वंदना जी के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, जैसे- कादम्बिनी, बिंदिया, पाखी, हिंदी चेतना, शब्दांकन, गर्भनाल, उदंती, अट्टहास, आधुनिक साहित्य, नव्या, सिम्पली जयपुर आदि के अलावा विभिन्न ई-पत्रिकाओं में रचनाएँ, कहानियां, आलेख आदि प्रकाशित हो चुके हैं।
इकतरफ़ा प्रेम के स्वामी
करते हो अपनी मनमानी
राधे को आधार बनाया
यूँ अपना पिंड छुडाया
सभी गोपियन को भरमाया
कैसा तुमने जाल बिछाया
सही कहा ………इकतरफ़ा प्रेम के स्वामी
क्या नही हो मोहन?
तुमने तो प्रेम करना जाना ही नहीं
बस सब तुम्हें चाहें
और तुम ना किसी को चाहो
उस पर तुर्रा ये कि
सिर्फ़ मुझे चाहो
बाकी सारी दुनिया छोड दो
वाह रे गुरुघंटाल
खूब धमाचौकडी तुमने मचायी है
पहले खुद संसार रचाया
उसमें इंसान बनाया
उसे कर्म का पाठ पढाया
भाईचारे की शिक्षा दी
और जब उसने वो मार्ग अपनाया
तब तुमने अपना रंग दिखलाया
मुझे चाहना है तो सबको छोड दो
वाह ……क्या कहने तुम्हारे
और तब भी तुम मिलो ना मिलो
ये भी तुम्हारी मर्ज़ी
तुम दरस दो ना दो
ये भी तुम्हारी मर्ज़ी
जब सब तुम्हारी ही मर्ज़ी से होना है
तो क्यों इंसान पर दोष लगाते हो
वो तो तुम्हारी तरफ़ आता है
फिर उसे पुआ हाथ मे ले
बार - बार दिखाते हो
जो जब तुम्हारी तरफ़ आता है
तो संसार मे फ़ंसाते हो
उसके प्रलोभन दिखाते हो
और जब तुमसे दूर जाता है
तो अपनी तरफ़ बुलाते हो
अजब ढंग तुमने अपनाये हैं
मोहन ये कैसे खेल रचाये हैं
बस तुम्हें तो खेल खेलना है
खिलौना हमें बनाये हो
तभी तो इकतरफ़ा प्रेम में फ़ंसाये हो
मगर खुद नहीं फ़ँसते हो …………जादूगर !
बस यही तुम्हारा तिलिस्म है
यही तुम्हारा जादू है
सब भ्रमित रहते हैं
तुम्हारे मोहजाल मे फ़ंसते हैं
और तुम…………नटवर !
नट की तरह करतब दिखाते हो
और प्रेमी को
इकतरफ़ा प्रेम की सूली पर चढाते हो
यहाँ तक कि
राधा को भी भरमाते हो
तुम्हें सर्वस्व बनाया राधे
जो तुम्हें पूजेगा वो ही मुझे पायेगा
आहा! क्या भ्रमजाल फ़ैलाया
सबको एक ही जाल मे उलझाया
और खुद सारी डोरियाँ हाथ में पकडे
सारथि बने प्रेम के घोडों को
ऐंड लगाते कैसे मुस्काते हो
मोहन ! ये चित्ताकर्षक मुस्कान बिखेरे
तुम खेल तो खूब रचाते हो
मगर देखो ……