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|उद्गम स्थल=[[विन्ध्याचल पर्वत|विंध्याचल]] की मैकाल पहाड़ी श्रृंखला में [[अमरकंटक]] नामक स्थान  
 
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|लम्बाई=1310 किमी
 
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|पौराणिक उल्लेख=[[रामायण]] तथा [[महाभारत]] और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं।
 
|पौराणिक उल्लेख=[[रामायण]] तथा [[महाभारत]] और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं।
|धार्मिक महत्त्व=[[मत्स्य पुराण]] एवं [[पद्म पुराण]] आदि में ऐसा आया है कि उस स्थान से जहाँ नर्मदा सागर में मिलती है, अमरकण्टक पर्वत तक, जहाँ से वह निकलती है, 10 करोड़ तीर्थ हैं।  
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|धार्मिक महत्त्व=[[मत्स्य पुराण]] एवं [[पद्म पुराण]] आदि में ऐसा आया है कि उस स्थान से जहाँ नर्मदा सागर में मिलती है, अमरकण्टक पर्वत तक, 10 करोड़ तीर्थ हैं।  
 
|ऐतिहासिक महत्त्व=
 
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|गूगल मानचित्र लिंक=[http://maps.google.co.in/maps?q=Narmada+River,+Madhya+Pradesh&hl=en&ll=22.897683,76.223145&spn=11.621427,14.128418&sll=22.948277,79.013672&sspn=0.363573,0.441513&z=6&iwloc=A नर्मदा नदी]
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नर्मदा [[भारत]] के मध्यभाग में पूरब से पश्चिम की ओर बहने वाली मध्य प्रदेश और [[गुजरात]] राज्य में बहने वाली एक प्रमुख नदी है, जो [[गंगा नदी|गंगा]] के समान पूजनीय है। महाकाल पर्वत के [[अमरकण्टक शिखर]] से नर्मदा नदी की उत्पत्ति हुई है। नर्मदा सर्वत्र पुण्यमयी नदी बताई गई है तथा इसके उद्भव से लेकर संगम तक दस करोड़ तीर्थ हैं।   
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'''नर्मदा नदी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Narmada River'') [[भारत]] के मध्यभाग में पूरब से पश्चिम की ओर बहने वाली [[मध्य प्रदेश]] और [[गुजरात]] राज्य की एक प्रमुख नदी है, जो [[गंगा नदी|गंगा]] के समान पूजनीय है। महाकाल पर्वत के [[अमरकण्टक शिखर]] से नर्मदा नदी की उत्पत्ति हुई है। नर्मदा सर्वत्र पुण्यमयी नदी बताई गई है तथा इसके उद्भव से लेकर संगम तक दस करोड़ तीर्थ हैं।   
 
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*पुण्या कनखले गंगा कुरुक्षेत्रे सरस्वती ।
 
*पुण्या कनखले गंगा कुरुक्षेत्रे सरस्वती ।
ग्रामे वा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा ॥<ref>पद्म पुराण, आदिखण्ड 13-6-7</ref>  
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ग्रामे वा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा ॥<ref>[[पद्म पुराण]], आदिखण्ड 13-6-7</ref>  
 
*नर्मदा संगम यावद् यावच्चामरकण्टकम् ।
 
*नर्मदा संगम यावद् यावच्चामरकण्टकम् ।
तत्रान्तरे महाराज तीर्थकोट्यो दश स्थिता: ॥<ref>पद्म पुराण, आदिखण्ड 21/42</ref>  
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तत्रान्तरे महाराज तीर्थकोट्यो दश स्थिता: ॥<ref>[[पद्म पुराण]], आदिखण्ड 21/42</ref>  
 
