वंदना जी के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, जैसे- कादम्बिनी, बिंदिया, पाखी, हिंदी चेतना, शब्दांकन, गर्भनाल, उदंती, अट्टहास, आधुनिक साहित्य, नव्या, सिम्पली जयपुर आदि के अलावा विभिन्न ई-पत्रिकाओं में रचनाएँ, कहानियां, आलेख आदि प्रकाशित हो चुके हैं।
प्रेम सुधामृत हो तुम
और मेरी तृष्णा अखंड
सदियों से अपूर्ण
अलोकिक श्रृंगार हो तुम
रूप का अनुपम भंडार हो तुम
और मैं प्रेमी भंवरा
सदियों से रूप पिपासु
पूर्ण हो तुम
और मेरी यात्रा अपूर्ण
सदियों से भटकता
सदियों तक भटकता
अनंत कोटि मिलन
अनंत कोटि विछोह
अनंत अपूरित
तृष्णाओं का महाजाल
ओह! पूर्ण, कहो
अब कैसे अपूर्ण
पूर्ण हो ?
कैसे विशालता में
बिंदु समाहित हो
हे पूर्ण तृप्त
करो मुझे भी
अब पूर्ण तृप्त !