सनातन धर्म

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सनातन धर्म
सनतन धर्म का पवित्र चिह्न स्वास्तिक
विवरण सनातन धर्म विश्व के सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म है। परम्परगत वैदिक धर्म जिसमें परमात्मा को साकार और निराकार दोनों रूपों में पूजा जाता है।
प्रमुख देवता शिव, विष्णु, कृष्ण, राम, आदि।
धर्मग्रंथ 4 वेद - ॠग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद; तेरह (13) उपनिषद, अठारह (18) पुराण
प्रमुख धार्मिक ग्रंथ रामायण, महाभारत, गीता, रामचरितमानस
तीर्थ स्थल हिन्दू मन्दिर
संबंधित लेख , स्वस्तिक, वैदिक धर्म
अन्य जानकारी ये वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय, और दर्शन समेटे हुए है। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में है।

सनातन धर्म विश्व के सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म है। परम्परगत वैदिक धर्म जिसमें परमात्मा को साकार और निराकार दोनों रूपों में पूजा जाता है। ये वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय, और दर्शन समेटे हुए है। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में है। हालाँकि इसमें कई देवी, देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है। ये धर्म अपने आप में इतना विशाल है कि इसमें से समय-समय पर विभिन्न धर्म निकलते रहे, कुछ पुरानी परम्पराऐं टूटती रहीं और कुछ नई जुड़ती रहीं, कुछ पुरानी मान्यताएँ ज्यों की त्यों रहीं तो कुछ मान्यताएँ इसमें समाती रहीं। कुछ मिला, कुछ पुराना छूटता गया, कुछ पुराना यूँ ही रहा तो कुछ नया जुड़ता गया।[1]

सनातन का अर्थ

सनातन का अर्थ है – 'शाश्वत' या 'हमेशा बना रहने वाला'।, सनातन अर्थात जो सदा से है, जो सदा रहेगा, जिसका अंत नहीं है और जिसका कोई आरंभ नहीं है वही सनातन है।

सृष्टि का आरंभ

परमपिता परमात्मा ने ही सब मनुष्यों के कल्याण के लिए वेदों का प्रकाश, सृष्टि के आरंभ में किया। जैसे जब हम नया मोबाइल लाते हैं तो साथ में एक दिग्दर्शिका मिलती है, कि इसे यहाँ पर रखें, इस प्रकार से बरतें, अमुक स्थान पर न ले जायें, अमुक चीज़ के साथ न रखें, आदि। उसी प्रकार जब उस परमपिता ने हमें ये मानव तन दिए, तथा ये संपूर्ण सृष्टि हमें रच कर दी, तब क्या उसने हमें यूं ही बिना किसी ज्ञान व बिना किसी निर्देशों के भटकने को छोड़ दिया? जी नहीं, उसने हमें साथ में एक दिग्दर्शिका दी, कि इस सृष्टि को कैसे बर्तें, क्या करें, ये तन से क्या करें, इसे कहाँ लेकर जायें, मन से क्या विचारें, नेत्रों से क्या देखें, कानों से क्या सुनें, हाथों से क्या करें आदि। उसी का नाम वेद है।[1]

हिन्दू धर्म

विश्व में केवल हिन्दू धर्म ही ज्ञान पर आधारित धर्म है, बाकी सब तो किसी एक व्‍यक्ति के द्वारा प्रतिपादित किये गये हैं। इसलिए हिन्दू धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है और उसकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती है, एक मात्र हिंदू धर्म ही ऐसा धर्म है, जो समय-समय पर अपने नियमों की समीक्षा करके उनमें सुधार करता रहा है। हिन्दू धर्म एक खुला धर्म है जो विचार से नहीं अपितु विवेक से विकसित हुआ है। इसके विपरीत अन्य धर्म चाहे वह इस्लाम हो चाहे ईसाई या कोई अन्य, सभी बंद धर्म है, जो एक व्यक्ति मात्र के विचारों पर आधारित है और जो यह मानकर चलते हैं कि समय अपरिवर्तित रहता है और व्यक्ति का विवेक भी। इन धर्मों में विचारों के विकास का कोई महत्व नहीं है। यही कारण है कि इन धर्मों में विशेष आग्रह अथवा वैचारिक कट्टरता पाई जाती है।