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इसका उद्गम [[विंध्याचल पर्वत|विंध्याचल]] की मैकाल पहाड़ी श्रृंखला में [[अमरकंटक]] नामक स्थान में है । मैकाल से निकलने के कारण नर्मदा को मैकाल कन्या भी कहते हैं । [[स्कंद पुराण]] में इस नदी का वर्णन रेवा खंड के अंतर्गत किया गया है । [[कालिदास]] के ‘[[मेघदूतम्]]’ में नर्मदा को रेवा का संबोधन मिला है , जिसका अर्थ है—पहाड़ी चट्टानों से कूदने वाली। वास्तव में नर्मदा की तेजधारा पहाड़ी चट्टानों पर और भेड़ाघाट में संगमरमर की चट्टानों के ऊपर से उछलती हुई बहती है । अमरकंटक में सुंदर सरोवर में स्थित शिवलिंग से निकलने वाली इस पावन धारा को रुद्र कन्या भी कहते हैं, जो आगे चलकर नर्मदा नदी का विशाल रूप धारण कर लेती हैं । पवित्र नदी नर्मदा के तट पर अनेक तीर्थ हैं , जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है । इनमें कपिलधारा, शुक्लतीर्थ, मांधाता, भेड़ाघाट, शूलपाणि, भड़ौंच उल्लेखनीय हैं । अमरकंटक की पहाड़ियों से निकल कर [[छत्तीसगढ़]], [[मध्य प्रदेश]], [[महाराष्ट्र]] और गुजरात से होकर नर्मदा क़्ररीब 1310 किमी का प्रवाह पथ तय कर भरौंच के आगे खंभात की खाड़ी में विलीन हो जाती है । परंपरा के अनुसार नर्मदा की परिक्रमा का प्रावधान हैं, जिससे श्रद्धालुओं को पुण्य की प्राप्ति होती है । [[पुराण|पुराणों]] में बताया गया है कि नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से समस्त पापों का नाश होता है
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==उद्गम स्थल==
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[[चित्र:Narmada-river.jpg|thumb|left|नर्मदा नदी, [[जबलपुर]]]]
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नर्मदा का उद्गम [[विंध्याचल पर्वत|विंध्याचल]] की मैकाल पहाड़ी श्रृंखला में [[अमरकंटक]] नामक स्थान में है। मैकाल से निकलने के कारण नर्मदा को मैकाल कन्या भी कहते हैं। [[स्कंद पुराण]] में इस नदी का वर्णन रेवा खंड के अंतर्गत किया गया है। [[कालिदास]] के ‘[[मेघदूतम्]]’ में नर्मदा को रेवा का संबोधन मिला है, जिसका अर्थ है—पहाड़ी चट्टानों से कूदने वाली। वास्तव में नर्मदा की तेजधारा पहाड़ी चट्टानों पर और भेड़ाघाट में संगमरमर की चट्टानों के ऊपर से उछलती हुई बहती है। अमरकंटक में सुंदर सरोवर में स्थित [[शिवलिंग]] से निकलने वाली इस पावन धारा को रुद्र कन्या भी कहते हैं, जो आगे चलकर नर्मदा नदी का विशाल रूप धारण कर लेती हैं। पवित्र नदी नर्मदा के तट पर अनेक तीर्थ हैं , जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इनमें कपिलधारा, [[शुक्लतीर्थ]], मांधाता, [[भेड़ाघाट]], शूलपाणि, भड़ौंच उल्लेखनीय हैं। अमरकंटक की पहाड़ियों से निकल कर [[छत्तीसगढ़]], [[मध्य प्रदेश]], [[महाराष्ट्र]] और [[गुजरात]] से होकर नर्मदा क़रीब 1310 किमी का प्रवाह पथ तय कर भरौंच के आगे [[खंभात की खाड़ी]] में विलीन हो जाती है। परंपरा के अनुसार नर्मदा की परिक्रमा का प्रावधान हैं, जिससे श्रद्धालुओं को पुण्य की प्राप्ति होती है। [[पुराण|पुराणों]] में बताया गया है कि नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से समस्त पापों का नाश होता है। <br />
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इसकी लम्बाई प्रायः 1310 किलो मीटर है। यह नदी पश्चिम की तरफ जाकर खम्बात की खाड़ी में गिरती है। इस नदी के किनारे बसा शहर [[जबलपुर]] उल्लेखनीय है। इस नदी के मुहाने पर डेल्टा नहीं है। जबलपुर के निकट [[भेड़ाघाट]] का नर्मदा जलप्रपात काफ़ी प्रसिद्ध है। [[वेद|वेदों]] में नर्मदा का कोई उल्लेख नहीं है। [[गंगा]] के उपरान्त [[भारत]] की अत्यन्त पुनीत नदियों में नर्मदा एवं [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] के नाम आते हैं। '''रेवा''' नर्मदा का दूसरा नाम है और यह सम्भव है कि 'रेवा' से ही 'रेवोत्तरस' नाम पड़ा हो।
  
