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'''सयाजीराव गायकवाड़''' (जन्म- [[11 मार्च]], [[1863]], मृत्यु- [[6 फरवरी]], [[1939]]) बड़ौदा रियासत के राजा थे। वे स्वतंत्र प्रवृति के शासक थे। कुप्रथाओं के विरोधी एवं शिक्षा प्रेमी थे। उनके शासन काल में [[बड़ौदा]] देशी राज्यों में सबसे प्रगतिशील राज्य था।
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'''सर अब्दुल कादिर''' (जन्म- [[1874]], [[पंजाब]], [[फरवरी]], [[1950]], [[पाकिस्तान]]) न्यायविद, पत्रकार और राजनीतिज्ञ थे। वे पंजाब हाई कोर्ट के न्यायाधीश और बहावलपुर राज्य के मुख्य न्यायाधीश रहे।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
बड़ौदा रियासत के राजा सयाजीराव गायकवाड़ (तृतीय) का नाम गोपाल राव था। उनका जन्म 11 मार्च, [[1863]] ई. को एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। जब वे छोटे बालक ही थे तो [[अंग्रेज|अंग्रेजों]] ने [[बड़ौदा]] के [[मल्हारराव|महाराजा मल्हारराव]] को गद्दी से हटाकर गायकवाड़ खानदान का होने के कारण गोपाल राव को सयाजीराव गायकवाड़ (तृतीय) के नाम से गद्दी पर बैठा दिया। सयाजीराव को कोई शिक्षा नहीं मिली थी। अब उन्होंने [[मराठी]], [[गुजराती]] और [[उर्दू]] का अध्ययन आरंभ किया तथा नित्य 12-12 घंटे परिश्रम करके इसमें सफलता प्राप्त की। देसी रियासतें अंग्रेजों के प्रभुत्व में थी पर सयाजीराव स्वतंत्र प्रकृति के थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=897|url=}}</ref>
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न्यायविद, पत्रकार और राजनीतिज्ञ सर अब्दुल कादिर का जन्म [[1874]] ई. में [[पंजाब]] के कसूर नामक स्थान में हुआ था। [[इंग्लैंड]] से कानून की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने सरकारी वकील के रूप में काम आरंभ किया। बाद में पंजाब हाई कोर्ट के न्यायाधीश और बहावलपुर राज्य के मुख्य न्यायाधीश रहे। [[1920]] में कादर यूनियनिस्ट पार्टी की टिकट पर पंजाब प्रांतीय काउंसिल के सदस्य चुने गए पर बाद में [[मुस्लिम लीग]] में सम्मिलित हुए। कुछ दिन वे पंजाब के शिक्षामंत्री गवर्नर और वायसराय की एग्जीक्यूटिव के सदस्य भी रहे। <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=898|url=}}</ref>
==कुशल शासक==
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==साहित्यिक रुचि==
गायकवाड़ ब्रिटिश सम्राट की अधीनता मानते हुए भी स्वयं को [[भारत सरकार]] के अधीन नहीं मानते थे। उन्होंने अपनी रियासत के विकास के अनेक काम स्वेच्छा से किए। बड़ौदा राज्य में रेलों का जाल बिछाया। स्वेच्छा से अपनी सेना का गठन किया। [[साहित्य]], [[कला]] आदि के साथ-साथ इंजीनियरिंग तथा कपड़े बुनने की कला आदि सिखाने के लिए कला भवन की स्थापना की। शासन में चुनाव की प्रथा भी सबसे पहले [[बड़ौदा]] में ही शुरू हुई। पंचायत से लेकर असेंबली तक के चुनाव  कराए गए। बड़ौदा रियासत की ओर से योग्य छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाती थी। [[भीमराव अंबेडकर|डॉ अंबेडकर]] इस रियासत की छात्रवृत्ति लेकर ही विदेश अध्ययन के लिए गए थे।
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सर अब्दुल कादिर की विशेष प्रसिद्धि साहित्यिक रुचि के कारण हुई। [[उर्दू भाषा]] की पत्रिका 'मखजन' का अपने समय में बड़ा नाम था। कादिर की तीन पुस्तकें- न्यू स्कूल ऑफ उर्दू लिटरेचर'  'फेमस उर्दू पोएट्स एंड राइटर्स' तथा 'मकामे खिलाफत' विशेष प्रसिद्ध हुईं
==स्वतंत्र प्रवृति==
 
