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'''सत्येन्द्र चंद्र मित्रा''' (जन्म- [[23 दिसंबर]], [[1888]], [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]], मृत्यु- [[27 अक्टूबर]], [[1942]]) कुशल राजनीतिज्ञ एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। बंगाल की क्रांतिकारी 'युगांतर पार्टी' और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में समान रूप से सक्रिय रहे।
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'''सत्येन्द्रनाथ बोस''' (जन्म- [[30 जुलाई]], [[1882]], [[मिदनापुर ज़िला|मिदनापुर]], मृत्यु- [[21 नवंबर]], [[1908]]) प्रसिद्ध क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। वे गरम विचारों के क्रांतिकारी थे। एक मुखबिर को जेल के अंदर खत्म करा देने के कारण उन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया गया।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
[[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] की क्रांतिकारी 'युगांतर पार्टी' और [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के कार्यों में समान रूप से भाग लेने वाले सत्येंद्र चंद्र मित्रा का जन्म तत्कालीन बंगाल के नोआखली जिले में [[23 दिसंबर]], [[1888]] ई. को हुआ था। शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने [[कोलकाता उच्च न्यायालय|कोलकाता हाईकोर्ट]] में वकालत आरंभ की, पर उनका मुख्य उद्देश्य क्रांतिकारी गतिविधियों के द्वारा देश से विदेशी सत्ता को हटाना था। मित्रा इसके लिए 'युगांतर पार्टी' में सम्मिलित होकर उसकी गतिविधियों में भाग लेने लगे। इस बात का शीघ्र ही सरकार को पता चल गया और उन्हें गिरफ्तार करके [[1916]] में नजरबंद कर लिया। वे [[श्रमिक आंदोलन]] से भी संबद्ध रहे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=890|url=}}</ref>
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प्रसिद्ध क्रांतिकारी सत्येंद्रनाथ बोस का जन्म [[30 जुलाई]], [[1882]] ई. को [[मिदनापुर ज़िला|मिदनापुर]] में हुआ था। [[अरविंद घोष]] के प्रभाव से वे क्रांतिकारी आंदोलन के संपर्क में आए। अरविंद ने [[जतिन्द्र नाथ दास|जतिन बनर्जी]] को [[1902]] में [[बड़ौदा]] के लिये इस उद्देश्य से भेजा था कि वे [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] में क्रांतिकारियों के संगठन को बढ़ाएं। जतिन बनर्जी बाद में स्वामी निरालंब के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्हीं की प्रेरणा तथा [[स्वामी विवेकानंद]] और बैंकिंग के साहित्य के प्रभाव से सत्येंद्र नाथ बॉस ने युवकों को अपने दल में आकृष्ट करने के लिए 'छात्र भंडार' नामक संस्था बनाई। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य स्वदेशी का प्रचार करना था, लेकिन इस संस्था ने युवकों को क्रांतिकारी दल से जोड़ने का कार्य किया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=890|url=}}</ref>
==जेल यात्रा==
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==गरम स्वभाव==
सत्येन्द्र चंद्र मित्रा को  'युगांतर पार्टी' के द्वारा क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण सरकार ने [[1916]] में नजरबंद करके रखा था। [[1919]] में सत्येंद्र नजरबंदी से बाहर आए तो पुन: राजनैतिक एवं क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय हो गये। इसके बाद सरकार ने [[सुभाष चंद्र बोस]] के साथ उन्हें गिरफ्तार करके [[1927]] तक [[म्यांमार]] की मांडले जेल में डाल दिया।
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सत्येन्द्रनाथ बोस गरम स्वभाव के व्यक्ति थे। उनके विचार [[लोकमान्य तिलक]], [[अरविंद घोष|अरविंद]] आदि से मिलते थे। किंग्सफोर्ड की हत्या कराने के लिये [[खुदीराम बोस]] को सत्येंद्र बोस ने ही खोजा था। किंग्सफोर्ड पर आक्रमण की घटना के बाद अवैध तरीके से हथियार रखने के कारण सत्येंद्र बोस को 2 महीने की सजा हुई और उन्हें अलीपुर जेल भेज दिया गया। 
==उपलब्धियां==
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==मुखबिर की हत्या==
सत्येन्द्र चंद्र ने सुभाष चंद्र बोस और [[देशबंधु चितरंजन दास]] के साथ [[1920]] में [[कोलकाता]] के [[कांग्रेस]] के विशेष अधिवेशन में भाग लिया। वे राज्य कांग्रेस के पदाधिकारी थे लेकिन क्रांतिकारी गतिविधियों के लिये 'युगांतर पार्टी' से भी उनका संपर्क बना रहा। '[[स्वराज्य पार्टी]]' के उम्मीदवार के रूप में [[1924]] में बंगाल काउंसिल के सदस्य निर्वाचित हुए। इसके बाद वे  केंद्रीय असेंबली के सदस्य चुने गए। [[मोतीलाल नेहरू]] के नेतृत्व में सत्येंद्र चंद्र 'स्वराज्य पार्टी' के चीफ बने। [[1930]] की असहयोग की नीति से सहमत ना होने पर उन्होंने [[कांग्रेस]] छोड़ दी। बाद में वे [[1930]] में [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] की काउंसिल के सदस्य और अध्यक्ष चुने गए।
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सत्येन्द्रनाथ बोस ने जेल में एक वीरेन गोस्वामी नामके मुखबिर की हत्या करा दी थी। अलीपुर जेल में अलीपुर बम कांड के आरोपी [[अरविंद कुमार]], वीरेंद्र कुमार और हेमचंद्र भी विचाराधीन कैदी के रूप में बंद थे। उन्हीं में से एक वीरेन गोस्वामी सरकारी गवाह बन गया। उसे समाप्त करने के लिए चोरी छुपे जेल में हथियार मंगाए गए और उसकी हत्या करा दी गयी। सत्येंद्र नाथ पर इस हत्या का मुकदमा चला और इस क्रांतिकारी को [[21 नवंबर]], [[1908]] ई. को फांसी की सज़ा दे दी गयी।
==मृत्यु==
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==शहादत==
बंगाल की क्रांतिकारी 'युगांतर पार्टी' और [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के पदाधिकारी सत्येन्द्र चंद्र मित्रा का [[27 अक्टूबर]], [[1942]] को निधन हो गया।
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प्रसिद्ध क्रांतिकारी सत्येंद्रनाथ बोस का [[21 नवंबर]], [[1908]] ई. को फांसी के फंदे पर लटका दिये जाने के कारण निधन हो गया।
  