इसकी लम्बाई प्रायः 1310 किलो मीटर है। यह नदी पश्चिम की तरफ जाकर खम्बात की खाड़ी में गिरती है। इस नदी के किनारे बसा शहर [[जबलपुर]] उल्लेखनीय है। इस नदी के मुहाने पर डेल्टा नहीं है। जबलपुर के निकट भेड़ाघाट का नर्मदा जलप्रपात काफ़ी प्रसिद्ध है। [[वेद|वेदों]] में नर्मदा का कोई उल्लेख नहीं है। गंगा के उपरान्त [[भारत]] की अत्यन्त पुनीत नदियों में नर्मदा एवं [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] के नाम आते हैं। '''रेवा''' नर्मदा का दूसरा नाम है और यह सम्भव है कि 'रेवा' से ही 'रेवोत्तरस' नाम पड़ा हो।
 
 
==ग्रंथों में उल्लेख==
 
==ग्रंथों में उल्लेख==
वैदिक साहित्य में नर्मदा के विषय में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता।
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* [[वैदिक साहित्य]] में नर्मदा के विषय में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता।
 
*[[रामायण]] तथा [[महाभारत]] और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी जिससे उसका नाम सोमोद्भवा भी पड़ गया था।<br />  
 
*[[रामायण]] तथा [[महाभारत]] और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी जिससे उसका नाम सोमोद्भवा भी पड़ गया था।<br />  
 
*गुप्तकालीन अमरकोश में भी नर्मदा को सोमोद्भवा कहा है।<ref>’रेवातुनर्मदा सोमोद्भवा मेकलकन्यका’, पौराणिक अनुश्रुति</ref> <br />  
 
*गुप्तकालीन अमरकोश में भी नर्मदा को सोमोद्भवा कहा है।<ref>’रेवातुनर्मदा सोमोद्भवा मेकलकन्यका’, पौराणिक अनुश्रुति</ref> <br />  
 
*[[कालिदास]] ने भी नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है।<ref>’तथेत्युपस्यृश्य पय: पवित्रं सोमोद्भवाया: सरितो नृसोम:’ रघुवंश 5,59</ref> <br />  
 
*[[कालिदास]] ने भी नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है।<ref>’तथेत्युपस्यृश्य पय: पवित्रं सोमोद्भवाया: सरितो नृसोम:’ रघुवंश 5,59</ref> <br />  
 
*[[रघुवंश]] में नर्मदा का उल्लेख है।<ref>'स नर्मदारोधसि सीकराद्रैर्मरुद्भिरानर्तितनक्तमाले, निवेशयामास विलंघिताध्वा क्लांतं रजोधूसरकेतू सैन्यम्’, रघुवंश 5,42</ref> <br />
 
