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श्याम नारायण पांडेय द्वारा रचित प्रमुख रचनाएँ निम्न प्रकार हैं-
 
श्याम नारायण पांडेय द्वारा रचित प्रमुख रचनाएँ निम्न प्रकार हैं-
#हल्दी घाटी (1937-39 ई.)
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#'जय हनुमान' (1956 ई.) उनकी प्रमुख प्रकाशित काव्य पुस्तकें हैं।  
 
#'जय हनुमान' (1956 ई.) उनकी प्रमुख प्रकाशित काव्य पुस्तकें हैं।  
 
#'माधव', 'रिमझिम', 'आँसू के कण', और 'गोरा वध' उनकी प्रारम्भिक लघु कृतियाँ हैं।  
 
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#'तुमुल' नामक पुस्तक 'त्रेता के दो वीर'  नामक [[खण्ड काव्य|खण्ड-काव्य]] का ही परिवर्धित संस्करण है।
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श्याम नारायण पांडेय ने चार [[महाकाव्य]] रचे, जिनमें 'हल्दीघाटी और 'जौहर विशेष चर्चित हुए।
 
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भाषा नाद से आगे बढ़कर भावोत्साह की दृष्टि से कवि ने रचना को रसमय बनाया है। यहाँ भाषा-नाद और आंतर भाव का सामंजस्य कवि-कला की नूतनता का प्रमाण है। बीच-बीच में सुन्दर प्रकृति-वर्णनों की उत्फुल्ल योजना हुई है। [[भाषा]] तत्सम प्रधान होकर भी प्रवाहमय और बोलचाल में [[उर्दू]] शब्दों को अपनाती चली है। तलवार, घोड़ा, बर्छे आदि के फड़का देने वाले वर्णन अत्यंत लोकप्रिय हुए हैं। [[ग्रंथ]] में कुल 17 सर्ग हैं। इस रचना पर श्याम नारायण पांडेय को 'देव पुरस्कार' भी मिला था।  
 
भाषा नाद से आगे बढ़कर भावोत्साह की दृष्टि से कवि ने रचना को रसमय बनाया है। यहाँ भाषा-नाद और आंतर भाव का सामंजस्य कवि-कला की नूतनता का प्रमाण है। बीच-बीच में सुन्दर प्रकृति-वर्णनों की उत्फुल्ल योजना हुई है। [[भाषा]] तत्सम प्रधान होकर भी प्रवाहमय और बोलचाल में [[उर्दू]] शब्दों को अपनाती चली है। तलवार, घोड़ा, बर्छे आदि के फड़का देने वाले वर्णन अत्यंत लोकप्रिय हुए हैं। [[ग्रंथ]] में कुल 17 सर्ग हैं। इस रचना पर श्याम नारायण पांडेय को 'देव पुरस्कार' भी मिला था।  
 
