"थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ -मीरां": अवतरणों में अंतर

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राग प्रभाती
राग प्रभाती


थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ,मैं हाजिर-नाजिर कद की खड़ी॥
थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ,मैं हाजिर-नाजिर क़द की खड़ी॥
साजणियां दुसमण होय बैठ्या, सबने लगूं कड़ी।
साजणियां दुसमण होय बैठ्या, सबने लगूं कड़ी।
तुम बिन साजन कोई नहिं है, डिगी नाव मेरी समंद अड़ी॥
तुम बिन साजन कोई नहिं है, डिगी नाव मेरी समंद अड़ी॥

12:28, 20 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

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थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ -मीरां
मीरांबाई
मीरांबाई
कवि मीरांबाई
जन्म 1498
जन्म स्थान मेरता, राजस्थान
मृत्यु 1547
मुख्य रचनाएँ बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद, राग सोरठ के पद
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
मीरांबाई की रचनाएँ

राग प्रभाती

थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ,मैं हाजिर-नाजिर क़द की खड़ी॥
साजणियां दुसमण होय बैठ्या, सबने लगूं कड़ी।
तुम बिन साजन कोई नहिं है, डिगी नाव मेरी समंद अड़ी॥
दिन नहिं चैन रैण नहीं निदरा, सूखूं खड़ी खड़ी।
बाण बिरह का लग्या हिये में, भूलुं न एक घड़ी॥
पत्थर की तो अहिल्या तारी बन के बीच पड़ी।
कहा बोझ मीरा में करिये सौ पर एक धड़ी॥

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