जैनाबाद

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जैनाबाद बुरहानपुर की पूर्व दिशा में ताप्ती नदी के पार एक ऐतिहासिक छोटी-सी बस्ती है। इसे 'नसीरउद्दीन फ़ारूक़ी' (फ़ारूक़ी वंश) ने सन् 1399 हिजरी, 1437 ई. में अपने आध्यात्मिक गुरु 'संत जैनुदीन सीराजी' के सम्मान में जैनाबाद के नाम से आबाद किया था। इसी छोटी बस्ती ने बहुत कम समय में उन्नति की थी। यहाँ कपड़े का व्यापार होता था, तथा तेल और काग़ज़ बनाने का यह मुख्य केंद्र रहा था। आज भी यहाँ काग़ज़ बनाने की बड़ी-बड़ी कुंडियों के अवशेष हैं। यही नहीं, इस स्थान पर जहाँ काग़ज़ बनाया जाता था, उस जगह को आज भी 'काग़ज़ीपुरा' कहा जाता है।[1]

फ़ारूक़ी बादशाहों का योगदान

फ़ारूक़ी बादशाहों ने जैनाबाद के आस-पास अनेक ईमारतें बनवाई थीं, जिसमें विशेष उल्लेखनीय 'राजेअली ख़ाँ' द्वारा निर्मित भव्य सराय, जामा मस्जिद और मक़बरे हैं। यह सराय 'घोसीबाड़ा' में स्थित है, जो जैनाबाद का उपग्राम है। यह सराय बहुत विशाल है, जिसका भीतरी भाग लगभग 250x250 फ़ुट है। इसके चारों ओर दोहरे कमरे बने हुए हैं, जिनकी छत समतल है। इन कमरों की संखया लगभग 150 है। प्रत्येक कमरा 12x12 फ़ुट का है, और ऊँचाई भी लगभग 12 फ़ुट ही है। इसका मुखय द्वार 20 फ़ुट ऊँचा है। इसमें 8 कमरे बने हैं। यह सराय पूर्णतः ईंट, चूना और पत्थर से निर्मित है। इसका अधिकांश भाग खंडहर में परिवर्तित है।[1]

सराय की उत्तर दिशा में बहुत ही सुंदर एवं विशाल मस्जिद खंडित अवस्था मे है। 10 मेहराब और 6 दालान की यह मस्जिद फ़ारूक़ी शासनकाल की उत्तम यादगार है। इसकी छत गिर चुकी है, परंतु पत्थरों की कुर्सियाँ आज भी मौजूद हैं, जिन पर सुंदर बेल-बूटे तराशे गए हैं। मस्जिद की पश्चिमी दीवार आज भी अच्छी स्थिति में है। उस पर बने हुए सुंदर आले मेहराबें, भारतीय अर्थात् हिन्दू मुस्लिम स्थापत्य कला का दर्शनीय नमूना है। अहाते की दोनों ओर हुजरे बने हुए हैं, जो अब टूट चुके हैं। सेहन में छत का मलबा पड़ा है। विशाल सेहन मे कटीली झाडियाँ और घास-फूँस उगी हुई हैं। मस्जिद वीरान पडी है। मस्जिद के 60 फ़ुटे ऊँच दो मीनार, आज भी अच्छी स्थिति में है। इनकी बनावट 'बीबी की मस्जिद' के मीनारों की भाँति है।

अंग्रेज़ों का अधिकार

मस्जिद ईंट, चूना और पत्थरो से निर्मित है। सराय के साथ तत्समय निर्मित महलों की खंडित दीवारें आज भी दिखाई देती हैं। ये खंडहर उन भवनों की भवरूपता को स्वयं प्रमाणित करते हैं। सराय की पश्चिम दिशामें फ़ारूक़ी काल के प्रसिद्ध सूफ़ी संत 'हज़रत पीरशाह चिश्ती कादरी' (प्यारे मियाँ) का काले पत्थरो से निर्मित मक़बरा है। पास ही उनका तकिया (मठ) भी है, और 3 मकान, दो दालान वाली ईंट, चूना और पत्थर की बनी सुंदर मस्जिद है। सन् 1860 में जैनाबाद अंग्रेजों के अधीन चला गया। अंग्रेज़ शासन के प्रारंभिक वर्षों में यह परगने का मुख्यालय था। आज भी जैनाबाद के खंडित भक्त और उनकी टूटी दीवारें अपने शानदार अतीत की यादों को ताज़ा कर देती है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 जैनाबाद (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 20 जून, 2011।

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