एरण

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एरण मध्य प्रदेश के सागर ज़िले में विदिशा के निकट बेतवा नदी के किनारे विन्ध्याचल पर्वतमालाओं के उत्तर में एक पठार पर स्थित एक वैष्णव क्षेत्र है, जो मंदिरों की एक महान् श्रंखला के रूप में जाना जाता है। इस स्थल पर चार सांस्कृतिक स्तर मिले हैं। प्रथम ताम्राश्मीय कालीन, द्वितीय लौहयुगीन तथा अन्य दो परवर्ती हैं। यहाँ से पंचमार्क सिक्कों के भारी भण्डार मिले हैं।

इतिहास

एरण गुप्तकाल में एक महत्त्वपूर्ण नगर था। यहाँ से गुप्तकाल के अनेक अभिलेख प्राप्त हुये है। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के एक शिलालेख में एरण को 'एरकिण' कहा गया है। इस अभिलेख को कनिंघम ने खोजा था। यह वर्तमान में कोलकाता संग्रहालय में सुरक्षित है। यह भग्नावस्था में हैं। फिर भी जितना बचा है, उससे समुद्रगुप्त के बारे में काफ़ी जानकारी प्राप्त होती है। इसमें समुद्रगुप्त की वीरता, सम्पत्ति-भण्डार, पुत्र-पौत्रों सहित यात्राओं पर उसकी वीरोचित धाक का विशद वर्णन है।

यहाँ गुप्त सम्राट बुद्धगुप्त का भी अभिलेख प्राप्त हुआ है। इससे ज्ञात होता है, कि पूर्वी मालवा भी उसके साम्राज्य में शामिल था। इसमें कहा गया है कि बुद्धगुप्त की अधीनता में यमुना और नर्मदा नदी के बीच के प्रदेश में 'महाराज सुरश्मिचन्द्र' शासन कर रहा था।

एरण प्रदेश में उसकी अधीनता में मातृविष्णु शासन कर रहा था। यह लेख एक स्तम्भ पर ख़ुदा हुआ है, जिसे ध्वजास्तम्भ कहते हैं। इसका निर्माण महाराज मातृविष्णु तथा उसके छोटे भाई धन्यगुप्त ने करवाया था। यह आज भी अपने स्थान पर अक्षुण्ण है। यह स्तम्भ 43 फुट ऊँचा और 13 फुट वर्गाकार आधार पर खड़ा किया गया है। इसके ऊपर 5 फुट ऊँची गरुड़ की दोरुखी मूर्ति है, जिसके पीछे चक्र का अंकन है।

सती अभिलेख

एरण से एक अन्य अभिलेख प्राप्त हुआ है, जो 510 ई. का है। इसे 'भानुगुप्त का अभिलेख' कहते हैं। अनुमान है कि भानुगुप्त राजवंश से सम्बन्धित था। यह लेख महाराज भानुगुप्त के अमात्य गोपराज के विषय में जो उस स्थान पर भानुगुप्त के साथ सम्भवतः किसी युद्ध में आया था और वीरगति को प्राप्त हुआ था। गोपराज की पत्नी यहाँ सती हो गई थी। इस अभिलेख को एरण का सती अभिलेख भी कहा जाता है। एरण से प्राप्त एक वराह मूर्ति के अभिलेख में हूण शासक तोरमाण और उसके प्रथम वर्ष का उल्लेख है। इसमें दिवंगत महाराज मातृविष्णु के छोटे भाई धन्यविष्णु द्वारा वराह विष्णु के निमित्त मन्दिर निर्माण करवाने का उल्लेख है। एरण में गुप्तकालीन नृसिंह मन्दिर, वराह मन्दिर तथा विष्णु मन्दिर पाये गये हैं। ये सब अब ध्वस्त अवस्था में हैं।

वास्तुशिल्प

एरण के मन्दिरों में उत्कीर्ण मूर्तिकला गुप्त काल के दौरान विकसित की गयी थी। एरण में मिले अभिलेख, समुद्रगुप्त के शासनकाल से लेकर छठी शताब्दी के प्रारंभ में हूण आक्रमण के समय की कलात्मक गतिविधियों के दस्तावेज है। यहाँ मिली वाराह की वृहद् मूर्ति पांचवी शताब्दी के प्रारंभ में एरण व उदयगिरि के मध्य कलात्मक विकास व मूर्तिकला के परस्पर संबंधों को दर्शाती है। जिसमें देवी-देवताओं की शक्ति को पूरी तरह से शरीर के भाव और उसकी भंगिमा द्वारा प्रदर्शित किया गया है।

एरकिण गुप्तकाल में अवश्य ही महत्वपूर्ण नगर रहा होगा। इसको एक लेख में स्वभोगनगर भी कहा गया है। यह नाम शायद समुद्रगुप्त ने एरण को दिया था। स्थानीय जनश्रुति के अनुसार इस स्थान पर महाभारत काल में विराटनगर की स्थिति थी। आज भी अनेक प्राचीन खंडहर यहां बिखरे पड़े हैं। पिछले वर्षों में सागर विश्वविद्यालय ने यहां उत्खनन द्वारा अनेक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों का उद्घाटन किया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 111-112| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार


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