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*दीक्षा प्राप्ति के पश्चात दो वर्षों तक कठिन तप करने के बाद धर्मनाथ ने [[पौष माह]] की [[पूर्णिमा]] तिथि को रत्नपुरी में ही 'दधिपर्ण' वृक्ष के नीचे 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त किया।
 
*दीक्षा प्राप्ति के पश्चात दो वर्षों तक कठिन तप करने के बाद धर्मनाथ ने [[पौष माह]] की [[पूर्णिमा]] तिथि को रत्नपुरी में ही 'दधिपर्ण' वृक्ष के नीचे 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त किया।
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*कई वर्षों तक साधक जीवन व्यतीत करने के बाद [[ज्येष्ठ मास|ज्येष्ठ]] शुक्ल [[पंचमी]] को भगवान धर्मनाथ ने [[सम्मेद शिखर]] पर [[निर्वाण]] प्राप्त किया।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Jainism/Tirthankar/Dharmnath|title=श्री धर्मनाथ जी|accessmonthday=27 फ़रवरी|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
  
 
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10:17, 28 फ़रवरी 2012 का अवतरण

धर्मनाथ जैन धर्म के पन्द्रहवें तीर्थंकर थे। धर्मनाथ जी का जन्म रत्नपुरी के इक्ष्वाकु वंश के राजा भानु की धर्मपत्नी माता सुव्रता देवी के गर्भ से माघ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को पुष्य नक्षत्र में हुआ था। इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण और चिह्न वज्र था।

  • धर्मनाथ के यक्ष का नाम किन्नर और यक्षिणी का नाम कंदर्पा देवी था।
  • जैन धर्म के अनुयायियों के अनुसार भगवान धर्मनाथ जी के गणधरों की कुल संख्या 43 थी, जिनमें अरिष्ट स्वामी उनके प्रथम गणधर थे।
  • धर्मनाथ ने माघ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को अयोध्या में दीक्षा की प्राप्ति की थी।
  • दीक्षा प्राप्ति के पश्चात दो वर्षों तक कठिन तप करने के बाद धर्मनाथ ने पौष माह की पूर्णिमा तिथि को रत्नपुरी में ही 'दधिपर्ण' वृक्ष के नीचे 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त किया।
  • कई वर्षों तक साधक जीवन व्यतीत करने के बाद ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को भगवान धर्मनाथ ने सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री धर्मनाथ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2012।

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