*[[रघुवंश]] में नर्मदा का उल्लेख है।<ref>'स नर्मदारोधसि सीकराद्रैर्मरुद्भिरानर्तितनक्तमाले, निवेशयामास विलंघिताध्वा क्लांतं रजोधूसरकेतू सैन्यम्’, रघुवंश 5,42</ref> <br />
*मेघदूत में रेवा या नर्मदा का सुन्दर वर्णन है।<ref>(दे. रेवा)</ref> <br />
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*मेघदूत में रेवा या नर्मदा का सुन्दर वर्णन है।<ref>दे. रेवा</ref> <br />
[[चित्र:Narmada-River.jpg|नर्मदा नदी<br /> Narmada River|thumb|300px|left]]
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[[चित्र:Narmada-River.jpg|नर्मदा नदी|thumb|300px|left]]
*[[वाल्मीकि रामायण]] में भी नर्मदा का उल्लेख है।<ref>’पश्यमानस्ततो विध्यं रावणोनर्मदां ययौ, चलोपलजलां पुण्यां पश्चिमोदधिगामिनीम्’, वाल्मीकि रामायण-उत्तरकाण्ड, 31,19</ref> इसके पश्चात के श्लोकों में नर्मदा का एक युवती नारी के रूप में सुंदर वर्णन है<ref>’चकवाकै: सकारण्डै: सहंसजलकुक्कुटै:, सारसैश्च सदामत्तै: कूजदिभ: सुसमावृताम्।<br /> फुल्लद्रु मकृत्तोत्तंसां चकवाकयुगस्तनीम्, विस्तीर्णपुलिनश्रोणीं हंसावलि सुमेखलाम्।<br /> पुष्परेण्वनुलिप्तांगींजलफेनामलांशुकाम् जलावगाहसुस्पर्शां फुल्लोत्पल शुभेक्षणाम् पुष्पकादवरुह् याशु नर्मदां सरितां वराम्, इष्टामिव वरां नारीमवगाह्य दशानन्:’, [[उत्तर काण्ड वा. रा.|उत्तरकाण्ड]] 31,21-22-23-24</ref>। <br />
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*[[वाल्मीकि रामायण]] में भी नर्मदा का उल्लेख है।<ref>’पश्यमानस्ततो विध्यं रावणोनर्मदां ययौ, चलोपलजलां पुण्यां पश्चिमोदधिगामिनीम्’, वाल्मीकि रामायण-उत्तरकाण्ड, 31,19</ref> इसके पश्चात् के श्लोकों में नर्मदा का एक युवती नारी के रूप में सुंदर वर्णन है<ref>’चकवाकै: सकारण्डै: सहंसजलकुक्कुटै:, सारसैश्च सदामत्तै: कूजदिभ: सुसमावृताम्।<br /> फुल्लद्रु मकृत्तोत्तंसां चकवाकयुगस्तनीम्, विस्तीर्णपुलिनश्रोणीं हंसावलि सुमेखलाम्।<br /> पुष्परेण्वनुलिप्तांगींजलफेनामलांशुकाम् जलावगाहसुस्पर्शां फुल्लोत्पल शुभेक्षणाम् पुष्पकादवरुह् याशु नर्मदां सरितां वराम्, इष्टामिव वरां नारीमवगाह्य दशानन्:’, [[उत्तर काण्ड वा. रा.|उत्तरकाण्ड]] 31,21-22-23-24</ref>। <br />
*महाभारत में नर्मदा को ॠक्षपर्वत से उद्भूत माना गया है।<ref>’पुरश्चपश्चाच्च यथा महानदी तमृक्षवन्तं गिरिमेत्य नर्मदा’, शान्तिपर्व 52,32</ref> <ref>(दे. वनपर्व 82,52)</ref> <br />
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*महाभारत में नर्मदा को ॠक्षपर्वत से उद्भूत माना गया है।<ref>’पुरश्चपश्चाच्च यथा महानदी तमृक्षवन्तं गिरिमेत्य नर्मदा’, शान्तिपर्व 52,32</ref> <ref>दे. वनपर्व 82,52</ref> <br />
 
*[[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्मपर्व]] में नर्मदा का [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] के साथ उल्लेख है।<ref>’गोदावरीं नर्मदां च बाहुदां च महानदीम्’, भीष्मपर्व 9,14</ref> <br />
 
*[[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्मपर्व]] में नर्मदा का [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] के साथ उल्लेख है।<ref>’गोदावरीं नर्मदां च बाहुदां च महानदीम्’, भीष्मपर्व 9,14</ref> <br />
 
*श्रीमद्भागवत में रेवा और नर्मदा दोनों का ही एक स्थान पर उल्लेख है।<ref>’तापी रेवा सरसा नर्मदा चर्मण्वती सिंधुरन्ध: शोणश्च नदौ’, श्रीमद्भागवत 5,19,18</ref>  
 
*श्रीमद्भागवत में रेवा और नर्मदा दोनों का ही एक स्थान पर उल्लेख है।<ref>’तापी रेवा सरसा नर्मदा चर्मण्वती सिंधुरन्ध: शोणश्च नदौ’, श्रीमद्भागवत 5,19,18</ref>  
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*रघुवंश<ref>रघुवंश 96.43</ref> में रेवा (अर्थात् नर्मदा) के तट पर स्थित माहिष्मती को अनूप की राजधानी कहा गया है।  
 
*रघुवंश<ref>रघुवंश 96.43</ref> में रेवा (अर्थात् नर्मदा) के तट पर स्थित माहिष्मती को अनूप की राजधानी कहा गया है।  
  
