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*महाभारत, वनपर्व के अनुसार धर्मारण्य को एक प्रमुख [[तीर्थ स्थान]] बताया गया है- | *महाभारत, वनपर्व के अनुसार धर्मारण्य को एक प्रमुख [[तीर्थ स्थान]] बताया गया है- | ||
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<blockquote>'कण्वाश्रम ततो गच्छेच्छ्रीजुष्ट लोक पूजितम्'।</blockquote> | <blockquote>'कण्वाश्रम ततो गच्छेच्छ्रीजुष्ट लोक पूजितम्'।</blockquote> | ||
*उपर्युक्त उल्लेख में धर्मारण्य को श्रीजुष्टम् प्रदेश कहा गया है, जिससे इसके नाम 'श्रीस्थल' की पुष्टि होती है। | *उपर्युक्त उल्लेख में धर्मारण्य को श्रीजुष्टम् प्रदेश कहा गया है, जिससे इसके नाम 'श्रीस्थल' की पुष्टि होती है। | ||
+ | *एक अन्य स्थान पर धर्मारण्य को [[गया]] के समीप का देश बताया गया है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=557, परिशिष्ट 'क'|url=}}</ref> | ||
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07:20, 22 मई 2018 के समय का अवतरण
धर्मारण्य का उल्लेख महाभारत, वनपर्व[1] में हुआ है। महाभारत के अनुसार ऋषि कण्व का आश्रम धर्मारण्य में ही स्थित था। धर्मारण्य गुजरात के प्राचीन नगर सिद्धपुर के परिवर्ती क्षेत्र (श्रीस्थल) का नाम है।[2]
- महाभारत, वनपर्व के अनुसार धर्मारण्य को एक प्रमुख तीर्थ स्थान बताया गया है-
'धर्मारण्यं हि तन् पुण्यमाद्यं च भरतर्पभ, यत्र प्रविष्टमात्रो वै सर्वपापै: प्रमुच्यते'।
- प्राचीन समय में धर्मारण्य प्रदेश सरस्वती नदी द्वारा सिंचित था।
- महाभारत, वनपर्व[3] में धर्मारण्य में कण्वाश्रम की स्थिति बताई गयी है-
'कण्वाश्रम ततो गच्छेच्छ्रीजुष्ट लोक पूजितम्'।
- उपर्युक्त उल्लेख में धर्मारण्य को श्रीजुष्टम् प्रदेश कहा गया है, जिससे इसके नाम 'श्रीस्थल' की पुष्टि होती है।
- एक अन्य स्थान पर धर्मारण्य को गया के समीप का देश बताया गया है।[4]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत, वनपर्व 82, 46
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 464 |
- ↑ महाभारत, वनपर्व 82, 45
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 557, परिशिष्ट 'क' |