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*इन्होंने परीक्षामुख को [[अकलंकदेव]] के दुरुगाह न्यायग्रन्थसमुच्चयरूप [[समुद्र मंथन|समुद्र का मन्थन]] करके निकाला गया 'न्यायविद्यामृत' बतलाया है।  
 
*इन्होंने परीक्षामुख को [[अकलंकदेव]] के दुरुगाह न्यायग्रन्थसमुच्चयरूप [[समुद्र मंथन|समुद्र का मन्थन]] करके निकाला गया 'न्यायविद्यामृत' बतलाया है।  
 
*वस्तुत: अनन्तवीर्य का यह कथन काल्पनिक नहीं है।  
 
*वस्तुत: अनन्तवीर्य का यह कथन काल्पनिक नहीं है।  
*हमने 'परीक्षामुख और उसका उद्गम' शीर्षक लेख में अनुसन्धान पूर्वक विमर्श किया है, और यथार्थ में 'परीक्षामुख' अकलंक के न्याय-ग्रन्थों का दोहन है।  
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*हमने 'परीक्षामुख और उसका उद्गम' शीर्षक लेख में अनुसन्धान पूर्वक विमर्श किया है, और यथार्थ में 'परीक्षामुख' [[अकलंक]] के न्याय-ग्रन्थों का दोहन है।  
 
*[[विद्यानन्द]] के ग्रन्थों का भी उस पर प्रभाव रहा है।  
 
*[[विद्यानन्द]] के ग्रन्थों का भी उस पर प्रभाव रहा है।  
 
*इनका समय वि. सं. की 12वीं शती है।  
 
*इनका समय वि. सं. की 12वीं शती है।  

06:10, 27 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण

  • इन्होंने माणिक्यनन्दि के परीक्षामुख पर मध्यम परिमाण की विशद एवं सरल वृत्ति लिखी है, जिसे 'प्रमेयरत्नमाला' कहा जाता है।
  • विद्यार्थियों और जैन न्याय के विज्ञासुओं के लिए यह बड़ी उपयोग एवं बोधप्रद है।
  • इन्होंने परीक्षामुख को अकलंकदेव के दुरुगाह न्यायग्रन्थसमुच्चयरूप समुद्र का मन्थन करके निकाला गया 'न्यायविद्यामृत' बतलाया है।
  • वस्तुत: अनन्तवीर्य का यह कथन काल्पनिक नहीं है।
  • हमने 'परीक्षामुख और उसका उद्गम' शीर्षक लेख में अनुसन्धान पूर्वक विमर्श किया है, और यथार्थ में 'परीक्षामुख' अकलंक के न्याय-ग्रन्थों का दोहन है।
  • विद्यानन्द के ग्रन्थों का भी उस पर प्रभाव रहा है।
  • इनका समय वि. सं. की 12वीं शती है।

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