जान पड़ता है कि कहीं-कहीं साहित्य में इस नदी के पूर्वी या पहाड़ी भाग को रेवा (शाब्दिक अर्थ—उछलने-कूदने वाली) और पश्चिमी या मैदानी भाग को नर्मदा  (शाब्दिक अर्थ—नर्म या सुख देने वाली) कहा गया है। (किन्तु महाभारत के उपर्युक्त उद्धरण में उदगम के निकट ही नदी को नर्मदा नाम से अभिहित किया गया है)। नर्मदा के तटवर्ती प्रदेश को भी कभी-कभी नर्मदा नाम से ही निर्दिष्ट किया जाता था। विष्णुपुराण के अनुसार इस प्रदेश पर शायद गुप्तकाल से पूर्व आभीर आदि शूद्रजातियों का अधिकार था।<ref>’नर्मदा मरुभूविषयांश्च-आभीर शूद्राद्या: भोक्ष्यन्ति’, विष्णुपुराण 4,24</ref> वैसे नर्मदा का नदी के रूप में उल्लेख है।<ref>तैश्चोक्तं पुरुकुत्साय भूभुजे नर्मदा तटे, सारस्वताय तेनापि मह्यं सारस्वतेन च’; ‘नर्मदा सुरसाद्याश्च नद्यो विंध्याद्रिनिर्गता;’, [[विष्णु पुराण]] 1,2,9; 2,3,11</ref> <ref>दे. रेवा, सोमोद्भवा।</ref>  
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कहीं-कहीं साहित्य में इस नदी के पूर्वी या पहाड़ी भाग को रेवा (शाब्दिक अर्थ—उछलने-कूदने वाली) और पश्चिमी या मैदानी भाग को नर्मदा  (शाब्दिक अर्थ—नर्म या सुख देने वाली) कहा गया है। (किन्तु महाभारत के उपर्युक्त उद्धरण में उदगम के निकट ही नदी को नर्मदा नाम से अभिहित किया गया है)। नर्मदा के तटवर्ती प्रदेश को भी कभी-कभी नर्मदा नाम से ही निर्दिष्ट किया जाता था। विष्णुपुराण के अनुसार इस प्रदेश पर शायद गुप्तकाल से पूर्व आभीर आदि शूद्रजातियों का अधिकार था।<ref>’नर्मदा मरुभूविषयांश्च-आभीर शूद्राद्या: भोक्ष्यन्ति’, विष्णुपुराण 4,24</ref> वैसे नर्मदा का नदी के रूप में उल्लेख है।<ref>तैश्चोक्तं पुरुकुत्साय भूभुजे नर्मदा तटे, सारस्वताय तेनापि मह्यं सारस्वतेन च’; ‘नर्मदा सुरसाद्याश्च नद्यो विंध्याद्रिनिर्गता;’, [[विष्णु पुराण]] 1,2,9; 2,3,11</ref> <ref>दे. रेवा, सोमोद्भवा।</ref>  
== नर्मदा की महत्ता==
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==नर्मदा की महत्ता==
[[चित्र:Narmada-River-2.jpg|thumb|250px|नर्मदा नदी <br /> Narmada River]]
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[[चित्र:Narmada-River-2.jpg|thumb|250px|नर्मदा नदी ]]
महाभारत एवं कतिपय [[पुराण|पुराणों]] में नर्मदा की चर्चा बहुधा हुई है। [[मत्स्य पुराण]]<ref>अध्याय 186-194,554 श्लोक</ref>, [[पद्म पुराण]]<ref>आदिखण्ड, अध्याय 13-23, 739 श्लोक, जिनमें बहुत से मत्स्य पुराण के ही श्लोक हैं</ref> [[कूर्म पुराण]]<ref>उत्तरार्ध, अध्याय 40-42, 189 श्लोक</ref> ने नर्मदा की महत्ता एवं उसके तीर्थों का वर्णन किया है। मत्स्य पुराण<ref>मत्स्य पुराण 194.45</ref> एवं पद्म पुराण आदि<ref>पद्म पुराण, 21.44</ref> में ऐसा आया है कि उस स्थान से जहाँ नर्मदा सागर में मिलती है, अमरकण्टक पर्वत तक, जहाँ से वह निकलती है, 10 करोड़ तीर्थ हैं। अग्नि पुराण<ref>अग्नि पुराण 113.2</ref> एवं कूर्म पुराण<ref>कूर्म पुराण, 2.40.13</ref> के मत से क्रम से 60 करोड़ एवं 60 सहस्र तीर्थ हैं। [[नारद पुराण|नारदीय पुराण]]<ref>उत्तरार्ध, अध्याय 77</ref> का कथन है कि नर्मदा के दोनों तटों पर 400 मुख्य तीर्थ हैं<ref>श्लोक 1</ref>, किन्तु अमरकण्टक से लेकर साढ़े तीन करोड़ हैं।