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'''शफात अहमद ख़ां''' (जन्म- [[1893]], [[मुरादाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[1948]]) प्रसिद्ध मुस्लिम राष्ट्रवादी नेता एवं [[इतिहास]] और [[अर्थशास्त्र]] के प्रोफेसर रहे थे। वे [[जिन्ना]] की [[पाकिस्तान]] नीति के खिलाफ थे। 
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'''रामराव गणपत राव लाड''' (जन्म- [[1910]], [[गोवा]]) प्रसिद्ध [[चित्रकार]] और स्वतंत्रता सेनानी थे। गोवा के स्वतंत्रता सेनानियों में रामराव लाड का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
प्रसिद्ध मुस्लिम राष्ट्रवादी विद्वान नेता और [[नेहरु जी]] की अध्यक्षता में बनी केंद्रीय अंतरिम सरकार के मंत्री सर शफ़ात अहमद ख़ां का जन्म [[1893]] ईसवी में [[मुरादाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। उन्होंने [[इंग्लैंड]] में शिक्षा पाई और डॉक्टरेट की डिग्री ली। 2 वर्ष तक लंदन में अध्यापन का काम करने के बाद वे पहले [[मद्रास विश्वविद्यालय]] में [[अर्थशास्त्र]] के और बाद में [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में [[इतिहास]] के प्रोफेसर नियुक्त हुए।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=829|url=}}</ref>
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गोवा मुक्तिसंग्राम के नायकों में से एक रामराव गणपतराव लाड का जन्म [[1910]] में [[गोवा]] के एक सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके [[पिता]] गणपत राव अपने समय के प्रसिद्ध [[चित्रकार]] थे। रामराव ने भी [[मुंबई]] के जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स की परीक्षा पास करके पेंटिंग को ही आजीविका के रूप में अपनाया और चित्रकारी के क्षेत्र में ख्याति अर्जित की। रामराव ने मुंबई में [[कांग्रेस]] की गतिविधियों में सक्रिय भाग लिया।{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=830|url=}}
==जिन्ना विचारधारा के विरोधी==
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शफात अहमद ख़ां [[जिन्ना]] विचारधारा के विरोधी थे। जिन्ना की राजनीति से मतभेद के कारण वे [[कांग्रेस]] के निकट आए। वे [[मुसलमान|मुसलमानों]] के लिए अलग से संरक्षण के समर्थक तो थे पर जिन्ना की [[पाकिस्तान]] की मांग के पक्ष में नहीं थे। जिन्ना की [[मुस्लिम लीग]] का प्रभाव बढ़ने के बाद उनकी राजनीतिक सक्रियता कम हो गई, यद्यपि मुस्लिम नेता के रूप में उन्होंने [[1930]] में [[लंदन]] के [[गोलमेज सम्मेलन]] में भाग लिया था। शफ़ात अहमद [[1924]] में मुस्लिम निर्वाचन के क्षेत्र से प्रवेश की कौंसिल के सदस्य चुने गए।  
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==गोवा मुक्तिसंग्राम==
==योगदान==
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गोवा मुक्तिसंग्राम में रामराव गणपत राव लाड की अहम्‌ भूमिका रही है। रामराव [[कांग्रेस]] की गोवा शाखा के महामंत्री के रूप में गुप्त रूप से वहां के स्वतंत्रता संग्राम में सहायता पहुंचाते रहे। [[1947]] में गोवा के अंदर गए और वहां के सशस्त्र क्रांतिकारी संगठन 'आजाद गोंगतक दल' मैं सम्मिलित हो गए। इस दल ने वहां के [[पुर्तगाली]] शासन के विरुद्ध अनेक अभियान चलाए।  इसके प्रयत्न से ही [[1954]] में [[दादरा और नगर हवेली]] की पुर्तगाली बस्तियां स्वतंत्र करा ली गई थी। बाद में [[भारत सरकार]] ने बल का प्रयोग करके [[19 दिसंबर]] [[1961]] को फ्रांसीसी सत्ता को समर्पण करने के लिए बाध्य किया और देश का यह अंचल भी स्वतंत्र हुआ।
डॉक्टर शफ़ात अहमद सन [[1941]] से [[1945]] तक [[दक्षिण अफ्रीका]] में [[भारत]] के हाई कमिश्नर रहे। वह देश के लिए औपनिवेशक स्वराज की स्थिति को अधिक उपयोगी मानते थे। [[इतिहास]] के विद्वान शफात अहमद खान ने इस विषय में अनेक [[ग्रंथ|ग्रंथों]] की रचना की। इसलिए [[1946]] में [[जवाहरलाल नेहरू]] ने उन्हें अंतरिम सरकार में मंत्री के रूप में सम्मिलित करने का निश्चय किया। इससे मुस्लिम संप्रदायवादी कुपित होकर मंत्रिमंडल में सम्मिलित होने से पहले ही शफात अहमद खान पर छुरे से हमला कर दिया। वे मंत्री पद पर भी अधिक समय तक नहीं रहे। [[मुस्लिम लीग]] द्वारा मंत्रिमंडल में सम्मिलित होने का निर्णय करने के बाद उन्हें हटना पड़ा।
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==मृत्यु==
 
