माधव, मोह-पास क्यों छूटै। बाहर कोट उपाय करिय अभ्यंतर ग्रन्थि न छूटै॥1॥ घृतपूरन कराह अंतरगत ससि प्रतिबिम्ब दिखावै। ईंधन अनल लगाय कल्पसत औंटत नास न पावै व२॥ तरु-कोटर मँह बस बिहंग तरु काटे मरै न जैसे। साधन करिय बिचारहीन मन, सुद्ध होइ नहिं तैसे॥३॥ अंतर मलिन, बिषय मन अति, तन पावन करिय पखारे। मरै न उरक अनेक जतन बलमीकि बिबिध बिधि मारे॥४॥ तुलसीदास हरि गुरु करुना बिनु बिमल बिबेक न होई। बिनु बिबेक संसार-घोरनिधि पार न पावै कोई॥५॥