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[[शबरी]] ने जो [[फल]] प्रेम और श्रद्धा से एकत्रित किये थे, उन्हें [[राम]] ने बड़े प्रेम से स्वीकार किया। जब वे स्वाद ले-ले कर बेर खा चुके तो शबरी ने उन्हें बताया- "हे राम! यह सामने जो सघन वन दिखाई देता है, मातंग वन है। मेरे गुरुओं ने एक बार यहाँ बड़ा भारी [[यज्ञ]] किया था। यद्यपि इस यज्ञ को हुये अनेक [[वर्ष]] हो गये हैं, फिर भी अभी तक सुगन्धित धुएँ से सम्पूर्ण वातावरण सुगन्धित हो रहा है। यज्ञ के पात्र भी अभी यथास्थान रखे हुये हैं। हे प्रभो! मैंने अपने जीवन की सभी धार्मिक मनोकामनाएँ पूरी कर ली हैं। केवल आपके दर्शनों की अभिलाषा शेष थी, वह आज पूरी हो गई। अब आप मुझे अनुमति दें कि मैं इस नश्वर शरीर का परित्याग कर वहीं चली जाऊँ, जहाँ मेरे गुरुदेव गये हैं।"
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[[शबरी]] ने जो [[फल]] प्रेम और श्रद्धा से एकत्रित किये थे, उन्हें [[राम]] ने बड़े प्रेम से स्वीकार किया। जब वे स्वाद ले-ले कर बेर खा चुके तो शबरी ने उन्हें बताया- "हे राम! यह सामने जो सघन वन दिखाई देता है, मातंग वन है। मेरे गुरुओं ने एक बार यहाँ बड़ा भारी [[यज्ञ]] किया था। यद्यपि इस यज्ञ को हुये अनेक [[वर्ष]] हो गये हैं, फिर भी अभी तक सुगन्धित धुएँ से सम्पूर्ण वातावरण सुगन्धित हो रहा है। [[चित्र:Pampa-River-1.jpg|thumb|250px|left|पम्पा नदी, [[केरल]]]]यज्ञ के पात्र भी अभी यथास्थान रखे हुये हैं। हे प्रभो! मैंने अपने जीवन की सभी धार्मिक मनोकामनाएँ पूरी कर ली हैं। केवल आपके दर्शनों की अभिलाषा शेष थी, वह आज पूरी हो गई। अब आप मुझे अनुमति दें कि मैं इस नश्वर शरीर का परित्याग कर वहीं चली जाऊँ, जहाँ मेरे गुरुदेव गये हैं।"
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शबरी की अदम्य [[भक्ति]] और श्रद्धा देख कर [[राम]] ने कहा- "हे परम तपस्विनी! तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी। मैं भी प्रार्थना करता हूँ कि परमात्मा तुम्हारी मनोकामना पूरी करें।"
  
शबरी की अदम्य शक्ति और श्रद्धा देख कर राम ने कहा- "हे परम तपस्विनी! तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी। मैं भी प्रार्थना करता हूँ कि परमात्मा तुम्हारी मनोकामना पूरी करें।"
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रामचन्द्र जी का आशीर्वाद पाकर शबरी ने समाधि लगाई और अपने प्राण विसर्जित कर दिये। इसके पश्चात् शबरी का '[[अन्तिम संस्कार]]' कर देने के पश्चात् राम और [[लक्ष्मण]] 'पम्पा' सरोवर पहुँचे। निकट ही 'पम्पा नदी' बह रही थी, जिसके तट पर नाना प्रकार के वृक्ष पुष्पों एवं पल्लवों से शोभायमान हो रहे थे। स्थान की शोभा को देख कर राम अपना सारा शोक भूल गये। वे [[सुग्रीव]] से मिलने की इच्छा को मन में लिये पम्पा नदी के किनारे-किनारे पुरी की ओर चलने लगे।<ref>{{cite web |url=http://forum.spiritualindia.org/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3-a%EF%BF%BD%E2%80%9C-%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1-%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%86%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE-t14983.0.html;wap2=|title=रामायण, अरण्यकाण्ड-शबरी का आश्रम|accessmonthday=25 जुलाई|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
 
