हरिभद्र

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हरिभद्र विक्रम संवत आठवीं शती के विश्रुत दार्शनिक तथा नैयायिक थे। कुछ विद्वानों ने इन्हें 'हरिभद्र सूरी' भी कहकर सम्बोधित किया है। हरिभद्र अप्रामाणिक जैन लेखकों में से एक थे, जो जैन सिद्धांतों तथा नीति पर संस्कृत तथा प्राकृत में अपनी आधिकारिक कृतियों के लिए विख्यात थे।

  1. अनेकान्तजयपताका
  2. अनेकान्तवादप्रवेश
  3. शास्त्रवार्तासमुच्चय
  4. षड्दर्शनसमुच्चय
  5. जैनन्याय
  • यद्यपि उपरोक्त रचनाओं का कोई स्वतंत्र न्याय का ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है, किन्तु हरिभद्र के इन दर्शन ग्रंथों में न्याय की भी चर्चा मिलती है।
  • हरिभद्र का षड्दर्शन-समुच्चय तो ऐसा दर्शन ग्रन्थ है, जिसमें भारतीय प्राचीन छहों दर्शनों का विवेचन सरल और विशद रूप में किया गया है तथा जैन दर्शन को अच्छी तरह स्पष्ट किया गया है। इसके द्वारा जैनेतर विद्वानों को जैन दर्शन का सही आकलन हो जाता है।


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