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'''शौकत उस्मानी''' (जन्म- [[21 दिसंबर]], [[1901]], [[बीकानेर]], [[राजस्थान]]) प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। श्रमिकों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए उन्होंने  'पयामे मजूर' नामक जैसे उर्दू साप्ताहिक का प्रकाशन किया। 
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'''श्यामलाल सराफ''' (जन्म- [[4 जुलाई]], [[1904]], [[श्रीनगर]]) एक राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी थे। कश्मीरी पंडित नेता श्याम लाल सराफ का [[कश्मीर]] की राजनीति में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
अपने समय के प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता शौकत उस्मानी का जन्म [[21 दिसंबर]], [[1901]] ई. को [[बीकानेर]], [[राजस्थान]] में हुआ था। उन्होंने कुछ दिन महाराजा कॉलेज में शिक्षा पाई, जहां डॉ. संपूर्णानंद उनके शिक्षक थे। उस्मानी शीघ्र ही [[खिलाफत आंदोलन]] के संपर्क में आए और [[1919]] में [[अफगानिस्तान]] चले गए। वहां से कुछ भारतीय युवकों के साथ मास्को पहुंचे और मार्क्सवादी साहित्य के प्रभाव से कम्युनिस्ट बन गए। श्रमिकों में प्रचार के लिए उन्होंने 'पयामे मजूर' नामक उर्दू साप्ताहिक का प्रकाशन किया था। उनकी पुस्तक 'फ्रॉम पेशावर टू मास्को' को लोगों ने बहुत पसंद किया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=859|url=}}</ref>
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कश्मीरी पंडित नेता श्याम लाल सराफ का जन्म [[4 जुलाई]], [[1904]] ई. को [[श्रीनगर]] में हुआ था। उन्होंने श्री प्रताप कॉलेज, श्रीनगर से अपनी शिक्षा पूरी की। कॉलेज में [[शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला]] उनके सहपाठी थे। सराफ ने कश्मीरी कला वस्तुओं के उत्पादन और बिक्री से सक्रिय जीवन आरम्भ किया और साथ ही सार्वजनिक कार्यों में भाग लेने लगे। उन्होंने 'सनातन धर्म युवक सभा' और हिंदू प्रोग्रेसिव पार्टी' की स्थापना की। [[1942]] से [[1946]] तक नेशनल कांफ्रेंस की कार्यसमिति के सदस्य और उस संस्था के कोषाध्यक्ष रहे। [[कश्मीर]] के [[हिंदू]] राजा के विरुद्ध मुस्लिम बहुमत ने जब आंदोलन आरंभ किया था तो जिन थोड़े से कश्मीरी पंडितों ने उनका साथ दिया, उनमें श्यामलाल सराफ  प्रमुख थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=861|url=}}</ref>
==आक्रमण की योजना==
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==राजनैतिक जीवन==
शौकत उस्मानी ने अपने साथियों के साथ मिलकर योजना बनाई कि [[अफगानिस्तान]] के रास्ते [[भारत]] पर आक्रमण करके ब्रिटिश सत्ता को समाप्त किया जाए। जब अफगानिस्तान नरेश अमानुल्ला ने इसकी अनुमति नहीं दी, तो कुछ लोग पामीर पठार के रास्ते आगे बढ़े पर ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। शौकत उस्मानी गुप्त रूप से [[1922]] में [[भारत]] पहुंचे और यहां के कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं से संपर्क करके श्रमिकों को संगठित करने का प्रयास करने लगे। [[उत्तर प्रदेश]] और [[पंजाब]] का मुख्य कार्य क्षेत्र था।
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श्यामलाल सराफ का [[कश्मीर]] की राजनीति में मुख्य स्थान था। [[1946]] में कश्मीर के [[स्वतंत्रता संग्राम]] में भाग लेने के कारण उन्हें 7 वर्ष की सजा हुई थी, पर [[1947]] में वे रिहा हो गए। [[1948]] में गठित [[कश्मीर]] के मंत्रिमंडल में श्याम लाल सराफ अनेक प्रमुख विभागों के मंत्री बने। [[1953]] में [[शेख़ अब्दुल्ला]] को [[मुख्यमंत्री]] के पद से हटाने में उनकी मुख्य भूमिका थी। कुल 5 सदस्यीय मंत्रिमंडल में सराफ सहित तीन ने सदरे रियासत कर्ण सिंह के पास शेख़ के प्रति अविश्वास प्रस्ताव भेज दिया था। जब बख्शी गुलाम मोहम्मद [[कश्मीर]] के मुख्यमंत्री बने तो उनके मंत्रिमंडल में भी सराफ महत्वपूर्ण मंत्री थे। [[1962]] में वे कश्मीर से लोकसभा सदस्य बने। जब नेशनल कांफ्रेंस [[कांग्रेस]] में सम्मिलित हुई तो श्यामलाल सराफ उसके अध्यक्ष चुने गये थे।
==आजीवन कारावास==
 
