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मौलाना हुसैन अहमद मदानी [[उत्तर प्रदेश]] के [[फैजाबाद ज़िला|फैजाबाद ज़िले]] में टान्डा के सैयाद हबीबुलाह के पुत्र थे। उनके [[पिता]] ने उन्हें [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम]] में भागीदारी के बारे में बताया था। हुसैन अहमद मदानी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से ग्रहण की थी। सन [[1892]] में इन्होंने उच्च धार्मिक शिक्षा के लिए देवबन्ध मदरसे में प्रवेश लिया।
 
मौलाना हुसैन अहमद मदानी [[उत्तर प्रदेश]] के [[फैजाबाद ज़िला|फैजाबाद ज़िले]] में टान्डा के सैयाद हबीबुलाह के पुत्र थे। उनके [[पिता]] ने उन्हें [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम]] में भागीदारी के बारे में बताया था। हुसैन अहमद मदानी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से ग्रहण की थी। सन [[1892]] में इन्होंने उच्च धार्मिक शिक्षा के लिए देवबन्ध मदरसे में प्रवेश लिया।
 
====जेल यात्रा====
 
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सन [[1911]]-[[1912]] में मौलाना मदानी ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ एक विद्रोह की योजना में क्रांतिकारी समुह के साथ [[काबुल]] गये। यह प्रयास सफल नहीं हो सका और उन्हें गिरफ़्तार करके [[1914]] में जेल में डाल दिया गया। अपनी रिहाई के पश्चात मौलाना हुसैन अहमद मदानी ने [[1919]] में 'जमाते-उलेमा ए-हिन्द' के नेतृत्व का प्रभार संभाला। उन्होंने [[कांग्रेस]] आन्दोलनों में हिस्सेदारी निभायी और अनेक बार गिरफ़्तार होकर जेल भेजे गये।<ref>{{cite web |url=http://www.kranti1857.org/uttarpradesh%20krantikari.php#abdul%20bari|title= उत्तर प्रदेश के क्रांतिकारी|accessmonthday=19 अगस्त|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> उन्होंने दो राष्ट्रों के सिद्धान्त का विरोध किया।
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सन [[1911]]-[[1912]] में मौलाना मदानी ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ एक विद्रोह की योजना में क्रांतिकारी समुह के साथ [[काबुल]] गये। यह प्रयास सफल नहीं हो सका और उन्हें गिरफ़्तार करके [[1914]] में जेल में डाल दिया गया। अपनी रिहाई के पश्चात् मौलाना हुसैन अहमद मदानी ने [[1919]] में 'जमाते-उलेमा ए-हिन्द' के नेतृत्व का प्रभार संभाला। उन्होंने [[कांग्रेस]] आन्दोलनों में हिस्सेदारी निभायी और अनेक बार गिरफ़्तार होकर जेल भेजे गये।<ref>{{cite web |url=http://www.kranti1857.org/uttarpradesh%20krantikari.php#abdul%20bari|title= उत्तर प्रदेश के क्रांतिकारी|accessmonthday=19 अगस्त|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> उन्होंने दो राष्ट्रों के सिद्धान्त का विरोध किया।
 
