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'''सत्यवती देवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Satyavati Devi'', जन्म- [[26 जनवरी]], [[1906]], [[जालंधर]], [[पंजाब]]; मृत्यु- [[अक्टूबर]], [[1945]]) साम्यवादी महिला एवं स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्होंने किसान मजदूरों के हित में दिन-रात संघर्ष किया।
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'''सत्यवती देवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Satyavati Devi'', जन्म- [[26 जनवरी]], [[1906]], [[जालंधर]], [[पंजाब]]; मृत्यु- [[अक्टूबर]], [[1945]]) साम्यवादी महिला एवं स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्होंने किसान मजदूरों के हित में दिन-रात संघर्ष किया। उन्होने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए [[दिल्ली]] की महिलाओं को उनके घरों से बाहर लाने के नेक काम के लिए लड़ाई लड़ी। सत्यदेवी देवी ने रूढ़िवाद और रूढ़िवाद के गढ़ को हिला दिया और महिलाओं को उनके घरों से बाहर निकाल दिया और पुरुषों को दिखाया कि महिलाओं को अब केवल सामान नहीं माना जा सकता है।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
 
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==मार्क्सवाद का प्रभाव==
 
==मार्क्सवाद का प्रभाव==
सत्यवती देवी का [[दिल्ली]] में प्रमुख कांग्रेसी नेताओं से संपर्क हुआ और साथ ही वे मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित हुईं। अब उन्होंने अन्य साम्यवादी विचारों की महिलाओं यथा दुर्गा देवी, कौशल्या देवी आदि के साथ घूम-घूमकर लोगों को संगठित करने का काम हाथ में लिया। वे किसान मजदूरों के शासन की कल्पना में दिन रात मेहनत करती थीं।  
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सत्यवती देवी का [[दिल्ली]] में प्रमुख कांग्रेसी नेताओं से संपर्क हुआ और साथ ही वे मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित हुईं। अब उन्होंने अन्य साम्यवादी विचारों की महिलाओं यथा दुर्गा देवी, कौशल्या देवी आदि के साथ घूम-घूमकर लोगों को संगठित करने का काम हाथ में लिया। वे किसान मजदूरों के शासन की कल्पना में दिन रात मेहनत करती थीं।
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==अग्रणी नेता==
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सत्यवती देवी अपने समय की [[दिल्ली]] की अग्रणी महिला नेता थीं। संगठन के लिए उनके ज्वलंत कथन और उल्लेखनीय क्षमता ने महिलाओं को [[सत्याग्रह]] अभियानों में शामिल होने के लिए आकर्षित किया। सत्यवती देवी ने अपने वाक्पटु भाषणों से वातावरण को विद्युतीकृत कर दिया। उन्होंने 'कांग्रेस महिला समाज' और 'कांग्रेस देश सेवा दल' की स्थापना की। जीवन के सभी क्षेत्रों और दिल्ली के सभी कोनों से महिलाओं को उसकी ईमानदारी और भावुक देशभक्ति से आकर्षित किया गया था। बाद में सत्यवती देवी 'कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी' के संस्थापक सदस्यों में से एक बन गई। वह दिल्ली के कपड़ा श्रमिकों को प्रबुद्ध करना और उन्हें राजनीतिक रूप से जागरूक करना चाहती थीं। उनके चुंबकीय व्यक्तित्व ने छात्रों, विशेष रूप से हिंदू कॉलेज और इंद्रप्रस्थ गर्ल्स हाई स्कूल दोनों को आकर्षित किया। इन छात्रों ने गृहिणियों के समूह का आयोजन किया, जिन्होंने सार्वजनिक प्रदर्शनों और इस तरह से पहले कभी भाग नहीं लिया था। [[नमक सत्याग्रह]] के दौरान, सत्यवती देवी और उनके सहयोगियों ने दिल्ली में शाहदरा उपनगर में एक दलदली खाली भूखंड पर इकट्ठा होने का फैसला किया, जहां उप-मिट्टी के पानी की मात्रा अधिक थी। उनमें से पचासों ने नमक कानून की अवहेलना की। ऐसा करीब दस दिनों तक चला। [[नमक]] के पैकेट तैयार किए गए और उन्हें स्वतंत्र रूप से वितरित किया गया। दिल्ली पुलिस ने उन स्वयंसेवकों को खदेड़ दिया, जिन्होंने नमक सत्याग्रह का आयोजन किया था। यह दिल्ली में [[सविनय अवज्ञा आंदोलन]] की शुरुआत थी।<ref>{{cite web |url=https://hindi.gktoday.in/gyankosh/%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A5%80-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%80-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4/ |title=सत्यवती देवी, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी|accessmonthday=18 जनवरी|accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.gktoday.in |language=हिंदी}}</ref>
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==जेल यात्रा==
 