वेद

वेद का अर्थ है ज्ञान। वेदों में क्या है ? वेदों में कोई कथा कहानी नहीं है। वेद में तिनके से लेकर परमेश्वर पर्यन्त वह सम्पूर्ण मूल ज्ञान विद्यमान है, जो मनुष्यों के जीवन में आवश्यक है। मैं कौन हूँ ? मुझमें ऐसा क्या है, जिसमें “मैं” की भावना है? मेरे हाथ, मेरे पैर, मेरा सिर, मेरा शरीर, पर मैं कौन हूँ? मैं कहाँ से आया हूँ? मेरा तन तो यहीं रहेगा, तो मैं कहाँ जाऊंगा, परमात्मा क्या करता है? मैं यहाँ क्या करूँ ? मेरा लक्ष्य क्या है ? मुझे यहाँ क्यूँ भेजा गया? इन सबका उत्तर तो केवल वेदों में ही मिलेगा। रामायणभागवतमहाभारत आदि तो ऐतिहासिक घटनाएं है, जिनसे हमें सीख लेनी चाहिए और इन जैसे महापुरुषों के दिखाए सन्मार्ग पर चलना चाहिए।

वेद के प्रकार

ऋग्वेद

वेदों में सर्वप्रथम ऋग्वेद का निर्माण हुआ। यह पद्यात्मक है। यजुर्वेद गद्यमय है और सामवेद गीतात्मक है। ऋग्वेद में मण्डल 10 हैं,1028 सूक्त हैं और 11 हज़ार मन्त्र हैं। इसमें 5 शाखायें हैं – शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन। ऋग्वेद के दशम मण्डल में औषधि सूक्त हैं। इसके प्रणेता अर्थशास्त्र ऋषि हैं। इसमें औषधियों की संख्या 125 के लगभग निर्दिष्ट की गई है जो कि 107 स्थानों पर पायी जाती है। औषधि में सोम का विशेष वर्णन है। ऋग्वेद में च्यवन ऋषि को पुनः युवा करने का कथानक भी उद्धृत है और औषधियों से रोगों का नाश करना भी समाविष्ट है । इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा एवं हवन द्वारा चिकित्सा का समावेश है।

सामवेद

सामवेद में गेय छंदों की अधिकता है जिनका गान यज्ञों के समय होता था। 1824 मन्त्रों कें इस वेद में 75 मन्त्रों को छोड़कर शेष सब मन्त्र ऋग्वेद से ही संकलित हैं। इस वेद को संगीत शास्त्र का मूल माना जाता है। इसमें सविता, अग्नि और इन्द्र देवताओं का प्राधान्य है। इसमें यज्ञ में गाने के लिये संगीतमय मन्त्र हैं, यह वेद मुख्यतः गन्धर्व लोगों के लिये होता है । इसमें मुख्य 3 शाखायें हैं, 75 ऋचायें हैं और विशेषकर संगीत शास्त्र का समावेश किया गया है ।

यजुर्वेद

इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य मन्त्र हैं, यह वेद मुख्यतः क्षत्रियों के लिये होता है ।

  • यजुर्वेद के दो भाग हैं –
  1. कृष्ण- वैशम्पायन ऋषि का सम्बन्ध कृष्ण से है । कृष्ण की चार शाखायें है।
  2. शुक्लयाज्ञवल्क्य ऋषि का सम्बन्ध शुक्ल से है। शुक्ल की दो शाखायें हैं । इसमें 40 अध्याय हैं । यजुर्वेद के एक मन्त्र में ‘ब्रीहिधान्यों’ का वर्णन प्राप्त होता है । इसके अलावा, दिव्य वैद्य एवं कृषि विज्ञान का भी विषय समाहित है।

अथर्ववेद

इसमें जादू, चमत्कार, आरोग्य, यज्ञ के लिये मन्त्र हैं, यह वेद मुख्यतः व्यापारियों के लिये होता है । इसमें 20 काण्ड हैं । अथर्ववेद में आठ खण्ड आते हैं जिनमें भेषज वेद एवं धातु वेद ये दो नाम स्पष्ट प्राप्त हैं।

