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13:37, 15 दिसम्बर 2015 का अवतरण
सोहन लाल द्विवेदी (अंग्रेज़ी:Sohan Lal Dwivedi, जन्म: 22 फ़रवरी 1906 - 1 मार्च, 1988) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि हैं। सोहन लाल द्विवेदी हिन्दी के राष्ट्रीय कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। ऊर्जा और चेतना से भरपूर रचनाओं के इस रचयिता को राष्ट्रकवि की उपाधि से अलंकृत किया गया। पं. सोहनलाल द्विवेदी स्वतंत्रता आंदोलन युग के एक ऐसे विराट कवि थे, जिन्होंने जनता में राष्ट्रीय चेतना जागृति करने, उनमें देश-भक्ति की भावना भरने और नवयुवकों को देश के लिए बड़े से बड़े बलिदान के लिए प्रेरित करने में अपनी सारी शक्ति लगा दी। वे पूर्णत: राष्ट्र को समर्पित कवि थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति उनकी अटूट आस्था थी। उन्होंने एक युग-पुरुष के रूप में गांधी का स्तवन किया। 1969 में भारत सरकार ने आपको पद्मश्री उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया था।
जीवन परिचय
सोहन लाल द्विवेदी का जन्म 1906 में फतेहपुर, उत्तर प्रदेश के बिन्दकी गाँव में हुआ। सोहन लाल द्विवेदी की शिक्षा हिन्दी में एम.ए. रही। इन्होंने संस्कृत का भी अध्ययन किया। द्विवेदी जी हिन्दी के राष्ट्रीय कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। राष्ट्रीयता से संबन्धित कविताएँ लिखने वालों में आपका स्थान मूर्धन्य है। महात्मा गांधी पर आपने कई भाव पूर्ण रचनाएँ लिखी है, जो हिन्दी जगत में अत्यन्त लोकप्रिय हुई हैं। आपने गांधीवाद के भावतत्व को वाणी देने का सार्थक प्रयास किया है तथा अहिंसात्मक क्रान्ति के विद्रोह व सुधारवाद को अत्यन्त सरल सबल और सफल ढंग से काव्य बनाकर 'जन साहित्य' बनाने के लिए उसे मर्मस्पर्शी और मनोरम बना दिया है।
राष्ट्रकवि
गाँधीवाद से प्रेरित उनकी यशस्वी रचनाएँ हिन्दी साहित्य की अनमोल निधि है। राष्ट्र धर्म उनके काव्य का मूल मंत्र है। राष्ट्र प्रेम से प्रेरित अपने ओजस्वी गीतों द्वारा जन-मानस में राष्ट्रीय चेतना जगाने में उन्हें जो लोकप्रियता मिली, उसी ने उन्हें जन सामान्य में 'राष्ट्रकवि' के रूप में प्रतिष्ठित किया। कविवर हरिवंश राय बच्चन ने उनके सम्बन्ध में कहा था जहाँ तक मेरी स्मृति है, जिस कवि को राष्ट्रकवि के नाम से सर्वप्रथम अभिहित किया गया था वह सोहन लाल द्विवेदी थे। अपने विद्यार्थी जीवन से ही वे राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत थे। 1930 में काशी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में महात्मा गाँधी पधारे तो युवा कवि सोहन लाल द्विवेदी ने खादी गीत से उनका अभिनंदन किया उनके गीत की इन पंक्तियों से उपस्थित जनसमूह रोमांचित हो उठा-
खादी के धागे-धागे में अपनेपन का अभिमान भरा।
माता का इनमें मान भरा, अन्यायी का अपमान भरा।
खादी के रेशे-रेशे में, अपने भाई का प्यार भरा।
माँ बहनों का सत्कार भरा, बच्चों का मधुर दुलार भरा।
खादी में कितने दलितों के दग्ध की दाह छिपी।
कितनों की कसक कराह छिपी, कितनों की आहत आह छिपी।
यह खादी गीत जनता में इतना लोकप्रिय हुआ कि कुछ ही दिनों के देश भर में इसकी धूम मच गई। द्विवेदी जी गाँधीजी को अपनी प्रेरक-विभूति मानते थे। 1944 में गाँधी जी हीरक जयंती के अवसर पर उनके अभिनंदन हेतु जो गौरव ग्रन्थ प्रकाशित हुआ, उसके सम्पादन का श्रेय भी सोहन लाल द्विवेदी जी को ही प्राप्त है। यह उनकी एक चरम उपलब्धि थी। द्विवेदी जी ने अपनी राष्ट्रीय कविताओं में स्वतंत्रता आंदोलन के कर्णधार 'युगावतार गाँधी' जी की समग्र भावना से वंदना की है। उन्होंने अपनी प्रथम रचना भैरवी गाँधी जी को ही समर्पित की थी। उन्होंने गाँधी को महामानव का स्थान देकर उनके संदेश को अपने काव्य का मूल विषय बनाया और उसे जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया। खादी, अहिंसा और सत्याग्रह उनके काव्य का प्रेरक स्वर रहा। सोहन लाल द्विवेदी को 'युगकवि' कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी।[1]
प्रमुख रचनाएँ
आपकी रचनाएँ ओजपूर्ण एवं राष्ट्रीयता की परिचायक है। गांधीवाद को अभिव्यक्ति देने के लिए आपने युगावतार, गांधी, खादी गीत, गाँवों में किसान, दांडीयात्रा, त्रिपुरी कांग्रेस, बढ़ो अभय जय जय जय, राष्ट्रीय निशान आदि शीर्ष से लोकप्रिय रचनाओं का सृजन किया है, इसके अतिरिक्त आपने भारत देश, ध्वज, राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र नेताओं के विषय की उत्तम कोटि की कविताएँ लिखी है। आपने कई प्रयाण गीत लिखे हैं, जो प्रासयुक्त होने के कारण सामूहिक रूप से गाए जाते हैं।
- भैरवी
- पूजागीत सेवाग्राम
- प्रभाती
- युगाधार
- कुणाल
- चेतना
- बाँसुरी
- दूधबतासा।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पांचाल, डॉ. परमानन्द। सोहनलाल द्विवेदी के काव्य में गाँधी (हिन्दी) (html) देशबंधु। अभिगमन तिथि: 15 दिसम्बर, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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