<ref>श्लोक 4 एवं 27-28</ref> <ref>यद्यपि रेवा एवं नर्मदा सामान्यत: समानार्थक कही जाती हैं, किन्तु [[भागवत पुराण]], 5.19.18 ने इन्हें पृथक्-पृथक् (तापी-रेवा-सुरसा-नर्मदा) कहा है, और [[वामन पुराण]], 13.25 एवं 29-30 का कथन है कि रेवा विन्ध्य से तथा नर्मदा ऋक्षपाद से निकली है। सार्धत्रिकोटितीर्थानि गदितानीह वायुना। दिवि भुव्यन्तरिक्षे च रेवायां तानि सन्ति च॥ नारदीय पुराण (उत्तर, 77.27-28)।</ref> [[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]]<ref>वन पर्व, 188.103 एवं 222.24</ref> ने नर्मदा का उल्लेख गोदावरी एवं दक्षिण की अन्य नदियों के साथ किया है। उसी पर्व<ref>वन पर्व, 89.1-3</ref> में यह भी आया हैं कि नर्मदा [[आनर्त]] देश में है, यह प्रियंगु एवं आम्र-कुञ्जों से परिपूर्ण है, इसमें वेत्र लता के वितान पाये जाते हैं, यह पश्चिम की ओर बहती है और तीनों लोकों के सभी तीर्थ यहाँ (नर्मदा में) स्नान करने को आते हैं।<ref>ऐसा लगता है कि प्राचीन काल में गुजरात एवं [[काठियावाड़]] को आनर्त कहा जाता था। [[उद्योग पर्व महाभारत|उद्योग पर्व]], 97-6 में [[द्वारका]] को आनर्त–नगरी कहा गया है। नर्मदा आनर्त में होकर बहती मानी गयी है अत: ऐसी कल्पना की जाती है कि [[महाभारत]] के काल में आनर्त के अन्तर्गत [[गुजरात]] का दक्षिणीभाग एवं काठियावाड़ दोनों सम्मिलित थे।</ref> मत्स्य पुराण एवं पद्म पुराण ने उद्घोष किया है कि गंगा कनखल में एवं [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] [[कुरुक्षेत्र]] में पवित्र है, किन्तु नर्मदा सभी स्थानों में, चाहे ग्राम हो या वन। नर्मदा केवल दर्शन-मात्र से पापी को पवित्र कर देती है; सरस्वती (तीन दिनों में) तीन स्नानों से, [[यमुना नदी|यमुना]] सात दिनों के स्नानों से और गंगा केवल एक स्नान से।<ref>मत्स्य पुराण, 186.10-11=पद्म पुराण, आदि, 13.6-7=कूर्म पुराण 2.40.7-8</ref> विष्णुधर्मसूत्र<ref>विष्णुधर्मसूत्र, 85.8</ref> ने [[श्राद्ध]] के योग्य तीर्थों की सूची दी हैं, जिसमें नर्मदा के सभी स्थलों को श्राद्ध के योग्य ठहराया है। नर्मदा को रुद्र के शरीर से निकली हुई कहा गया है, जो इस बात का कवित्वमय प्रकटीकरण मात्र है कि यह अमरकण्टक से निकली है जो महेश्वर एवं उनकी पत्नी का निवास-स्थल कहा जाता है।<ref>मत्स्य पुराण, 188.19</ref> <ref> नर्मदा सरितां श्रेंष्ठा रुद्रदेहाद्विनि:सृता। तारयेंत्सर्वभूतानि स्थावराणि चराणि च॥ मत्स्य पुराण (190.17= कूर्म पुराण 2.40.5= पद्म पुराण, आदिखण्ड 17.13)।</ref> [[वायु पुराण]]<ref>वायु पुराण, 977.32</ref> में ऐसा उद्घोषित है कि नदियों में श्रेष्ठ पुनीत नर्मदा पितरों की पुत्री है और इस पर किया गया श्राद्ध अक्षय होता है।<ref>पितृणां दुहिता पुण्या नर्मदा सरितां वरा। तत्र श्राद्धानि दत्तानि अक्षयाणि भवन्त्युत॥ वायुपुराण (77.32)।