धर्मग्रंथ

हिंदुओं का धर्म ग्रंथ क्या है? विद्वानों अनुसार ‘वेद’ ही है हिंदुओं के धर्मग्रंथ। वेदों में दुनिया की हर बातें हैं। वेदों में धर्म, योग, विज्ञान, जीवन, समाज और ब्रह्मांड की उत्पत्ति, पालन और संहार का विस्तृत उल्लेख है। वेदों का सार है उपनिषद और उपनिषदों का सार है गीता। सार का अर्थ होता है संक्षिप्त।

ईश्वर

ईश्वर का स्वरूप क्या है? यजुर्वेद के बत्तीसवें अध्याय में परमात्मा‍ के वि‍षय में कहा गया है कि‍ अग्नि वही है, आदि‍त्य वही है, वायु, चन्द्र और शुक्र वही है, जल, प्रजापति‍ और सर्वत्र भी वही है। वह प्रत्यक्ष नहीं देखा जा सकता है। उसकी कोई प्रति‍मा नहीं है (न तस्य प्रति‍मा) उसका नाम ही अत्यन्त महान् है। वह सब दि‍शाओं को व्या‍प्त कर स्थित है। स्पष्ट है कि‍ वेद के अनुसार ईश्वर की न तो कोई प्रति‍मा या मूर्ति‍ है और न ही उसे प्रत्यहक्ष रूप में देखा जा सकता है। कि‍सी मूर्ति‍ में ईश्वर के बसने या ईश्वतर का प्रत्यरक्ष दर्शन करने का कथन वेद सम्मेत नहीं है। जिन्होंने वेद पढ़े हैं, वे जानते हैं कि प्रकृति, सांसारिक वस्तुएं, मानव और स्वयं को पूजना कितना बड़ा पाप है। पापी हैं वे लोग जो खुद को पूजवाते हैं। ऐसे संत, ऐसे गुरु और ऐसे व्यक्तियों से दूर रहना ही धर्म सम्मत आचरण है।[1]

मन्दिर

हिन्दुओं के उपासना स्थल को मन्दिर कहते हैं। यह अराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित की हुई जगह है। यानी जिस जगह किसी आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिंतन किया जाए या वहां मूर्ति इत्यादि रखकर पूजा-अर्चना की जाए उसे मंदिर कहते हैं। मूर्ति के प्रति हम श्रद्धा से जुड़े होतें हैं और यह श्रद्धा परमात्मा से जुड़ने में एक सेतु का काम करता है। सारे धर्मो में यह श्रद्धा किसी न किसी रूप में मौजूद है यह अटल सत्य है। हिंदू धर्म में भी प्रारंभ से मूर्ति पूजा का प्रचलन नहीं था। यह धर्म अद्वैवाद और एकेश्वर वाद का समर्थक रहा है। किन्तु ईश्वर तक पहुँचने में मूर्ति पूजा रास्ता को सरल बनाता है। हम एक मूर्ति को आराध्य मान कर उसकी उपासना करते हैं ,उसे फूल आदि अर्पित करते हैं। इस प्रकार मूर्ति से ही सही एक जुड़ाव महसूस होने लगता है। मन उस पात्र से जिसकी मूर्ति होती है, उसके प्रेम में डूब जाता है। वह पात्र चाहे वह राम हो या कृष्ण मन उसके चरित्र में डूबता जाता है और धीरे-धीरे उस परम निराकार में उतरता जाता है , उदाहरणार्थ- अगर आप कृष्ण की मूर्ति की आराधना करेंगे तो आप का मन उनके द्वारा बोले गीता के वचनों की ओर ज़रूर जायेगा, बस लो हो गयी निराकार की ओर यात्रा शुरू। इसी प्रकार राम की मूर्ति रामचरितमानस की ओर ले जायेगी। दुर्गा की मूर्ति दुर्गा सप्तशती की ओर।