==जेल यात्रा==
 
सत्यवती ने किसान और मजदूरों के शासन के लिये संघर्ष में जेल यात्रा तक की। सत्यवती देश में घूम-घूमकर साम्यवादी विचारों के लोगों को संगठित करने लगीं, यह बात सरकार की नजरों में चुभने लगी और उन्हें जेल में डाल दिया। अंतिम बार लाहौर जेल में उनका स्वास्थ्य अधिक बिगड़ जाने के कारण सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया।  
 
सत्यवती ने किसान और मजदूरों के शासन के लिये संघर्ष में जेल यात्रा तक की। सत्यवती देश में घूम-घूमकर साम्यवादी विचारों के लोगों को संगठित करने लगीं, यह बात सरकार की नजरों में चुभने लगी और उन्हें जेल में डाल दिया। अंतिम बार लाहौर जेल में उनका स्वास्थ्य अधिक बिगड़ जाने के कारण सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया।  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[https://www.indianetzone.com/3/satyavati_devi.htm Satyavati Devi, Indian Freedom Fighter]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{स्वतंत्रता सेनानी}}
 
{{स्वतंत्रता सेनानी}}

08:41, 18 जनवरी 2020 के समय का अवतरण

सत्यवती देवी
सत्यवती देवी
पूरा नाम सत्यवती देवी
जन्म 26 जनवरी, 1906
जन्म भूमि जालंधर, पंजाब
मृत्यु अक्टूबर, 1945
मृत्यु स्थान दिल्ली
अभिभावक माता- वेद कुमारी
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि साम्यवादी महिला एवं स्वतंत्रता सेनानी
विशेष योगदान सत्यवती देवी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए दिल्ली की महिलाओं को उनके घरों से बाहर लाने के नेक काम के लिए लड़ाई लड़ी।
अन्य जानकारी साम्यवादी सत्यवती देवी ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करती थीं। लोग उन्हें 'तूफानी बहन' के नाम से पुकारते थे।

सत्यवती देवी (अंग्रेज़ी: Satyavati Devi, जन्म- 26 जनवरी, 1906, जालंधर, पंजाब; मृत्यु- अक्टूबर, 1945) साम्यवादी महिला एवं स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्होंने किसान मजदूरों के हित में दिन-रात संघर्ष किया। उन्होने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए दिल्ली की महिलाओं को उनके घरों से बाहर लाने के नेक काम के लिए लड़ाई लड़ी। सत्यदेवी देवी ने रूढ़िवाद और रूढ़िवाद के गढ़ को हिला दिया और महिलाओं को उनके घरों से बाहर निकाल दिया और पुरुषों को दिखाया कि महिलाओं को अब केवल सामान नहीं माना जा सकता है।

परिचय

आर्य समाज और कांग्रेस के प्रसिद्ध नेता स्वामी श्रद्धानंद की नातिन (पोत्री) साम्यवादी सत्यवती देवी का जन्म 26 जनवरी, 1906 को पंजाब के जालंधर जिले में हुआ था। उनकी माँ वेद कुमारी समाजसेवी और गांधी जी की अनुयाई थीं। परिवार के इस वातावरण का सत्यवती पर प्रभाव पड़ा। 1922 में उनका विवाह हो गया और वे दिल्ली आ गईं। साम्यवादी सत्यवती ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करती थीं। लोग उन्हें "तूफानी बहन" के नाम से पुकारते थे।[1]

मार्क्सवाद का प्रभाव

सत्यवती देवी का दिल्ली में प्रमुख कांग्रेसी नेताओं से संपर्क हुआ और साथ ही वे मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित हुईं। अब उन्होंने अन्य साम्यवादी विचारों की महिलाओं यथा दुर्गा देवी, कौशल्या देवी आदि के साथ घूम-घूमकर लोगों को संगठित करने का काम हाथ में लिया। वे किसान मजदूरों के शासन की कल्पना में दिन रात मेहनत करती थीं।

