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− | '''शंकर | + | '''शंकर दत्तात्रेय देव''' (जन्म- [[4 जनवरी]], [[1894]], [[पुणे]]) [[महाराष्ट्र]] के प्रसिद्ध गांधीवादी नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने [[मराठी भाषा]] में अनेक पत्रों का प्रकाशन और संपादन भी किया है। |
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+ | महाराष्ट्र के प्रसिद्ध गांधीवादी नेता शंकर दत्तात्रेय देव का जन्म 4 जनवरी 1894 ईसवी को पुणे जिले की भोर नामक एक छोटी रियासत में एक निर्धन परिवार में हुआ था| ढाई वर्ष के थे, तभी माता का देहांत हो गया और नाना ने उनकी देखभाल की। कुछ दिन पुणे में पढ़ने के बाद शंकर बड़ौदा चले आए और कॉलेज में भर्ती हो गए। यहां उनके सहपाठी थे विनोबा भावे छगनलाल जोशी (जो बाद में साबरमती आश्रम के सचिव बने) एन.वी. गाडगिल आदि। शंकर कानून की पढ़ाई कर रहे थे, तभी गांधी जी के आह्वान पर उन्होंने छोड़ दिया। तब से वह जीवन पर्यंत स्वतंत्रता संग्राम और गांधी जी के रचनात्मक कार्यों में जुड़े रहे। | ||
+ | 1919 में शंकर ने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के साथ चंपारन बिहार के गांव में घूमकर किसानों की दशा का अध्ययन किया फिर वे सेनापति बाप्टे के साथ पुणे के सत्याग्रह में सम्मिलित हुए और गिरफ्तार कर लिए गए। 1923 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस बार की जेल यात्रा में आषाढ़ एकादशी के दिन व्रत रखने और काम न करने के कारण उन्हें जेल में ही 30 बेंतों की कठोर सजा दी गई। बेंत लगते समय बेहोश होने तक वे महात्मा गांधी की जय बोलते रहे। महाराष्ट्र में प्रदेश कांग्रेस कमेटी की स्थापना का श्रेय शंकर दत्तात्रेय को है। 1923 से 1925 तक उन्होंने बारदोली के किसान सत्याग्रह के संचालन में सरदार पटेल का साथ दिया। 1927 में अंग्रेजों की 'फूट डालो और राज करो' की नीति का विरोध करने पर उन्हें 2 वर्ष की सजा फिर भोगनी पड़ी। उसके बाद 1930 के नमक सत्याग्रह, 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में भी वे जेल गए। विनोबा भावे द्वारा संचालित भूदान आंदोलन के भी शंकर सक्रिय कार्यकर्ता थे। | ||
+ | शंकर दत्तात्रेय अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने मराठी भाषा के अनेक पत्रों का प्रकाशन और संपादन किया। रचनात्मक कार्य कर्ता के प्रशिक्षण के लिए उन्होंने पुणे जिले में एक आश्रम की स्थापना की थी। कांग्रेस संगठन से उनका निकट का संबंध था 1946 से 1950 तक वे कांग्रेस के महासचिव थे। संपूर्ण जीवन देश सेवा को समर्पित करने के उद्देश्य से वे आजीवन अविवाहित रहे। | ||
+ | भारतीय चरित्र कोश 822 |
08:46, 14 जुलाई 2018 का अवतरण
शंकर दत्तात्रेय देव (जन्म- 4 जनवरी, 1894, पुणे) महाराष्ट्र के प्रसिद्ध गांधीवादी नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने मराठी भाषा में अनेक पत्रों का प्रकाशन और संपादन भी किया है।
परिचय
महाराष्ट्र के प्रसिद्ध गांधीवादी नेता एवं स्वतंत्रता सेनानी शंकर दत्तात्रेय देव का जन्म 4 जनवरी 1894 ई. को पुणे जिले की भोर नामक एक छोटी रियासत में एक निर्धन परिवार में हुआ था। ढाई वर्ष की उम्र में ही इनकी माता का देहांत हो गया और नाना ने उनकी देखभाल की। वे कुछ दिन पुणे में पढ़ने के बाद बड़ौदा आ गये और कॉलेज में पड़ाई की। यहां पर विनोबा भावे, छगनलाल जोशी, एन. वी. गाडगिल जैसे उनके सहपाठी थे। गांधीजी के आह्वान पर शंकर ने कानून की पढ़ाई को छोड़कर कर जीवन पर्यंत स्वतंत्रता संग्राम और गांधीजी के रचनात्मक कार्यों में जुड़ गये। महाराष्ट्र में प्रदेश कांग्रेस कमेटी की स्थापना का श्रेय शंकर दत्तात्रेय को है।[1]
स्वतंत्रता संग्राम और जेल यात्रा
