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'''खासी पहाड़ी''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Khasi Phahadi'') खासी पहाड़ियाँ मध्य [[मेघालय]] राज्य में पूर्वोत्तर [[भारत]] में स्थित है।  
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*दक्षिण में स्थित चेरापूंजी विश्व में सर्वाधिक औसत वर्षा वाला क्षेत्र है। नयनाभिराम सुंदरता के कारण खासी पर्वतीय क्षेत्र को ''''पूर्व का स्कॉटलैंड'''' भी कहा जाता है।  
*मेघालय की राजधानी शिलांग से बाहर की जनता का अधिकांश हिस्सा कृषि कार्य में संलग्न है, जिसमें घाटियों और पहाड़ की ढलानों पर सीढ़ीदार खेतों में उगाया जाने वाला चावल प्रमुख फ़सल है।  
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*मेघालय की राजधानी शिलांग से बाहर की जनता का अधिकांश हिस्सा कृषि कार्य में संलग्न है, जिसमें घाटियों और पहाड़ की ढलानों पर सीढ़ीदार खेतों में उगाया जाने वाला चावल प्रमुख फ़सल है। [[चित्र:Khasi-Hills-1.jpg|thumb|खासी पहाड़ियाँ, [[मेघालय]]]]
 
*इस क्षेत्र के अन्य किसान झूम खेती करते हैं, वे पेड़ों को जलाकर भूमि साफ़ करके एक या दो वर्ष तक खेती करने के बाद अन्यत्र चले जाते हैं।  
 
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खासी पहाड़ियाँ
खासी पहाड़ियाँ, मेघालय
विवरण 'खासी पहाड़ी' का अधिकांश इलाक़ा पहाड़ी है, जिसमें शिलांग पठार शामिल है, यहाँ का अपवाह ब्रह्मपुत्र और सूरमा नदियों की सहायक धाराओं द्वारा होता है।
देश भारत
राज्य मेघालय
ज़िला शिलांग
निर्देशांक 25° 35′ 0″ उत्तर, 91° 38′ 0″ पूर्व
मानचित्र लिंक गूगल मानचित्र
संबंधित लेख मेघालय, ब्रह्मपुत्र, शिलांग, ईसाई धर्म
अन्य जानकारी मेघालय की राजधानी शिलांग से बाहर की जनता का अधिकांश हिस्सा कृषि कार्य में संलग्न है, जिसमें घाटियों और पहाड़ की ढलानों पर सीढ़ीदार खेतों में उगाया जाने वाला चावल प्रमुख फ़सल है।

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खासी पहाड़ी (अंग्रेज़ी:Khasi Phahadi) खासी पहाड़ियाँ मध्य मेघालय राज्य में पूर्वोत्तर भारत में स्थित है।

  • यहाँ का अधिकांश इलाक़ा पहाड़ी है, जिसमें शिलांग पठार शामिल है, यहाँ का अपवाह ब्रह्मपुत्र और सूरमा नदियों की सहायक धाराओं द्वारा होता है।
  • दक्षिण में स्थित चेरापूंजी विश्व में सर्वाधिक औसत वर्षा वाला क्षेत्र है। नयनाभिराम सुंदरता के कारण खासी पर्वतीय क्षेत्र को 'पूर्व का स्कॉटलैंड' भी कहा जाता है।
  • मेघालय की राजधानी शिलांग से बाहर की जनता का अधिकांश हिस्सा कृषि कार्य में संलग्न है, जिसमें घाटियों और पहाड़ की ढलानों पर सीढ़ीदार खेतों में उगाया जाने वाला चावल प्रमुख फ़सल है।
    खासी पहाड़ियाँ, मेघालय
  • इस क्षेत्र के अन्य किसान झूम खेती करते हैं, वे पेड़ों को जलाकर भूमि साफ़ करके एक या दो वर्ष तक खेती करने के बाद अन्यत्र चले जाते हैं।
  • सरकार इस अपव्ययकारी पद्धति को हतोत्साहित कर रही है और बदले में पारंपरिक खेती की भूमि पर स्थायी व्यवस्था पर ज़ोर दे रही है।
  • खासी लोगों की विशेष संस्कृति में मातृवंशीय सामाजिक व्यवस्था की परंपरा है, जो बाहरी धर्मों और आधुनिक क़ानूनी प्रभावों के कारण बदल रही है। पहाड़ी लोगों में से कई ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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