;जौहर महाकाव्य
 
;जौहर महाकाव्य
'जौहर' पाण्डेय जी का द्वितीय महाकाव्य है। कुल 21 चिनगारियों का यह प्रबन्ध [[चित्तौड़]] की महारानी पद्मिनी को कथाधार बनाकर रचा गया है। इस ग्रंथ में [[वीर रस]] के साथ [[करुण रस]] का भी गम्भीर पुट है। 'जौहर' की [[कहानी]] [[राजस्थान]] के इतिहास के लोमहर्षक आत्म-बलिदान की ज्वलंत कथा है। उत्साह और करुणा, शौर्य और विवशता, रूप और नश्वरता, भोग और आत्म-सम्मान के भावों के प्रवाह काव्य को हर्ष और विषाद की अनोखी गहनता प्रदान करते हैं। 'जौहर' में पाण्डेय जी ने एक मौलिक वीर-रस शैली का उद्घाटन किया है। [[छन्द|छन्दों]] में 'हल्दी घाटी' से अधिक वेग एवं भावानुकूल गति है। डोले का वर्णन एवं चिता-वर्णन की चिनगारियाँ अत्यंत प्रभावभूर्ण एवं मर्मस्पर्शी हैं। लोक-छन्दों के सहारे नवीन लयों एवं गतियों को पकड़ने का सफल प्रयास स्तुत्य है।  
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'जौहर' पाण्डेय जी का द्वितीय महाकाव्य है। कुल 21 चिनगारियों का यह प्रबन्ध [[चित्तौड़]] की [[रानी पद्मिनी|महारानी पद्मिनी]] को कथाधार बनाकर रचा गया है। इस ग्रंथ में [[वीर रस]] के साथ [[करुण रस]] का भी गम्भीर पुट है। 'जौहर' की [[कहानी]] [[राजस्थान]] के इतिहास के लोमहर्षक आत्म-बलिदान की ज्वलंत कथा है। उत्साह और करुणा, शौर्य और विवशता, रूप और नश्वरता, भोग और आत्म-सम्मान के भावों के प्रवाह काव्य को हर्ष और विषाद की अनोखी गहनता प्रदान करते हैं। 'जौहर' में पाण्डेय जी ने एक मौलिक वीर-रस शैली का उद्घाटन किया है। [[छन्द|छन्दों]] में 'हल्दी घाटी' से अधिक वेग एवं भावानुकूल गति है। डोले का वर्णन एवं चिता-वर्णन की चिनगारियाँ अत्यंत प्रभावभूर्ण एवं मर्मस्पर्शी हैं। लोक-छन्दों के सहारे नवीन लयों एवं गतियों को पकड़ने का सफल प्रयास स्तुत्य है।  
  
  

07:25, 29 मार्च 2017 के समय का अवतरण

श्याम नारायण पांडेय
श्याम नारायण पांडेय
पूरा नाम श्याम नारायण पांडेय
जन्म 1907
जन्म भूमि डुमराँव गाँव, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1991
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र काव्य रचना
मुख्य रचनाएँ 'हल्दीघाटी', 'जौहर', 'तुमुल', 'रूपान्तर', 'आरती' तथा 'जय हनुमान' आदि।
पुरस्कार-उपाधि 'देव पुरस्कार'
प्रसिद्धि वीर रस के कवि।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 'जौहर' पाण्डेय जी का द्वितीय महाकाव्य है। कुल 21 चिनगारियों का यह प्रबन्ध चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी को कथाधार बनाकर रचा गया है।
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इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

श्याम नारायण पांडेय (अंग्रेज़ी: Shyam Narayan Pandey, जन्म- 1907, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1991) वीर रस के अद्भुत कवियों में से एक थे। वे काशी के प्रसिद्ध साहित्याचार्य थे। उन्होंने चार महाकाव्य रचे, जिनमें 'हल्दीघाटी' और 'जौहर' विशेष चर्चित हुए। 'हल्दीघाटी' में महाराणा प्रताप के जीवन और 'जौहर' में रानी पद्मिनी के आख्यान हैं। 'हल्दीघाटी' पर श्याम नारायण पांडेय को 'देव पुरस्कार' प्राप्त हुआ था। अपनी ओजस्वी वाणी के कारण श्याम नारायण पांडेय कवि सम्मेलनों में बड़े लोकप्रिय थे।

परिचय

श्याम नारायण पांडेय का जन्म श्रावण कृष्ण पंचमी को संवत 1964 (ईसवी सन 1907 ई.) में डुमराँव गाँव, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा के बाद श्याम नारायण पांडेय संस्कृत अध्ययन के लिए काशी (वर्तमान बनारस) आये। काशी से वे साहित्याचार्य की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। स्वभाव से सात्त्वक, हृदय से विनोदी और आत्मा से परम निर्भीक स्वभाव वाले पाण्डेय जी के स्वस्थ्य-पुष्ट व्यक्तित्व में शौर्य, सत्त्व और सरलता का अनूठा मिश्रण था। संस्कार द्विवेदीयुगीन, दृष्टिकोण उपयोगितावादी और भाव-विस्तार मर्यादावादी थे। लगभग दो दशकों से ऊपर वे हिन्दी कवि-सम्मेलनों के मंच पर अत्यंत लोकप्रिय एवं समादृत रहे। उन्होंने आधुनिक युग में वीर काव्य की परम्परा को खड़ी बोली में प्रतिष्ठित किया।