1919 में शंकर ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ चंपारन (बिहार) के गांव में घूमकर किसानों की दशा का अध्ययन किया फिर वे सेनापति बाप्टे के साथ पुणे के सत्याग्रह में सम्मिलित हो गये और गिरफ्तार कर लिए गए। 1923 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तो जेल में आषाढ़ एकादशी के दिन व्रत रखने और काम न करने के कारण उन्हें जेल में ही 30 बेंतों की कठोर सजा दी गई। बेंत से मार खाते-खाते बेहोश होने तक वे महात्मा गांधी की जय बोलते रहे। 1923 से 1925 तक उन्होंने बारदोली के किसान सत्याग्रह के संचालन में सरदार पटेल का साथ दिया। 1927 में अंग्रेजों की 'फूट डालो और राज करो' की नीति का विरोध करने पर उन्हें 2 वर्ष की सजा फिर भोगनी पड़ी। उसके बाद 1930 के नमक सत्याग्रह, 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में भी वे जेल गए।
रचनात्मक कार्य
शंकर दत्तात्रेय देव रचनात्मक कार्यकर्ता तो थे ही उन्होंने रचनात्मक कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए पुणे जिले में एक आश्रम की स्थापना की थी। विनोबा भावे द्वारा संचालित भूदान आंदोलन के भी सक्रिय कार्यकर्ता थे। वे एक अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने मराठी भाषा के अनेक पत्रों का प्रकाशन और संपादन किया। कांग्रेस संगठन से उनका निकट का संबंध था 1946 से 1950 तक वे कांग्रेस के महासचिव थे। संपूर्ण जीवन देश सेवा करने के लिये वे आजीवन अविवाहित रहे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 822 |
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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महाराष्ट्र के प्रसिद्ध गांधीवादी नेता शंकर दत्तात्रेय देव का जन्म 4 जनवरी 1894 ईसवी को पुणे जिले की भोर नामक एक छोटी रियासत में एक निर्धन परिवार में हुआ था| ढाई वर्ष के थे, तभी माता का देहांत हो गया और नाना ने उनकी देखभाल की। कुछ दिन पुणे में पढ़ने के बाद शंकर बड़ौदा चले आए और कॉलेज में भर्ती हो गए। यहां उनके सहपाठी थे विनोबा भावे छगनलाल जोशी (जो बाद में साबरमती आश्रम के सचिव बने) एन.वी. गाडगिल आदि। शंकर कानून की पढ़ाई कर रहे थे, तभी गांधी जी के आह्वान पर उन्होंने छोड़ दिया। तब से वह जीवन पर्यंत स्वतंत्रता संग्राम और गांधी जी के रचनात्मक कार्यों में जुड़े रहे।
1919 में शंकर ने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के साथ चंपारन बिहार के गांव में घूमकर किसानों की दशा का अध्ययन किया फिर वे सेनापति बाप्टे के साथ पुणे के सत्याग्रह में सम्मिलित हुए और गिरफ्तार कर लिए गए। 1923 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस बार की जेल यात्रा में आषाढ़ एकादशी के दिन व्रत रखने और काम न करने के कारण उन्हें जेल में ही 30 बेंतों की कठोर सजा दी गई। बेंत लगते समय बेहोश होने तक वे महात्मा गांधी की जय बोलते रहे। महाराष्ट्र में प्रदेश कांग्रेस कमेटी की स्थापना का श्रेय शंकर दत्तात्रेय को है। 1923 से 1925 तक उन्होंने बारदोली के किसान सत्याग्रह के संचालन में सरदार पटेल का साथ दिया। 1927 में अंग्रेजों की 'फूट डालो और राज करो' की नीति का विरोध करने पर उन्हें 2 वर्ष की सजा फिर भोगनी पड़ी। उसके बाद 1930 के नमक सत्याग्रह, 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में भी वे जेल गए। विनोबा भावे द्वारा संचालित भूदान आंदोलन के भी शंकर सक्रिय कार्यकर्ता थे। शंकर दत्तात्रेय अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने मराठी भाषा के अनेक पत्रों का प्रकाशन और संपादन किया। रचनात्मक कार्य कर्ता के प्रशिक्षण के लिए उन्होंने पुणे जिले में एक आश्रम की स्थापना की थी। कांग्रेस संगठन से उनका निकट का संबंध था 1946 से 1950 तक वे कांग्रेस के महासचिव थे। संपूर्ण जीवन देश सेवा को समर्पित करने के उद्देश्य से वे आजीवन अविवाहित रहे।
भारतीय चरित्र कोश 822