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'''शारदा देवी''' (जन्म- [[22 सितंबर]], 1853, मृत्यु- [[20 जुलाई]], [[1920]]) [[रामकृष्ण परमहंस]] की जीवन संगिनी थीं। 6 वर्ष की शारदामणि का 23 वर्ष के रामकृष्ण के साथ [[विवाह]] हुआ था। कुछ वर्ष बाद रामकृष्ण परमहंस अपनी पत्नी शारदा देवी को दिव्य माता की प्रतिमूर्ति मानने लगे।
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'''शार्दूल सिंह कवीश्वर''' (जन्म- [[1886]], [[अमृतसर]])  स्वतंत्रता सेनानी और [[अंग्रेज|अंग्रेजों]] के कट्टर विरोधी थे। वे कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य चुने गये और बाद में [[सुभाष चंद्र बोस|सुभाष बाबू]] की [[फ़ारवर्ड ब्लॉक|'फ़ारवर्ड ब्लॉक]]' के अध्यक्ष बने।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
रामकृष्ण परमहंस की जीवन संगिनी शारदा देवी का जन्म [[22 सितंबर]], 1853 ई. को हुआ था। उनका बचपन का नाम शारदामणि था। उनके पिता रामचंद्र मुखोपाध्याय पुरोहिताई करने वाले साधारण [[ब्राह्मण]] थे। रामकृष्ण परमहंस [[कोलकाता]] के [[दक्षिणेश्वर मंदिर कोलकाता|दक्षिणेश्वर मंदिर]] में भक्ति में इतने मग्न रहते थे कि लोग उन्हें पागल समझने लगे। उनकी वृद्ध माता चंद्रमणि [[पुत्र]] की यह दशा देखकर चिंतित हुईं। वह यह सोच कर उन्हें अपने गांव कामारपुकुर ले आईं कि [[विवाह]] हो जाने से पुत्र की मानसिक स्थिति बदल जाएगी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=836|url=}}</ref>
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स्वतंत्रता सेनानी शार्दूल सिंह कवीश्वर का जन्म [[1886]] ई. में [[अमृतसर]] में हुआ था। [[पंजाब विश्वविद्यालय]] से स्नातक बनने के बाद उन्होंने [[सिख धर्म]] के संबंध में शोध कार्य आरंभ किया। [[1917]] में [[काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] आए और तभी [[कांग्रेस]] में सम्मिलित हो गए। [[असहयोग आंदोलन]] में भाग लेने के कारण उन्हें 5 वर्ष की कैद की सजा हुई। जेल में उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार हुआ और उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=837|url=}}</ref>
==वैवाहिक जीवन==
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==गतिविधियां==
शारदा देवी का जिस समय विवाह हुआ था, उस वक्त शारदा देवी की उम्र 6 वर्ष और रामकृष्ण परमहंस की 23 वर्ष थी। 14 वर्ष की उम्र में शारदा का द्विरागमन हुआ और वे अपनी ससुराल गईं। रामकृष्ण ज्यादातर दक्षिणेश्वर मंदिर में [[भक्ति]] में ही लीन रहते थे। शारदा वापिस अपने पिता के [[गांव]] जयरामबारी आ जातीं थीं। किसी तरह 4 वर्ष गुजर गए। एक बार  शारदा देवी रामकृष्ण की अस्वस्थता का समाचार सुनकर सीधे दक्षिणेश्वर मंदिर पहुंच गईं।  वे स्वयं भी बीमार थीं। स्वामीजी ने उनकी सेवा सुश्रुषा की और शारदा के रहने की व्यवस्था अलग कमरे में की गई।
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शार्दूल सिंह कवीश्वर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'इंडिया फाइट्स फॉर फ्रीडम' में लिखा है- काल्पनिक सुधारों से [[भारत]] भ्रमित नहीं होगा और हम अपने बल पर ही स्वराज प्राप्त करेंगे।  वे [[1920]], [[1932]] और [[1933]] में पंजाब कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। [[1928]] में कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य चुने गये थे। [[1939]] में जब [[सुभाष चंद्र बोस|सुभाष बाबू]] ने '[[फ़ारवर्ड ब्लॉक]]'  की स्थापना की तो शार्दुल सिंह कवीश्वर ने [[कांग्रेस]] छोड़ दी और वे 'फ़ारवर्ड ब्लॉक' के अध्यक्ष बन गये। उसके बाद ही उन्हें [[भारत]] रक्षा कानून के अंतर्गत गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। वह जब जेल से बाहर निकले तो [[अंग्रेज|अंग्रेजों]] के कट्टर विरोधी बन कर बाहर निकले।
==आध्यात्मिक ज्ञान==
 
रामकृष्ण परमहंस ने शारदा देवी को आध्यात्मिक ज्ञान दिया। एक दिन स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने 'दिव्य माता दुर्गा' की [[पूजा]] का अनुष्ठान किया और [[दुर्गा]] के लिए बने आसन पर शारदा देवी को बैठाकर उन्हें दंडवत प्रणाम किया। फिर बोले- "आज से तुम मेरी पत्नी नहीं मेरी दिव्य माता की प्रतिमूर्ति हो।" इस प्रकार शारदा देवी मां शारदा बन गईं। उन्होंने अपने स्वामी का मार्ग अपनाया। 1888 ई. में परमहंस के स्वर्गारोहण के समय तक वे उनके रिक्त स्थान की पूर्ति करने में समर्थ हो गईं।
 
==मृत्यु==
 
दिव्य माता की प्रतिमूर्ति शारदा देवी ने [[20 जुलाई]], [[1920]] ई. को देह त्याग दी।
 
  
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==संबंधित लेख==
 
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11:58, 17 जुलाई 2018 का अवतरण

शार्दूल सिंह कवीश्वर (जन्म- 1886, अमृतसर) स्वतंत्रता सेनानी और अंग्रेजों के कट्टर विरोधी थे। वे कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य चुने गये और बाद में सुभाष बाबू की 'फ़ारवर्ड ब्लॉक' के अध्यक्ष बने।

परिचय

स्वतंत्रता सेनानी शार्दूल सिंह कवीश्वर का जन्म 1886 ई. में अमृतसर में हुआ था। पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक बनने के बाद उन्होंने सिख धर्म के संबंध में शोध कार्य आरंभ किया। 1917 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय आए और तभी कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें 5 वर्ष की कैद की सजा हुई। जेल में उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार हुआ और उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया।[1]

गतिविधियां

शार्दूल सिंह कवीश्वर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'इंडिया फाइट्स फॉर फ्रीडम' में लिखा है- काल्पनिक सुधारों से भारत भ्रमित नहीं होगा और हम अपने बल पर ही स्वराज प्राप्त करेंगे। वे 1920, 1932 और 1933 में पंजाब कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। 1928 में कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य चुने गये थे। 1939 में जब सुभाष बाबू ने 'फ़ारवर्ड ब्लॉक' की स्थापना की तो शार्दुल सिंह कवीश्वर ने कांग्रेस छोड़ दी और वे 'फ़ारवर्ड ब्लॉक' के अध्यक्ष बन गये। उसके बाद ही उन्हें भारत रक्षा कानून के अंतर्गत गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। वह जब जेल से बाहर निकले तो अंग्रेजों के कट्टर विरोधी बन कर बाहर निकले।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 837 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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