रचनाएँ

श्याम नारायण पांडेय द्वारा रचित प्रमुख रचनाएँ निम्न प्रकार हैं-

  1. 'हल्दी घाटी' (1937-39 ई.)
  2. 'जौहर' (1939-44 ई.)
  3. 'तुमुल' (1948 ई.) - यह पुस्तक 'त्रेता के दो वीर' नामक खण्ड-काव्य का ही परिवर्धित संस्करण है।
  4. 'रूपांतर' (1948 ई.)
  5. 'आरती' (1945-46 ई.)
  6. 'जय हनुमान' (1956 ई.) उनकी प्रमुख प्रकाशित काव्य पुस्तकें हैं।
  7. 'माधव', 'रिमझिम', 'आँसू के कण', और 'गोरा वध' उनकी प्रारम्भिक लघु कृतियाँ हैं।
  8. 'परशुराम' अप्रकाशित काव्य है तथा 'वीर सुभाष' रचनाधीन ग्रंथ है।


श्याम नारायण पांडेय के संस्कृत में लिखे कुछ काव्य-ग्रंथ भी अप्रकाशित ही हैं।

महाकाव्य

श्याम नारायण पांडेय ने चार महाकाव्य रचे, जिनमें 'हल्दीघाटी और 'जौहर विशेष चर्चित हुए।

हल्दी घाटी महाकाव्य

'हल्दी घाटी' महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए प्रसिद्ध ऐतिहासिक युद्ध पर लिखा गया महाकाव्य प्रबन्ध है। प्रताप के इतिहास प्रसिद्ध शौर्य, त्याग, आत्म बलिदान, स्वातंत्र्य-प्रेम एवं जातीय-गौरव भाव को प्रेरक आधार बनाते हुए कवि ने मध्यकालीन राजपूती मूल्यों को अत्यंत श्रद्धा, सम्मान, सहानुभूति और पूजा के छन्दपुष्प अर्पित किये हैं। वीर-पूजा इस काव्य की सत्प्रेरणा और जातीय गौरव का उद्बोधन इसका लक्ष्य है।

भाषा और प्रकृति चित्रण

भाषा नाद से आगे बढ़कर भावोत्साह की दृष्टि से कवि ने रचना को रसमय बनाया है। यहाँ भाषा-नाद और आंतर भाव का सामंजस्य कवि-कला की नूतनता का प्रमाण है। बीच-बीच में सुन्दर प्रकृति-वर्णनों की उत्फुल्ल योजना हुई है। भाषा तत्सम प्रधान होकर भी प्रवाहमय और बोलचाल में उर्दू शब्दों को अपनाती चली है। तलवार, घोड़ा, बर्छे आदि के फड़का देने वाले वर्णन अत्यंत लोकप्रिय हुए हैं। ग्रंथ में कुल 17 सर्ग हैं। इस रचना पर श्याम नारायण पांडेय को 'देव पुरस्कार' भी मिला था।

जौहर महाकाव्य

'जौहर' पाण्डेय जी का द्वितीय महाकाव्य है। कुल 21 चिनगारियों का यह प्रबन्ध चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी को कथाधार बनाकर रचा गया है। इस ग्रंथ में वीर रस के साथ करुण रस का भी गम्भीर पुट है। 'जौहर' की कहानी राजस्थान के इतिहास के लोमहर्षक आत्म-बलिदान की ज्वलंत कथा है। उत्साह और करुणा, शौर्य और विवशता, रूप और नश्वरता, भोग और आत्म-सम्मान के भावों के प्रवाह काव्य को हर्ष और विषाद की अनोखी गहनता प्रदान करते हैं। 'जौहर' में पाण्डेय जी ने एक मौलिक वीर-रस शैली का उद्घाटन किया है। छन्दों में 'हल्दी घाटी' से अधिक वेग एवं भावानुकूल गति है। डोले का वर्णन एवं चिता-वर्णन की चिनगारियाँ अत्यंत प्रभावभूर्ण एवं मर्मस्पर्शी हैं। लोक-छन्दों के सहारे नवीन लयों एवं गतियों को पकड़ने का सफल प्रयास स्तुत्य है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 601।

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