[[1923]] में शौकत उस्मानी को गिरफ्तार कर लिया गया और मेरठ षड्यंत्र केस में आजीवन कारावास की सजा हो गई। लेकिन [[1927]] में जब उन्हें जेल से छोड़ दिया गया तो वे फिर भूमिगत हो गए। [[जुलाई]] [[1928]] में कम्युनिस्ट अंतरराष्ट्रीय के छठे मास्को सम्मेलन में शौकत उस्मानी [[सिकंदर सूर]] के छद्म नाम से फिर प्रकट हुए थे।
 
  
  
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अपने समय के प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता  शौकत उस्मानी का जन्म 21 दिसंबर 1901 ईस्वी को बीकानेर राजस्थान में हुआ था।  उन्होंने कुछ दिन महाराजा कॉलेज में शिक्षा पाई, जहां डॉक्टर संपूर्णानंद उनके शिक्षक थे यह शीघ्र ही खिलाफत आंदोलन के संपर्क में आए और 1919 में अफगानिस्तान चले गए। वहां से कुछ भारतीय युवकों के साथ मास्को पहुंचे और मार्क्सवादी साहित्य के प्रभाव से कम्युनिस्ट बन गए।
 
 
7 नवंबर 1920 ताशकंद में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी अस्तित्व में आई।  इन लोगों की योजना थी कि अफगानिस्तान के रास्ते भारत पर आक्रमण करके ब्रिटिश सत्ता को समाप्त किया जाए जब अफगानिस्तान नरेश अमानुल्ला ने इसकी अनुमति नहीं दी,  तो कुछ लोग पामीर पठार के रास्ते आगे बढ़े पर ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।शौकत उस्मानी गुप्त रूप से 1922 में भारत पहुंचे और यहां की कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं से संपर्क करके श्रमिकों को संगठित करने का प्रयास करने लगे। उत्तर प्रदेश और पंजाब का मुख्य कार्य क्षेत्र था।  1923 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और मेरठ षड्यंत्र केस आजीवन कारावास की सजा हो गई। लेकिन 1927 में  जब उन्हें  जेल से छोड़ दिया गया तो वे फिर भूमिगत हो गए। जुलाई 1928 में कम्युनिस्ट अंतरराष्ट्रीय के छठे सम्मेलन में सिकंदर सूर के छद्म नाम से फिर प्रकट हुए थे।
 
श्रमिकों में प्रचार के लिए  उन्होंने  'पयामे मजूर'  नामक उर्दू साप्ताहिक  का प्रकाशन किया था।  उनकी पुस्तक  'फ्रॉम पेशावर टू मास्को' भी रुचि से पढ़ी गई।
 

12:37, 31 जुलाई 2018 का अवतरण

श्यामलाल सराफ (जन्म- 4 जुलाई, 1904, श्रीनगर) एक राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी थे। कश्मीरी पंडित नेता श्याम लाल सराफ का कश्मीर की राजनीति में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।

परिचय

कश्मीरी पंडित नेता श्याम लाल सराफ का जन्म 4 जुलाई, 1904 ई. को श्रीनगर में हुआ था। उन्होंने श्री प्रताप कॉलेज, श्रीनगर से अपनी शिक्षा पूरी की। कॉलेज में शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला उनके सहपाठी थे। सराफ ने कश्मीरी कला वस्तुओं के उत्पादन और बिक्री से सक्रिय जीवन आरम्भ किया और साथ ही सार्वजनिक कार्यों में भाग लेने लगे। उन्होंने 'सनातन धर्म युवक सभा' और हिंदू प्रोग्रेसिव पार्टी' की स्थापना की। 1942 से 1946 तक नेशनल कांफ्रेंस की कार्यसमिति के सदस्य और उस संस्था के कोषाध्यक्ष रहे। कश्मीर के हिंदू राजा के विरुद्ध मुस्लिम बहुमत ने जब आंदोलन आरंभ किया था तो जिन थोड़े से कश्मीरी पंडितों ने उनका साथ दिया, उनमें श्यामलाल सराफ प्रमुख थे।[1]

राजनैतिक जीवन

श्यामलाल सराफ का कश्मीर की राजनीति में मुख्य स्थान था। 1946 में कश्मीर के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उन्हें 7 वर्ष की सजा हुई थी, पर 1947 में वे रिहा हो गए। 1948 में गठित कश्मीर के मंत्रिमंडल में श्याम लाल सराफ अनेक प्रमुख विभागों के मंत्री बने। 1953 में शेख़ अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री के पद से हटाने में उनकी मुख्य भूमिका थी। कुल 5 सदस्यीय मंत्रिमंडल में सराफ सहित तीन ने सदरे रियासत कर्ण सिंह के पास शेख़ के प्रति अविश्वास प्रस्ताव भेज दिया था। जब बख्शी गुलाम मोहम्मद कश्मीर के मुख्यमंत्री बने तो उनके मंत्रिमंडल में भी सराफ महत्वपूर्ण मंत्री थे। 1962 में वे कश्मीर से लोकसभा सदस्य बने। जब नेशनल कांफ्रेंस कांग्रेस में सम्मिलित हुई तो श्यामलाल सराफ उसके अध्यक्ष चुने गये थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 861 |

बाहरी कड़ियाँ

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