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*नैरंजना नदी गया से दक्षिण में 3 मील पर महाना अथवा फल्गु में मिलती है।<ref>गया के पूर्व में नगकूट पहाड़ी है, इसके दक्षिण में जाकर फल्गु का नाम महाना हो जाता है।</ref> | *नैरंजना नदी गया से दक्षिण में 3 मील पर महाना अथवा फल्गु में मिलती है।<ref>गया के पूर्व में नगकूट पहाड़ी है, इसके दक्षिण में जाकर फल्गु का नाम महाना हो जाता है।</ref> | ||
*नैरंजना नदी [[बौद्ध साहित्य]] की प्रसिद्ध नदी है। | *नैरंजना नदी [[बौद्ध साहित्य]] की प्रसिद्ध नदी है। | ||
− | *नैरंजना नदी के तट पर [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] को बुद्धत्व प्राप्ति हुई थी। अश्वघोष-रचित बुद्धचरित्र में नैरंजना का उल्लेख है:- | + | *नैरंजना नदी के तट पर [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] को बुद्धत्व प्राप्ति हुई थी। अश्वघोष-रचित बुद्धचरित्र में नैरंजना का उल्लेख इस प्रकार है:- |
<poem>'ततो हित्वाश्रमं तस्य श्रेयोऽर्थी कृतनिश्च्य: भेजे गयस्य राजर्षे- र्नगरीं संज्ञामाश्रमम। | <poem>'ततो हित्वाश्रमं तस्य श्रेयोऽर्थी कृतनिश्च्य: भेजे गयस्य राजर्षे- र्नगरीं संज्ञामाश्रमम। | ||
− | अय नैरंजनातीरे शुचौ शुचिपराक्रम: चकार वासमेकांत-विहाराभिरतिर्मुनि।<ref>बुद्धचरित. 12,89-90 </ref></poem>अर्थात तब श्रेय पाने की इच्छा से गौतम ने उद्रक मुनि का आश्रम छोड़कर राजर्षिगय की नगरी से आश्रम का सेवन किया और पवित्र पराक्रमवान एकांतविहार में आनंद प्राप्त करने वाले उस मुनि ने, नैरंजना नदी के पवित्र तीर पर निवास किया। इस उद्धरण से नैरंजना का वर्तमान नैलंजना से अभिज्ञान स्पष्ट हो जाता है। | + | अय नैरंजनातीरे शुचौ शुचिपराक्रम: चकार वासमेकांत-विहाराभिरतिर्मुनि।<ref>बुद्धचरित. 12,89-90 </ref> |
+ | </poem>अर्थात तब श्रेय पाने की इच्छा से गौतम ने उद्रक मुनि का आश्रम छोड़कर राजर्षिगय की नगरी से आश्रम का सेवन किया और पवित्र पराक्रमवान एकांतविहार में आनंद प्राप्त करने वाले उस मुनि ने, नैरंजना नदी के पवित्र तीर पर निवास किया। इस उद्धरण से नैरंजना का वर्तमान नैलंजना से अभिज्ञान स्पष्ट हो जाता है। | ||
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11:06, 10 अक्टूबर 2011 का अवतरण
नैरंजना नदी गया के पास बहने वाली फल्गु नदी की सहायता उपनदी है जिसे अब नीलांजना नदी कहते है।
- नैरंजना नदी गया से दक्षिण में 3 मील पर महाना अथवा फल्गु में मिलती है।[1]
- नैरंजना नदी बौद्ध साहित्य की प्रसिद्ध नदी है।
- नैरंजना नदी के तट पर भगवान बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्ति हुई थी। अश्वघोष-रचित बुद्धचरित्र में नैरंजना का उल्लेख इस प्रकार है:-
'ततो हित्वाश्रमं तस्य श्रेयोऽर्थी कृतनिश्च्य: भेजे गयस्य राजर्षे- र्नगरीं संज्ञामाश्रमम।
अय नैरंजनातीरे शुचौ शुचिपराक्रम: चकार वासमेकांत-विहाराभिरतिर्मुनि।[2]
अर्थात तब श्रेय पाने की इच्छा से गौतम ने उद्रक मुनि का आश्रम छोड़कर राजर्षिगय की नगरी से आश्रम का सेवन किया और पवित्र पराक्रमवान एकांतविहार में आनंद प्राप्त करने वाले उस मुनि ने, नैरंजना नदी के पवित्र तीर पर निवास किया। इस उद्धरण से नैरंजना का वर्तमान नैलंजना से अभिज्ञान स्पष्ट हो जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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