"लघु अनन्तवीर्य" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
(नया पन्ना: {{Menu}} ==लघु अनन्तवीर्य / Laghu Anantvirya== *इन्होंने माणिक्यनन्दि के परीक्षाम...) |
प्रीति चौधरी (चर्चा | योगदान) |
||
(5 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 8 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | |||
− | |||
*इन्होंने [[माणिक्यनन्दि]] के परीक्षामुख पर मध्यम परिमाण की विशद एवं सरल वृत्ति लिखी है, जिसे 'प्रमेयरत्नमाला' कहा जाता है। | *इन्होंने [[माणिक्यनन्दि]] के परीक्षामुख पर मध्यम परिमाण की विशद एवं सरल वृत्ति लिखी है, जिसे 'प्रमेयरत्नमाला' कहा जाता है। | ||
*विद्यार्थियों और जैन न्याय के विज्ञासुओं के लिए यह बड़ी उपयोग एवं बोधप्रद है। | *विद्यार्थियों और जैन न्याय के विज्ञासुओं के लिए यह बड़ी उपयोग एवं बोधप्रद है। | ||
*इन्होंने परीक्षामुख को [[अकलंकदेव]] के दुरुगाह न्यायग्रन्थसमुच्चयरूप [[समुद्र मंथन|समुद्र का मन्थन]] करके निकाला गया 'न्यायविद्यामृत' बतलाया है। | *इन्होंने परीक्षामुख को [[अकलंकदेव]] के दुरुगाह न्यायग्रन्थसमुच्चयरूप [[समुद्र मंथन|समुद्र का मन्थन]] करके निकाला गया 'न्यायविद्यामृत' बतलाया है। | ||
*वस्तुत: अनन्तवीर्य का यह कथन काल्पनिक नहीं है। | *वस्तुत: अनन्तवीर्य का यह कथन काल्पनिक नहीं है। | ||
− | *हमने 'परीक्षामुख और उसका उद्गम' शीर्षक लेख में अनुसन्धान पूर्वक विमर्श किया है, और यथार्थ में 'परीक्षामुख' अकलंक के न्याय-ग्रन्थों का दोहन है। | + | *हमने 'परीक्षामुख और उसका उद्गम' शीर्षक लेख में अनुसन्धान पूर्वक विमर्श किया है, और यथार्थ में 'परीक्षामुख' [[अकलंक]] के न्याय-ग्रन्थों का दोहन है। |
*[[विद्यानन्द]] के ग्रन्थों का भी उस पर प्रभाव रहा है। | *[[विद्यानन्द]] के ग्रन्थों का भी उस पर प्रभाव रहा है। | ||
− | *इनका समय | + | *इनका समय वि. सं. की 12वीं शती है। |
− | [[Category:कोश]] | + | ==संबंधित लेख== |
+ | {{जैन धर्म2}} | ||
+ | {{जैन धर्म}} | ||
+ | [[Category:दर्शन कोश]] | ||
[[Category:जैन_दर्शन]] | [[Category:जैन_दर्शन]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
06:10, 27 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
- इन्होंने माणिक्यनन्दि के परीक्षामुख पर मध्यम परिमाण की विशद एवं सरल वृत्ति लिखी है, जिसे 'प्रमेयरत्नमाला' कहा जाता है।
- विद्यार्थियों और जैन न्याय के विज्ञासुओं के लिए यह बड़ी उपयोग एवं बोधप्रद है।
- इन्होंने परीक्षामुख को अकलंकदेव के दुरुगाह न्यायग्रन्थसमुच्चयरूप समुद्र का मन्थन करके निकाला गया 'न्यायविद्यामृत' बतलाया है।
- वस्तुत: अनन्तवीर्य का यह कथन काल्पनिक नहीं है।
- हमने 'परीक्षामुख और उसका उद्गम' शीर्षक लेख में अनुसन्धान पूर्वक विमर्श किया है, और यथार्थ में 'परीक्षामुख' अकलंक के न्याय-ग्रन्थों का दोहन है।
- विद्यानन्द के ग्रन्थों का भी उस पर प्रभाव रहा है।
- इनका समय वि. सं. की 12वीं शती है।