अग्रणी नेता

सत्यवती देवी अपने समय की दिल्ली की अग्रणी महिला नेता थीं। संगठन के लिए उनके ज्वलंत कथन और उल्लेखनीय क्षमता ने महिलाओं को सत्याग्रह अभियानों में शामिल होने के लिए आकर्षित किया। सत्यवती देवी ने अपने वाक्पटु भाषणों से वातावरण को विद्युतीकृत कर दिया। उन्होंने 'कांग्रेस महिला समाज' और 'कांग्रेस देश सेवा दल' की स्थापना की। जीवन के सभी क्षेत्रों और दिल्ली के सभी कोनों से महिलाओं को उसकी ईमानदारी और भावुक देशभक्ति से आकर्षित किया गया था। बाद में सत्यवती देवी 'कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी' के संस्थापक सदस्यों में से एक बन गई। वह दिल्ली के कपड़ा श्रमिकों को प्रबुद्ध करना और उन्हें राजनीतिक रूप से जागरूक करना चाहती थीं। उनके चुंबकीय व्यक्तित्व ने छात्रों, विशेष रूप से हिंदू कॉलेज और इंद्रप्रस्थ गर्ल्स हाई स्कूल दोनों को आकर्षित किया। इन छात्रों ने गृहिणियों के समूह का आयोजन किया, जिन्होंने सार्वजनिक प्रदर्शनों और इस तरह से पहले कभी भाग नहीं लिया था। नमक सत्याग्रह के दौरान, सत्यवती देवी और उनके सहयोगियों ने दिल्ली में शाहदरा उपनगर में एक दलदली खाली भूखंड पर इकट्ठा होने का फैसला किया, जहां उप-मिट्टी के पानी की मात्रा अधिक थी। उनमें से पचासों ने नमक कानून की अवहेलना की। ऐसा करीब दस दिनों तक चला। नमक के पैकेट तैयार किए गए और उन्हें स्वतंत्र रूप से वितरित किया गया। दिल्ली पुलिस ने उन स्वयंसेवकों को खदेड़ दिया, जिन्होंने नमक सत्याग्रह का आयोजन किया था। यह दिल्ली में सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत थी।[2]

जब महिलाएं जो सिर्फ गृहिणियां थीं, अपने घरों से बाहर निकल गईं और लाठीचार्ज और मार-पीट का सामना किया, तो लोग आश्चर्य और प्रशंसा से भर गए। दिल्ली के पुरुष विशेष रूप से उन महिलाओं द्वारा दिखाए गए साहस पर आश्चर्यचकित थे, जो अपनी विनम्रता और निष्क्रियता के लिए जाने जाते थे। जैसे-जैसे स्वतंत्रता का संघर्ष आगे बढ़ा, भारतीय महिलाओं ने पूरे देश में संघर्ष किया और इस तरह पुरुषों के साथ स्वतंत्र और समान होने का अधिकार अर्जित किया।

जेल यात्रा

सत्यवती ने किसान और मजदूरों के शासन के लिये संघर्ष में जेल यात्रा तक की। सत्यवती देश में घूम-घूमकर साम्यवादी विचारों के लोगों को संगठित करने लगीं, यह बात सरकार की नजरों में चुभने लगी और उन्हें जेल में डाल दिया। अंतिम बार लाहौर जेल में उनका स्वास्थ्य अधिक बिगड़ जाने के कारण सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया।

मृत्यु

साम्यवादी सत्यवती देवी का अक्टूबर, 1945 में निधन हो गया। बार-बार जेल जाना और कठिन जीवन ने उन्हें क्षय रोग का शिकार बना दिया था। सत्यवती देवी अपने बीमार बिस्तर से दिल्ली में अपने साथी-श्रमिकों का मार्गदर्शन करती रही। 1945 में उनकी व्यस्त और व्यर्थ गतिविधि ने उनके जीवन में एक असामयिक अंत ला दिया, जब वह केवल 41 वर्ष की थीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 888 |
  2. सत्यवती देवी, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी (हिंदी) hindi.gktoday.in। अभिगमन तिथि: 18 जनवरी, 2020।

बाहरी कड़ियाँ

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