==देश के भिभाजन का विरोध==
 
==देश के भिभाजन का विरोध==
 
मौलाना हुसैन अहमद मदानी ने देश के विभाजन का जमकर विरोध किया। इस विषय पर वह [[मोहम्मद इक़बाल]] से भी भिड़ गए और राष्ट्रीयता के मुद्दे पर इक़बाल के विचारों को चुनौती दी। उन्होंने एक किताब भी लिखी, जिसका शीर्षक था "मुत्तहिदा कौमीयत और इस्लाम" (सांझा राष्ट्रवाद और इस्लाम)। उन्होंने [[जिन्ना]] के 'द्विराष्ट्र सिद्धान्त' को भी चुनौती दी तथा [[क़ुरआन]] और [[हदीस]] से लिए गए उदाहरणों से यह साबित किया कि द्विराष्ट्र सिद्धान्त को [[इस्लाम]] की मंजूरी नहीं है। हुसैन अहमद मदानी की इस पुस्तक का [[अंग्रेज़ी]] अनुवाद भी उपलब्ध है। यह अनुवाद 'जमाते-उलेमा ए-हिन्द' द्वारा करवाया गया था। अब इस पुस्तक का लाभ [[उर्दू]] न जानने वाले भी उठा सकते हैं। मौलाना हुसैन अहमद को कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था। 'मुस्लिम लीग' के कार्यकर्ताओं ने कई स्थानों पर उनके साथ दुर्व्यवहार किया और उन्हें जूतों की मालाएँ पहनाई थीं।<ref>{{cite web |url=http://www.chauthiduniya.com/2010/04/svadhinta-sangram-our-musalman.html|title=स्वाधीनता संग्राम और मुसलमान|accessmonthday=19 अगस्त|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
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07:36, 7 नवम्बर 2017 का अवतरण

हुसैन अहमद मदानी स्वाधीनता आन्दोलन के एक चमकते हुए सितारे थे। इन्होंने भारत के विभाजन का जमकर विरोध किया था। मौलाना हुसैन अहमद मदानी कवि और चिंतक मोहम्मद इक़बाल से भी भिड़ गए थे। इन्होंने कांग्रेस के कई आन्दोलनों में हिस्सेदारी निभाई और अनेक बार जेल गये।

परिचय

मौलाना हुसैन अहमद मदानी उत्तर प्रदेश के फैजाबाद ज़िले में टान्डा के सैयाद हबीबुलाह के पुत्र थे। उनके पिता ने उन्हें 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में भागीदारी के बारे में बताया था। हुसैन अहमद मदानी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से ग्रहण की थी। सन 1892 में इन्होंने उच्च धार्मिक शिक्षा के लिए देवबन्ध मदरसे में प्रवेश लिया।

जेल यात्रा

सन 1911-1912 में मौलाना मदानी ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ एक विद्रोह की योजना में क्रांतिकारी समुह के साथ काबुल गये। यह प्रयास सफल नहीं हो सका और उन्हें गिरफ़्तार करके 1914 में जेल में डाल दिया गया। अपनी रिहाई के पश्चात् मौलाना हुसैन अहमद मदानी ने 1919 में 'जमाते-उलेमा ए-हिन्द' के नेतृत्व का प्रभार संभाला। उन्होंने कांग्रेस आन्दोलनों में हिस्सेदारी निभायी और अनेक बार गिरफ़्तार होकर जेल भेजे गये।[1] उन्होंने दो राष्ट्रों के सिद्धान्त का विरोध किया।

देश के भिभाजन का विरोध

मौलाना हुसैन अहमद मदानी ने देश के विभाजन का जमकर विरोध किया। इस विषय पर वह मोहम्मद इक़बाल से भी भिड़ गए और राष्ट्रीयता के मुद्दे पर इक़बाल के विचारों को चुनौती दी। उन्होंने एक किताब भी लिखी, जिसका शीर्षक था "मुत्तहिदा कौमीयत और इस्लाम" (सांझा राष्ट्रवाद और इस्लाम)। उन्होंने जिन्ना के 'द्विराष्ट्र सिद्धान्त' को भी चुनौती दी तथा क़ुरआन और हदीस से लिए गए उदाहरणों से यह साबित किया कि द्विराष्ट्र सिद्धान्त को इस्लाम की मंजूरी नहीं है। हुसैन अहमद मदानी की इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भी उपलब्ध है। यह अनुवाद 'जमाते-उलेमा ए-हिन्द' द्वारा करवाया गया था। अब इस पुस्तक का लाभ उर्दू न जानने वाले भी उठा सकते हैं। मौलाना हुसैन अहमद को कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था। 'मुस्लिम लीग' के कार्यकर्ताओं ने कई स्थानों पर उनके साथ दुर्व्यवहार किया और उन्हें जूतों की मालाएँ पहनाई थीं।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उत्तर प्रदेश के क्रांतिकारी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 19 अगस्त, 2013।
  2. स्वाधीनता संग्राम और मुसलमान (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 19 अगस्त, 2013।

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