</ref> मत्स्य पुराण एवं कूर्म पुराण का कथन है कि यह 100 योजन लम्बी एवं दो योजन चौड़ी है।<ref>योजनानां शतं सग्रं श्रूयते सरिदुत्तमा। विस्तारेण तु राजेन्द्र योजनद्वयमायता॥ कूर्म पुराण (2.40.12=मत्स्य पुराण 186.24-25)। और देखिए अग्नि पुराण (113।2)।</ref> प्रो.के.वी. रंगस्वामी आयंगर ने कहा है कि मत्स्य पुराण की बात ठीक है, क्योंकि नर्मदा वास्तव में लगभग 800 मील लम्बी है।<ref>उनके द्वारा सम्पादित कल्पतरु, पृ. 199</ref> किन्तु दो योजन (अर्थात् उनके मतानुसार 16 मील) की चौड़ाई भ्रामक है। मत्स्य पुराण एवं कूर्म पुराण का कथन है कि नर्मदा अमरकण्टक से निकली हैं, जो कलिंग देश का पश्चिमी भाग है।<ref>कलिंगदेशपश्चार्धे पर्वतेऽमरकण्टके। पुण्या च त्रिषु लोकेषु रमणीया मनोरमा॥ कूर्म पुराण (2.40.9) एवं मत्स्य पुराण (186.12)।</ref>
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[[महाभारत]] एवं कतिपय [[पुराण|पुराणों]] में नर्मदा की चर्चा बहुधा हुई है। [[मत्स्य पुराण]]<ref>अध्याय 186-194,554 श्लोक</ref>, [[पद्म पुराण]]<ref>आदिखण्ड, अध्याय 13-23, 739 श्लोक, जिनमें बहुत से मत्स्य पुराण के ही श्लोक हैं</ref> [[कूर्म पुराण]]<ref>उत्तरार्ध, अध्याय 40-42, 189 श्लोक</ref> ने नर्मदा की महत्ता एवं उसके तीर्थों का वर्णन किया है। मत्स्य पुराण<ref>मत्स्य पुराण 194.45</ref> एवं पद्म पुराण आदि<ref>पद्म पुराण, 21.44</ref> में ऐसा आया है कि उस स्थान से जहाँ नर्मदा सागर में मिलती है, अमरकण्टक पर्वत तक, जहाँ से वह निकलती है, 10 करोड़ तीर्थ हैं। अग्नि पुराण<ref>अग्नि पुराण 113.2</ref> एवं कूर्म पुराण<ref>कूर्म पुराण, 2.40.13</ref> के मत से क्रम से 60 करोड़ एवं 60 सहस्र तीर्थ हैं। [[नारद पुराण|नारदीय पुराण]]<ref>उत्तरार्ध, अध्याय 77</ref> का कथन है कि नर्मदा के दोनों तटों पर 400 मुख्य तीर्थ हैं<ref>श्लोक 1</ref>, किन्तु अमरकण्टक से लेकर साढ़े तीन करोड़ हैं।<ref>श्लोक 4 एवं 27-28</ref> <ref>यद्यपि रेवा एवं नर्मदा सामान्यत: समानार्थक कही जाती हैं, किन्तु [[भागवत पुराण]], 5.19.18 ने इन्हें पृथक्-पृथक् (तापी-रेवा-सुरसा-नर्मदा) कहा है, और [[वामन पुराण]], 13.25 एवं 29-30 का कथन है कि रेवा विन्ध्य से तथा नर्मदा ऋक्षपाद से निकली है। सार्धत्रिकोटितीर्थानि गदितानीह वायुना। दिवि भुव्यन्तरिक्षे च रेवायां तानि सन्ति च॥ नारदीय पुराण (उत्तर, 77.27-28)।</ref> [[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]]<ref>वन पर्व, 188.103 एवं 222.24</ref> ने नर्मदा का उल्लेख गोदावरी एवं दक्षिण की अन्य नदियों के साथ किया है। उसी पर्व<ref>वन पर्व, 89.1-3</ref> में यह भी आया हैं कि नर्मदा [[आनर्त]] देश में है, यह प्रियंगु एवं आम्र-कुञ्जों से परिपूर्ण है, इसमें वेत्र लता के वितान पाये जाते हैं, यह पश्चिम की ओर बहती है और तीनों लोकों के सभी तीर्थ यहाँ (नर्मदा में) स्नान करने को आते हैं।