"कल्पना दत्त" के अवतरणों में अंतर

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'''कल्पना दत्त''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kalpana Dutt'', जन्म: [[27 जुलाई]], [[1913]] - मृत्यु: [[8 फ़रवरी]] [[1995]]) देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाली महिला क्रांतिकारियों में से एक थीं। इन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए क्रांतिकारी सूर्यसेन के दल से नाता जोड़ लिया था। [[1933]] ई. में कल्पना दत्त पुलिस से मुठभेड़ होने पर गिरफ़्तार कर ली गई थीं। राष्ट्रपिता [[महात्मा गाँधी]] और [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] के प्रयत्नों से ही वह जेल से बाहर आ पाई थीं। अपने महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए कल्पना दत्त को 'वीर महिला' की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
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'''कल्पना दत्त''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kalpana Dutt'', जन्म: [[27 जुलाई]], [[1913]]; मृत्यु: [[8 फ़रवरी]], [[1995]]) देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाली महिला क्रांतिकारियों में से एक थीं। उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए क्रांतिकारी [[सूर्यसेन]] के दल से नाता जोड़ लिया था। [[1933]] ई. में कल्पना दत्त पुलिस से मुठभेड़ होने पर गिरफ़्तार कर ली गई थीं। [[महात्मा गाँधी|राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] और [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] के प्रयत्नों से ही वह जेल से बाहर आ पाई थीं। अपने महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए कल्पना दत्त को 'वीर महिला' की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
 
==जन्म तथा क्रांतिकारी गतिविधियाँ==
 
==जन्म तथा क्रांतिकारी गतिविधियाँ==
कल्पना दत्त का जन्म [[चटगांव]] (अब [[बांग्लादेश]]) के [[श्रीपुर]] गांव में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। चटगांव में आरम्भिक शिक्षा के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए [[कोलकाता]] आईं। प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों की जीवनियाँ पढ़कर वह प्रभावित हुईं और शीघ्र ही स्वयं भी कुछ करने के लिए आतुर हो उठीं। [[18 अप्रैल]], [[1930]] ई. को 'चटगांव शस्त्रागार लूट' की घटना होते ही कल्पना दत्त कोलकाता से वापस चटगांव चली गईं और क्रान्तिकारी सूर्यसेन के दल से संपर्क कर लिया। वह वेश बदलकर इन लोगों को गोला-बारूद आदि पहुँचाया करती थीं। इस बीच उन्होंने निशाना लगाने का भी अभ्यास किया।
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कल्पना दत्त का जन्म [[चटगांव]] (अब [[बांग्लादेश]]) के [[श्रीपुर]] गांव में एक मध्यम वर्गीय [[परिवार]] में हुआ था। [[चटगांव]] में आरम्भिक शिक्षा के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए [[कोलकाता]] आईं। प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों की जीवनियाँ पढ़कर वह प्रभावित हुईं और शीघ्र ही स्वयं भी कुछ करने के लिए आतुर हो उठीं। [[18 अप्रैल]], [[1930]] ई. को 'चटगांव शस्त्रागार लूट' की घटना होते ही कल्पना दत्त कोलकाता से वापस चटगांव चली गईं और क्रान्तिकारी सूर्यसेन के दल से संपर्क कर लिया। वह वेश बदलकर इन लोगों को गोला-बारूद आदि पहुँचाया करती थीं। इस बीच उन्होंने निशाना लगाने का भी अभ्यास किया।
 
