र नरक” की यातना मिल रही है।
 
*दूसरों के धन, सन्तान, अथवा स्त्रियों का हरण करने वाला “तामिस्र नरक” की यातनाएँ भोगता है। अन्न-जल न मिलना, मार-पिटाई होना, विविध प्रकार से पीड़ित किया जाना, पीड़ा व दु:ख से मूर्च्छित होना आदि इस नरक के लक्षण व रूप हैं। जिस मनुष्य या प्राणी के जीवन काल में यह दशा हो तो समझना चाहिए कि उसे “तामिरत्र नरक” की यातना मिल रही है।
*नरक लोक में [[सूर्य देवता|सूर्य]] के पुत्र “[[यमराज|यम]]” रहते हैं और मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों का दण्ड देते हैं। नरकों की संख्या 28 कही गई है, जो इस प्रकार है-
+
*नरक लोक में [[सूर्य देवता|सूर्य]] के पुत्र “[[यमराज|यम]]” रहते हैं और मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों का दण्ड देते हैं। नरकों की संख्या 28 कही गई है, जो इस प्रकार है<ref>गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण, अध्याय 16, पृ.सं.-342, श्लोक 21 - त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं</ref>-
<center>
+
{{नरक के नाम}}
{| width="30%" class="bharattable-pink"
 
|+नरक के नाम<ref>गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण, अध्याय 16, पृ.सं.-342, श्लोक 21 - त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं</ref>
 
|-
 
! क्रम संख्या
 
! नाम
 
! क्रम संख्या
 
! नाम
 
|-
 
|1.
 
|[[तामिस्र]]
 
|2.
 
|[[अन्धतामिस्र]]
 
|-
 
|3.
 
|[[रौरव]]
 
|4.
 
|[[महारौरव]]
 
|-
 
|5.
 
|[[कुम्भी पाक]]
 
|6.
 
|[[कालसूत्र]]
 
|-
 
|7.
 
|[[असिपत्रवन]]
 
|8.
 
|[[सूकर मुख]]
 
|-
 
|9.
 
|[[अन्ध कूप]]
 
|10.
 
|[[कृमि भोजन]]
 
|-
 
|11.
 
|[[सन्दंश]]
 
|12.
 
|[[तप्तसूर्मि]]
 
|-
 
|13.
 
|[[वज्रकंटक शाल्मली]]
 
|14.
 
|[[वैतरणी नदी|वैतरणी]]
 
|-
 
|15.
 
|[[पूयोद]]
 
|16.
 
|[[प्राण रोध]]
 
|-
 
|17.
 
|[[विशसन]]
 
|18.
 
|[[लालाभक्ष]]
 
|-
 
|19.
 
|[[सारमे पादन]]
 
|20.
 
|[[अवीचि]]
 
|-
 
|21.
 
|[[अयःपान]]
 
|22.
 
|[[क्षारकर्दम]]
 
|-
 
|23.
 
|[[रक्षोगणभोजन]]
 
|24.
 
|[[शूलप्रोत]]
 
|-
 
|25.
 
|[[दन्दशूक]]
 
|26.
 
|[[अवटनिरोधन]]
 
|-
 
|27.
 
|[[पर्यावर्तन]]
 
|28.
 
|[[सूची मुख]]
 
|}
 
</center>
 
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

10:57, 23 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

नासिम्र हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथानुसार एक नरक का नाम है।

  • दूसरों के धन, सन्तान, अथवा स्त्रियों का हरण करने वाला “तामिस्र नरक” की यातनाएँ भोगता है। अन्न-जल न मिलना, मार-पिटाई होना, विविध प्रकार से पीड़ित किया जाना, पीड़ा व दु:ख से मूर्च्छित होना आदि इस नरक के लक्षण व रूप हैं। जिस मनुष्य या प्राणी के जीवन काल में यह दशा हो तो समझना चाहिए कि उसे “तामिरत्र नरक” की यातना मिल रही है।
  • नरक लोक में सूर्य के पुत्र “यम” रहते हैं और मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों का दण्ड देते हैं। नरकों की संख्या 28 कही गई है, जो इस प्रकार है[1]-
नरक के नाम
क्रम संख्या नाम क्रम संख्या नाम
1. तामिस्र 2. अन्धतामिस्र
3. रौरव 4. महारौरव
5. कुम्भी पाक 6. कालसूत्र
7. असिपत्रवन 8. सूकर मुख
9. अन्ध कूप 10. कृमि भोजन
11. सन्दंश 12. तप्तसूर्मि
13. वज्रकंटक शाल्मली 14. वैतरणी
15. पूयोद 16. प्राण रोध
17. विशसन 18. लालाभक्ष
19. सारमेयादन 20. अवीचि
21. अयःपान 22. क्षारकर्दम
23. रक्षोगणभोजन 24. शूलप्रोत
25. द्वन्दशूक 26. अवटनिरोधन
27. पर्यावर्तन 28. सूची मुख



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण, अध्याय 16, पृ.सं.-342, श्लोक 21 - त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं

संबंधित लेख