गीता

गीता को हिन्दू धर्म में बहुत खास स्थान दिया गया है। गीता अपने अंदर भगवान कृष्ण के उपदेशों को समेटे हुए है। गीता को संस्कृत भाषा में लिखा गया है, संस्कृत की जानकारी रखने वाला भी गीता को आसानी से पढ़ सकता है। गीता में चार योगों के बारे विस्तार से बताया हुआ है, कर्म योग, भक्ति योग, राजा योग और जन योग। गीता को वेदों और उपनिषदों का सार माना जाता, जो लोग वेदों को पूरा नहीं पढ़ सकते, सिर्फ गीता के पढ़ने से भी आप को ज्ञान प्राप्ति हो सकती है। गीता न सिर्फ जीवन का सही अर्थ समझाती है बल्कि परमात्मा के अनंत रुप से हमें रुबरु कराती है। इस संसारिक दुनिया में दुख, क्रोध, अंहकार ईर्ष्या आदि से पिड़ित आत्माओं को, गीता सत्य और आध्यात्म का मार्ग दिखाकर मोक्ष की प्राप्ति करवाती है। गीता में लिखे उपदेश किसी एक मनुष्य विशेष या किसी खास धर्म के लिए नहीं है, इसके उपदेश तो पूरे जग के लिए है। जिसमें आध्यात्म और ईश्वर के बीच जो गहरा संबंध है उसके बारे में विस्तार से लिखा गया है। गीता मे धीरज, संतोष, शांति, मोक्ष और सिद्धि को प्राप्त करने के बारे में उपदेश दिया गया है।

गीता सार

भगवान कृष्ण के उपदेशों को ‘भगवद्गीता’ नामक लोकप्रिय किताब में लिखा गया है चूंकि यह किताब काफ़ी विस्तृत है इसलिए इसे एक बार में पढ़ पाना काफ़ी मुश्किल होता है। गीता सार भगवान कृष्ण के द्वारा दिए गए उपदेशों का निचोड़ है। यह पवित्र गीता का सारांश है। भगवान प्रत्येक इंसान से विभिन्न मुद्दों पर सवाल करते हैं और उन्हें मायावी संसार को त्यागने को कहते हैं। उनका कहना है कि पूरी जिंदगी सुख पाने का एक और केवल एक ही रास्ता है और वह है उनके प्रति पूरा समर्पण। तुम क्यों व्यर्थ चिंता करते हो? तुम क्यों भयभीत होते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा का न कभी जन्म होता है और न ही यह कभी मरती है। जो हुआ वह अच्छे के लिए हुआ, जो हो रहा है वह अच्छे के लिए हो रहा है और जो होगा वह भी अच्छे के लिए ही होगा। भूत के लिए पश्चाताप मत करो, भविष्य के लिए चिंतित मत हो, केवल अपने वर्तमान पर ध्यान लगाओ। तुम्हारे पास अपना क्या है जिसे तुम खो दोगे ? तुम क्या साथ लाए थे जिसका तुम्हें खोने का डर है? तुमने क्या जन्म दिया जिसके विनाश का डर तुम्हें सता रहा है? तुम अपने साथ कुछ भी नहीं लाए थे। हर कोई ख़ाली हाथ ही आया है और मरने के बाद ख़ाली हाथ ही जाएगा। जो कुछ भी आज तुम्हारा है, कल किसी और का था और परसों किसी और का हो जाएगा। इसलिए माया के चकाचौंध में मत पड़ो। माया ही सारे दु:ख, दर्द का मूल कारण है। परिवर्तन संसार का नियम है। एक पल में आप करोड़ों के स्वामी हो जाते हो और दूसरे पल ही आपको ऐसा लगता है कि आपके पास कुछ भी नहीं है। न तो यह शरीर तुम्हारा है और न ही तुम इस शरीर के हो। यह शरीर पांच तत्वों से बना है- आग, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश। एक दिन यह शरीर इन्हीं पांच तत्वों में विलीन हो जाएगा। अपने आप को भगवान के हवाले कर दो। यही सर्वोत्तम सहारा है। जो कोई भी इस शत्रुहीन सहारे को पहचान गया है, वह डर, चिंता और दु:खों से आजाद रहता है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 सनातन धर्म(हिन्दू धर्म) (हिन्दी) WordPress.com। अभिगमन तिथि: 10 मार्च, 2016।

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