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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सत्येन्द्रनाथ बोस (जन्म- 30 जुलाई, 1882, मिदनापुर, मृत्यु- 21 नवंबर, 1908) प्रसिद्ध क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। वे गरम विचारों के क्रांतिकारी थे। एक मुखबिर को जेल के अंदर खत्म करा देने के कारण उन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया गया।

परिचय

प्रसिद्ध क्रांतिकारी सत्येंद्रनाथ बोस का जन्म 30 जुलाई, 1882 ई. को मिदनापुर में हुआ था। अरविंद घोष के प्रभाव से वे क्रांतिकारी आंदोलन के संपर्क में आए। अरविंद ने जतिन बनर्जी को 1902 में बड़ौदा के लिये इस उद्देश्य से भेजा था कि वे बंगाल में क्रांतिकारियों के संगठन को बढ़ाएं। जतिन बनर्जी बाद में स्वामी निरालंब के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्हीं की प्रेरणा तथा स्वामी विवेकानंद और बैंकिंग के साहित्य के प्रभाव से सत्येंद्र नाथ बॉस ने युवकों को अपने दल में आकृष्ट करने के लिए 'छात्र भंडार' नामक संस्था बनाई। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य स्वदेशी का प्रचार करना था, लेकिन इस संस्था ने युवकों को क्रांतिकारी दल से जोड़ने का कार्य किया।[1]

गरम स्वभाव

सत्येन्द्रनाथ बोस गरम स्वभाव के व्यक्ति थे। उनके विचार लोकमान्य तिलक, अरविंद आदि से मिलते थे। किंग्सफोर्ड की हत्या कराने के लिये खुदीराम बोस को सत्येंद्र बोस ने ही खोजा था। किंग्सफोर्ड पर आक्रमण की घटना के बाद अवैध तरीके से हथियार रखने के कारण सत्येंद्र बोस को 2 महीने की सजा हुई और उन्हें अलीपुर जेल भेज दिया गया।

मुखबिर की हत्या

सत्येन्द्रनाथ बोस ने जेल में एक वीरेन गोस्वामी नामके मुखबिर की हत्या करा दी थी। अलीपुर जेल में अलीपुर बम कांड के आरोपी अरविंद कुमार, वीरेंद्र कुमार और हेमचंद्र भी विचाराधीन कैदी के रूप में बंद थे। उन्हीं में से एक वीरेन गोस्वामी सरकारी गवाह बन गया। उसे समाप्त करने के लिए चोरी छुपे जेल में हथियार मंगाए गए और उसकी हत्या करा दी गयी। सत्येंद्र नाथ पर इस हत्या का मुकदमा चला और इस क्रांतिकारी को 21 नवंबर, 1908 ई. को फांसी की सज़ा दे दी गयी।

शहादत

प्रसिद्ध क्रांतिकारी सत्येंद्रनाथ बोस का 21 नवंबर, 1908 ई. को फांसी के फंदे पर लटका दिये जाने के कारण निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 890 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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