रामचन्द्र जी का आशीर्वाद पा कर शबरी ने समाधि लगाई और इस प्रकार अपने प्राण विसर्जित कर दिये। इसके पश्चात् शबरी का अन्तिम संस्कार कर के दोनों भाई 'पम्पा' सरोवर पहुँचे। निकट ही 'पम्पा नदी' बह रही थी, जिसके तट पर नाना प्रकार के वृक्ष पुष्पों एवं पल्लवों से शोभायमान हो रहे थे। स्थान की शोभा को देख कर राम अपना सारा शोक भूल गये। वे [[सुग्रीव]] से मिलने की इच्छा को मन में लिये पम्पा नदी के किनारे-किनारे पुरी की ओर चलने लगे।<ref>{{cite web |url=http://forum.spiritualindia.org/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3-a%EF%BF%BD%E2%80%9C-%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1-%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%86%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE-t14983.0.html;wap2=|title=रामायण, अरण्यकाण्ड-शबरी का आश्रम|accessmonthday=25 जुलाई|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
  
  

07:43, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

पम्पा नदी भारत के केरल राज्य की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। इसे 'पम्बा' नाम से भी जाना जाता है। 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है।

  • केरल में यह नदी पेरियार और भारतपुझा के बाद तीसरा स्थान रखती है। यह श्रावणकौर रजवाड़े की सबसे लम्बी नदी है।
  • केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मन्दिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है।
  • 'हम्पी' मंदिरों का शहर है, जिसका नाम पम्पा से लिया गया है। 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है।
  • पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में भी हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किन्धा की राजधानी के तौर पर किया गया है।
  • रामायण के 'अरण्यकाण्ड' (शबरी का आश्रम) में उल्लेख मिलता है कि-

शबरी ने जो फल प्रेम और श्रद्धा से एकत्रित किये थे, उन्हें राम ने बड़े प्रेम से स्वीकार किया। जब वे स्वाद ले-ले कर बेर खा चुके तो शबरी ने उन्हें बताया- "हे राम! यह सामने जो सघन वन दिखाई देता है, मातंग वन है। मेरे गुरुओं ने एक बार यहाँ बड़ा भारी यज्ञ किया था। यद्यपि इस यज्ञ को हुये अनेक वर्ष हो गये हैं, फिर भी अभी तक सुगन्धित धुएँ से सम्पूर्ण वातावरण सुगन्धित हो रहा है।

पम्पा नदी, केरल

यज्ञ के पात्र भी अभी यथास्थान रखे हुये हैं। हे प्रभो! मैंने अपने जीवन की सभी धार्मिक मनोकामनाएँ पूरी कर ली हैं। केवल आपके दर्शनों की अभिलाषा शेष थी, वह आज पूरी हो गई। अब आप मुझे अनुमति दें कि मैं इस नश्वर शरीर का परित्याग कर वहीं चली जाऊँ, जहाँ मेरे गुरुदेव गये हैं।"

शबरी की अदम्य भक्ति और श्रद्धा देख कर राम ने कहा- "हे परम तपस्विनी! तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी। मैं भी प्रार्थना करता हूँ कि परमात्मा तुम्हारी मनोकामना पूरी करें।"

रामचन्द्र जी का आशीर्वाद पाकर शबरी ने समाधि लगाई और अपने प्राण विसर्जित कर दिये। इसके पश्चात् शबरी का 'अन्तिम संस्कार' कर देने के पश्चात् राम और लक्ष्मण 'पम्पा' सरोवर पहुँचे। निकट ही 'पम्पा नदी' बह रही थी, जिसके तट पर नाना प्रकार के वृक्ष पुष्पों एवं पल्लवों से शोभायमान हो रहे थे। स्थान की शोभा को देख कर राम अपना सारा शोक भूल गये। वे सुग्रीव से मिलने की इच्छा को मन में लिये पम्पा नदी के किनारे-किनारे पुरी की ओर चलने लगे।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रामायण, अरण्यकाण्ड-शबरी का आश्रम (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 25 जुलाई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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