==कारावास की सज़ा==
 
==कारावास की सज़ा==
कल्पना और उनके साथियों ने क्रान्तिकारियों का मुकदमा सुनने वाली अदालत के भवन को और जेल की दीवार उड़ाने की योजना बनाई। लेकिन पुलिस को सूचना मिल जाने के कारण इस पर अमल नहीं हो सका। पुरुष वेश में घूमती कल्पना दत्त गिरफ्तार कर ली गईं। पर अभियोग सिद्ध न होने पर उन्हें छोड़ दिया गया। उनके घर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया। लेकिन कल्पना पुलिस को चकमा देकर घर से निकलकर क्रान्तिकारी सूर्यसेन से जा मिलीं। सूर्यसेन गिरफ्तार कर लिये गए और [[मई]], [[1933]] ई. में कुछ समय तक पुलिस और क्रान्तिकारियों के बीच सशस्त्र मुकाबला होने के बाद कल्पना दत्त भी गिरफ्तार हो गईं। मुकदमा चला और [[फ़रवरी]], [[1934]] ई. में सूर्यसेन तथा तारकेश्वर दस्तीकार को फांसी की और 21 वर्ष की कल्पना दत्त को आजीवन कारावास की सज़ा हो गई।
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कल्पना और उनके साथियों ने क्रान्तिकारियों का मुकदमा सुनने वाली अदालत के भवन को और जेल की दीवार उड़ाने की योजना बनाई। लेकिन पुलिस को सूचना मिल जाने के कारण इस पर अमल नहीं हो सका। पुरुष वेश में घूमती कल्पना दत्त गिरफ्तार कर ली गईं, पर अभियोग सिद्ध न होने पर उन्हें छोड़ दिया गया। उनके घर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया। लेकिन कल्पना पुलिस को चकमा देकर घर से निकलकर क्रान्तिकारी सूर्यसेन से जा मिलीं। सूर्यसेन गिरफ्तार कर लिये गए और [[मई]], [[1933]] ई. में कुछ समय तक पुलिस और क्रान्तिकारियों के बीच सशस्त्र मुकाबला होने के बाद कल्पना दत्त भी गिरफ्तार हो गईं। मुकदमा चला और [[फ़रवरी]], [[1934]] ई. में [[सूर्यसेन]] तथा तारकेश्वर दस्तीकार को फाँसी की और 21 वर्ष की कल्पना दत्त को आजीवन कारावास की सज़ा हो गई।
 
==रिहाई तथा सम्मान==
 
==रिहाई तथा सम्मान==
[[1937]] ई. में जब पहली बार प्रदेशों में भारतीय मंत्रिमंडल बने तब [[गांधी जी]], [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] आदि के विशेष प्रयत्नों से कल्पना जेल से बाहर आ सकीं। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। वह कम्युनिस्ट पार्टी में सम्मिलित हो गईं और [[1943]] ई. में उनका कम्युनिस्ट नेता पूरन चंद जोशी से [[विवाह]] हो गया और वह कल्पना जोशी बन गईं। बाद में कल्पना [[बंगाल]] से [[दिल्ली]] आ गईं और 'इंडो सोवियत सांस्कृतिक सोसायटी' में काम करने लगीं। [[सितम्बर]], [[1979]] ई. में कल्पना जोशी को [[पुणे]] में 'वीर महिला' की उपाधि से सम्मानित किया गया।
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[[1937]] ई. में जब पहली बार प्रदेशों में भारतीय मंत्रिमंडल बने, तब [[गांधी जी]], [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] आदि के विशेष प्रयत्नों से कल्पना जेल से बाहर आ सकीं। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। वह कम्युनिस्ट पार्टी में सम्मिलित हो गईं और [[1943]] ई. में उनका कम्युनिस्ट नेता [[पूरन चंद जोशी]] से [[विवाह]] हो गया और वह कल्पना जोशी बन गईं। बाद में कल्पना [[बंगाल]] से [[दिल्ली]] आ गईं और 'इंडो सोवियत सांस्कृतिक सोसायटी' में काम करने लगीं। [[सितम्बर]], [[1979]] ई. में कल्पना जोशी को [[पुणे]] में 'वीर महिला' की उपाधि से सम्मानित किया गया।
  
 
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08:33, 27 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