इस राष्ट्रवादी विद्वान डॉक्टर शफ़ात अहमद ख़ां का छुरे की चोट के कारण [[1948]] में इंतकाल हो गया।
 
  
  
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गोवा मुक्तिसंग्राम के नायकों में से एक रामराव गणपतराव लाड का जन्म  1910 में गोवा के एक सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता गणपत राव अपने समय के  प्रसिद्ध चित्रकार थे।  रामराव ने भी  मुंबई के जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स की परीक्षा पास करके पेंटिंग को ही आजीविका के रूप में अपनाया और इस क्षेत्र में ख्याति अर्जित की।
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रामराव ने मुंबई में कांग्रेस की गतिविधियों में सक्रिय भाग लिया और कांग्रेस की गोवा शाखा के महामंत्री के रूप में गुप्त रूप से वहां के स्वतंत्रता संग्राम में सहायता पहुंचाते रहे। 1947 में गोवा के अंदर गए और वहां के सशस्त्र क्रांतिकारी संगठन 'आजाद  गोंगतक दल' मैं सम्मिलित हो गए।  इस दल ने वहां के पुर्तगाली शासन के विरुद्ध अनेक अभियान चलाए।  इसके प्रयत्न से ही  1954 में दादर और नागर हवेली की पुर्तगाली बस्तियां स्वतंत्र करा ली गई थी। बाद में भारत सरकार ने बल का प्रयोग करके 19 दिसंबर 1961 को फ्रांसीसी सत्ता को समर्पण करने के लिए बाध्य किया और देश का यह अंचल भी स्वतंत्र हुआ।  गोवा के स्वतंत्रता सेनानियों में  रामराव लाड का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।
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भारतीय चरित्र कोश 830

08:26, 15 जुलाई 2018 का अवतरण

रामराव गणपत राव लाड (जन्म- 1910, गोवा) प्रसिद्ध चित्रकार और स्वतंत्रता सेनानी थे। गोवा के स्वतंत्रता सेनानियों में रामराव लाड का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।

परिचय

गोवा मुक्तिसंग्राम के नायकों में से एक रामराव गणपतराव लाड का जन्म 1910 में गोवा के एक सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता गणपत राव अपने समय के प्रसिद्ध चित्रकार थे। रामराव ने भी मुंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स की परीक्षा पास करके पेंटिंग को ही आजीविका के रूप में अपनाया और चित्रकारी के क्षेत्र में ख्याति अर्जित की। रामराव ने मुंबई में कांग्रेस की गतिविधियों में सक्रिय भाग लिया। भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 830 |


गोवा मुक्तिसंग्राम

गोवा मुक्तिसंग्राम में रामराव गणपत राव लाड की अहम्‌ भूमिका रही है। रामराव कांग्रेस की गोवा शाखा के महामंत्री के रूप में गुप्त रूप से वहां के स्वतंत्रता संग्राम में सहायता पहुंचाते रहे। 1947 में गोवा के अंदर गए और वहां के सशस्त्र क्रांतिकारी संगठन 'आजाद गोंगतक दल' मैं सम्मिलित हो गए। इस दल ने वहां के पुर्तगाली शासन के विरुद्ध अनेक अभियान चलाए। इसके प्रयत्न से ही 1954 में दादरा और नगर हवेली की पुर्तगाली बस्तियां स्वतंत्र करा ली गई थी। बाद में भारत सरकार ने बल का प्रयोग करके 19 दिसंबर 1961 को फ्रांसीसी सत्ता को समर्पण करने के लिए बाध्य किया और देश का यह अंचल भी स्वतंत्र हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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संबंधित लेख

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गोवा मुक्तिसंग्राम के नायकों में से एक रामराव गणपतराव लाड का जन्म 1910 में गोवा के एक सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता गणपत राव अपने समय के प्रसिद्ध चित्रकार थे। रामराव ने भी मुंबई के जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स की परीक्षा पास करके पेंटिंग को ही आजीविका के रूप में अपनाया और इस क्षेत्र में ख्याति अर्जित की। रामराव ने मुंबई में कांग्रेस की गतिविधियों में सक्रिय भाग लिया और कांग्रेस की गोवा शाखा के महामंत्री के रूप में गुप्त रूप से वहां के स्वतंत्रता संग्राम में सहायता पहुंचाते रहे। 1947 में गोवा के अंदर गए और वहां के सशस्त्र क्रांतिकारी संगठन 'आजाद गोंगतक दल' मैं सम्मिलित हो गए। इस दल ने वहां के पुर्तगाली शासन के विरुद्ध अनेक अभियान चलाए। इसके प्रयत्न से ही 1954 में दादर और नागर हवेली की पुर्तगाली बस्तियां स्वतंत्र करा ली गई थी। बाद में भारत सरकार ने बल का प्रयोग करके 19 दिसंबर 1961 को फ्रांसीसी सत्ता को समर्पण करने के लिए बाध्य किया और देश का यह अंचल भी स्वतंत्र हुआ। गोवा के स्वतंत्रता सेनानियों में रामराव लाड का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।

भारतीय चरित्र कोश 830