धूरि भरे अति शोभित श्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी। खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनिया कटि पीरी कछौटी।। वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी काग के भाग कहा कहिए हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।।