कल्पना दत्त
कल्पना दत्त
पूरा नाम कल्पना दत्त
अन्य नाम कल्पना जोशी
जन्म 27 जुलाई, 1913
जन्म भूमि चटगांव (अब बांग्लादेश), बंगाल
मृत्यु 8 फ़रवरी, 1995
मृत्यु स्थान कलकत्ता (अब कोलकाता), पश्चिम बंगाल
पति/पत्नी पूरन चंद जोशी
नागरिकता भारतीय
जेल यात्रा फ़रवरी, 1934 ई. में 21 वर्ष की कल्पना दत्त को आजीवन कारावास की सज़ा हुई, लेकिन 1937 ई. में जब पहली बार प्रदेशों में भारतीय मंत्रिमंडल बने, तब गांधी जी, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि के विशेष प्रयत्नों से कल्पना जेल से बाहर आ सकीं।
अन्य जानकारी सितम्बर, 1979 ई. में कल्पना दत्त को पुणे में 'वीर महिला' की उपाधि से सम्मानित किया गया।

कल्पना दत्त (अंग्रेज़ी: Kalpana Dutt, जन्म: 27 जुलाई, 1913; मृत्यु: 8 फ़रवरी, 1995) देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाली महिला क्रांतिकारियों में से एक थीं। उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए क्रांतिकारी सूर्यसेन के दल से नाता जोड़ लिया था। 1933 ई. में कल्पना दत्त पुलिस से मुठभेड़ होने पर गिरफ़्तार कर ली गई थीं। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर के प्रयत्नों से ही वह जेल से बाहर आ पाई थीं। अपने महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए कल्पना दत्त को 'वीर महिला' की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

जन्म तथा क्रांतिकारी गतिविधियाँ

कल्पना दत्त का जन्म चटगांव (अब बांग्लादेश) के श्रीपुर गांव में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। चटगांव में आरम्भिक शिक्षा के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता आईं। प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों की जीवनियाँ पढ़कर वह प्रभावित हुईं और शीघ्र ही स्वयं भी कुछ करने के लिए आतुर हो उठीं। 18 अप्रैल, 1930 ई. को 'चटगांव शस्त्रागार लूट' की घटना होते ही कल्पना दत्त कोलकाता से वापस चटगांव चली गईं और क्रान्तिकारी सूर्यसेन के दल से संपर्क कर लिया। वह वेश बदलकर इन लोगों को गोला-बारूद आदि पहुँचाया करती थीं। इस बीच उन्होंने निशाना लगाने का भी अभ्यास किया।

कारावास की सज़ा

कल्पना और उनके साथियों ने क्रान्तिकारियों का मुकदमा सुनने वाली अदालत के भवन को और जेल की दीवार उड़ाने की योजना बनाई। लेकिन पुलिस को सूचना मिल जाने के कारण इस पर अमल नहीं हो सका। पुरुष वेश में घूमती कल्पना दत्त गिरफ्तार कर ली गईं, पर अभियोग सिद्ध न होने पर उन्हें छोड़ दिया गया। उनके घर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया। लेकिन कल्पना पुलिस को चकमा देकर घर से निकलकर क्रान्तिकारी सूर्यसेन से जा मिलीं। सूर्यसेन गिरफ्तार कर लिये गए और मई, 1933 ई. में कुछ समय तक पुलिस और क्रान्तिकारियों के बीच सशस्त्र मुकाबला होने के बाद कल्पना दत्त भी गिरफ्तार हो गईं। मुकदमा चला और फ़रवरी, 1934 ई. में सूर्यसेन तथा तारकेश्वर दस्तीकार को फाँसी की और 21 वर्ष की कल्पना दत्त को आजीवन कारावास की सज़ा हो गई।

रिहाई तथा सम्मान

1937 ई. में जब पहली बार प्रदेशों में भारतीय मंत्रिमंडल बने, तब गांधी जी, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि के विशेष प्रयत्नों से कल्पना जेल से बाहर आ सकीं। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। वह कम्युनिस्ट पार्टी में सम्मिलित हो गईं और 1943 ई. में उनका कम्युनिस्ट नेता पूरन चंद जोशी से विवाह हो गया और वह कल्पना जोशी बन गईं। बाद में कल्पना बंगाल से दिल्ली आ गईं और 'इंडो सोवियत सांस्कृतिक सोसायटी' में काम करने लगीं। सितम्बर, 1979 ई. में कल्पना जोशी को पुणे में 'वीर महिला' की उपाधि से सम्मानित किया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 141 |


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