गोदपुरा
गोदपुरा एक गाँव और तीर्थ स्थल, जो खंडवा तहसील, पश्चिमी मध्य प्रदेश राज्य, मध्य भारत, इन्दौर के दक्षिण-पूर्ण में स्थित है। इस गाँव का कुछ हिस्सा नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर और कुछ हिस्सा नदी के बीच द्वीप पर स्थित है। ऊंची पहाड़ियों से बने इस द्वीप की लंबाई लगभग 2.5 कि.मी. है और पूर्वी छोर पर स्थित शिखर के समीप से सुदूर पश्चिम में जल सीमा तक फैली एक घाटी इसे दो हिस्सों में विभक्त करती है। यह स्थान 'मंधाता' या 'ओंकारजी' भी कहा जाता है।
नामकरण
इस स्थान का नामकरण दक्षिणी तट पर स्थित 'गोदर', 'निरंजनी' और 'दसनामी' के कई मठों के आधार पर हुआ है। 'स्कन्द पुराण' के वैदूर्य खंड में इस स्थान का उल्लेख वैदूर्य मणि पर्वत के रूप में किया गया है। 17वें सूर्यवंशी राजा मंधानी द्वारा तपस्या के समय इस जगह पर स्वयं अपनी बलि चढ़ाने पर ओंकार जी द्वारा वरदान दिए जाने से इसका नाम बदलकर 'मंधाता' हो गया। यहाँ पर नदी के तटों का रंग हरित-नीला है और कहा जाता है कि यह 'शाणाश्म'[1] स्लेट पत्थर से बना हुआ है।[2]
शिव पूजन की परम्परा
गोदपुरा में भगवान शिव की पूजन परम्परा काफ़ी प्राचीन है। यहाँ विख्यात शैव, वैष्णव और जैन मंदिर हैं, जिनमें से अधिकांश शताब्दी के तथा कुछ आधुनिक काल के हैं। अधिकांश प्राचीन मंदिर द्वीप के उत्तरी हिस्से में ओंकार मंदिर के सामाने स्थित हैं। द्वीप के दक्षिणी तट पर 'अमरेश्वर'[3] का मंदिर है। ये दोनों मंदिर 12 महान् शिवलिंगों का एक हिस्सा हैं, जो 1024-25 ई. में महमूद ग़ज़नवी द्वारा सोमनाथ मंदिर नष्ट किए जाने के समय भारत में मौजूद थे। गोदपुरा में एक अन्य शिवलिंग 'गौरी-सोमनाथ मंदिर' के बाहर स्थित है।
मंदिर
इस द्वीप पर बने हुए मंदिर शैव मत के हैं, लेकिन उत्तरी किनारे पर वैष्णव और जैन मंदिर भी हैं व दक्षिणी किनारे पर गोदपुरा में ब्रह्मा मंदिरों में से एक मंदिर स्थित है। वंशानुगत रूप से मंधाता के राजा सभी आधुनिक मंदिरों के संरक्षक हैं। वे 'भिलाल' हैं, जो चौहान राजपूत भरत सिंह के वंशज होने का दावा करते हैं। द्वीप के सीढ़ीदार पर्वतीय क्षेत्र पर राजमहल बना हुआ है। गोदपुरा में लगने वाले वार्षिक मेले में 1824 तक धार्मिक श्रद्धालुओं के आत्मबलिदान की घटनाएं होती रहती थीं, जिसमें द्वीप के पूर्वी छोर पर बिरखाला की ऊंची चट्टानों से श्रद्धालु नदी में छलांग लगाते थे। ये बलिदान काल भैरव को समर्पित होते थे, ताकि उनकी अर्द्धांगिनी काली देवी को प्रसन्न करने में सहायता मिल सके। अन्य उल्लेखनीय मंदिरों में, नर्मदा में मिलने वाली कावेरी नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित 'सिद्धेश्वर महादेव' तथा अन्य मंदिर शामिल हैं।[2]
गोदपुरा में पुराने मंदिर अब ज़्यादा नहीं बचे हैं। प्राचीन मंदिरों में मूर्तियों को बुरी तरह से तोड़ा गया है। पुराने क़िलों और गांव के अन्य भवनों में हिन्दू वास्तुशिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण देखे जा सकते हैं। इनमें से अधिकांश भवन सीमेंट के बिना स्थानीय बैसाल्ट पत्थर और पीले बलुआ पत्थरों से बने हैं। मंधाता गांव पूरी तरह तीर्थ यात्रियों से होने वाली आय पर निर्भर है।
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