सयाजीराव की स्वतंत्र वृत्ति का ही परिणाम था कि [[अरविंद घोष|क्रांतिकारी अरविंद]] बड़ौदा कालेज के अध्यापक नियुक्त हुए और [[रमेश चंद्र दत्त]] कुछ वर्षों तक उनके दीवान थे। संत निहाल सिंह और [[वीर सावरकर]] आदि से उनकी मैत्री थी। अपनी विदेश यात्राओं में उन्होंने [[भीखाजी कामा|मदाम भीखाजी कामा]], [[श्यामजी कृष्ण वर्मा]], वीरेंद्र नाथ चट्टोपाध्याय आदि क्रांतिकारियों से भी संपर्क रखा।
 
==प्रगतिशील विचार==
 
वे शिक्षा के प्रेमी, धार्मिक विचारों में समन्वयवादी, अछूतों के उत्थान के लिए सचेष्ट और [[विवाह|अंतरजातीय विवाह]] के समर्थक थे। उनको शिक्षा प्रेम के कारण [[1924]] ई. में सयाजीराव गायकवाड़ को [[काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] का कुलपति बनाया गया था। सभी महिलाओं को पर्दे में रखने के विरोधी थे और उनकी उन्नति के लिये उन्होंने 'सयाजी विहार' नामक क्लब की स्थापना की थी। उनके प्रयत्न से [[बड़ौदा]] देशी राज्यों में सबसे प्रगतिशील राज्य बन गया था।
 
 
==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
बड़ौदा रियासत के राजा सयाजीराव गायकवाड़ का [[6 फरवरी]], [[1939]] ई. को निधन हो गया।
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न्यायविद, पत्रकार और राजनीतिज्ञ सर अब्दुल कादिर का [[फरवरी]], [[1950]] में [[पाकिस्तान]] में निधन हो गया।
  
 
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सर अब्दुल कादिर (जन्म- 1874, पंजाब, फरवरी, 1950, पाकिस्तान) न्यायविद, पत्रकार और राजनीतिज्ञ थे। वे पंजाब हाई कोर्ट के न्यायाधीश और बहावलपुर राज्य के मुख्य न्यायाधीश रहे।

परिचय

न्यायविद, पत्रकार और राजनीतिज्ञ सर अब्दुल कादिर का जन्म 1874 ई. में पंजाब के कसूर नामक स्थान में हुआ था। इंग्लैंड से कानून की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने सरकारी वकील के रूप में काम आरंभ किया। बाद में पंजाब हाई कोर्ट के न्यायाधीश और बहावलपुर राज्य के मुख्य न्यायाधीश रहे। 1920 में कादर यूनियनिस्ट पार्टी की टिकट पर पंजाब प्रांतीय काउंसिल के सदस्य चुने गए पर बाद में मुस्लिम लीग में सम्मिलित हुए। कुछ दिन वे पंजाब के शिक्षामंत्री गवर्नर और वायसराय की एग्जीक्यूटिव के सदस्य भी रहे। [1]

साहित्यिक रुचि

सर अब्दुल कादिर की विशेष प्रसिद्धि साहित्यिक रुचि के कारण हुई। उर्दू भाषा की पत्रिका 'मखजन' का अपने समय में बड़ा नाम था। कादिर की तीन पुस्तकें- न्यू स्कूल ऑफ उर्दू लिटरेचर' 'फेमस उर्दू पोएट्स एंड राइटर्स' तथा 'मकामे खिलाफत' विशेष प्रसिद्ध हुईं

मृत्यु

न्यायविद, पत्रकार और राजनीतिज्ञ सर अब्दुल कादिर का फरवरी, 1950 में पाकिस्तान में निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 898 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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