<ref>ऐसा लगता है कि प्राचीन काल में गुजरात एवं [[काठियावाड़]] को आनर्त कहा जाता था। [[उद्योग पर्व महाभारत|उद्योग पर्व]], 97-6 में [[द्वारका]] को आनर्त–नगरी कहा गया है। नर्मदा आनर्त में होकर बहती मानी गयी है अत: ऐसी कल्पना की जाती है कि [[महाभारत]] के काल में आनर्त के अन्तर्गत [[गुजरात]] का दक्षिणीभाग एवं काठियावाड़ दोनों सम्मिलित थे।</ref> मत्स्य पुराण एवं पद्म पुराण ने उद्घोष किया है कि गंगा [[कनखल]] में एवं [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] [[कुरुक्षेत्र]] में पवित्र है, किन्तु नर्मदा सभी स्थानों में, चाहे ग्राम हो या वन। नर्मदा केवल दर्शन-मात्र से पापी को पवित्र कर देती है; सरस्वती (तीन दिनों में) तीन स्नानों से, [[यमुना नदी|यमुना]] सात दिनों के स्नानों से और गंगा केवल एक स्नान से।<ref>मत्स्य पुराण, 186.10-11=पद्म पुराण, आदि, 13.6-7=कूर्म पुराण 2.40.7-8</ref> विष्णुधर्मसूत्र<ref>विष्णुधर्मसूत्र, 85.8</ref> ने [[श्राद्ध]] के योग्य तीर्थों की सूची दी हैं, जिसमें नर्मदा के सभी स्थलों को श्राद्ध के योग्य ठहराया है। नर्मदा को रुद्र के शरीर से निकली हुई कहा गया है, जो इस बात का कवित्वमय प्रकटीकरण मात्र है कि यह अमरकण्टक से निकली है जो महेश्वर एवं उनकी पत्नी का निवास-स्थल कहा जाता है।<ref>मत्स्य पुराण, 188.19</ref> <ref> नर्मदा सरितां श्रेंष्ठा रुद्रदेहाद्विनि:सृता। तारयेंत्सर्वभूतानि स्थावराणि चराणि च॥ मत्स्य पुराण (190.17= कूर्म पुराण 2.40.5= पद्म पुराण, आदिखण्ड 17.13)।</ref> [[वायु पुराण]]<ref>वायु पुराण, 977.32</ref> में ऐसा उद्घोषित है कि नदियों में श्रेष्ठ पुनीत नर्मदा पितरों की पुत्री है और इस पर किया गया श्राद्ध अक्षय होता है।<ref>पितृणां दुहिता पुण्या नर्मदा सरितां वरा। तत्र श्राद्धानि दत्तानि अक्षयाणि भवन्त्युत॥ वायुपुराण (77.32)।</ref> मत्स्य पुराण एवं कूर्म पुराण का कथन है कि यह 100 योजन लम्बी एवं दो योजन चौड़ी है।<ref>योजनानां शतं सग्रं श्रूयते सरिदुत्तमा। विस्तारेण तु राजेन्द्र योजनद्वयमायता॥ कूर्म पुराण (2.40.12=मत्स्य पुराण 186.24-25)। और देखिए अग्नि पुराण (113।2)।</ref> प्रो.के.वी. रंगस्वामी आयंगर ने कहा है कि मत्स्य पुराण की बात ठीक है, क्योंकि नर्मदा वास्तव में लगभग 800 मील लम्बी है।<ref>उनके द्वारा सम्पादित कल्पतरु, पृ. 199</ref> किन्तु दो योजन (अर्थात् उनके मतानुसार 16 मील) की चौड़ाई भ्रामक है। मत्स्य पुराण एवं कूर्म पुराण का कथन है कि नर्मदा अमरकण्टक से निकली हैं, जो कलिंग देश का पश्चिमी भाग है।<ref>कलिंगदेशपश्चार्धे पर्वतेऽमरकण्टके। पुण्या च त्रिषु लोकेषु रमणीया मनोरमा॥ कूर्म पुराण (2.40.9) एवं मत्स्य पुराण (186.12)।</ref>[[चित्र:Narmada-River-1.jpg|thumb|250px|left|नर्मदा नदी ]]
 
==मन्त्र का जप एवं उपवास==
 
==मन्त्र का जप एवं उपवास==
विष्णुपुराण ने व्यवस्था दी है कि यदि कोई रात एवं दिन में और जब अन्धकारपूर्ण स्थान में उसे जाना हो तब 'प्रात:काल नर्मदा को नमस्कार, रात्रि में नर्मदा को नमस्कार! हे नर्मदा, तुम्हें नमस्कार; मुझे विषधर साँपों से बचाओं' इस मन्त्र का जप करके चलता है तो उसे साँपों का भय नहीं होता।<ref>नर्मदायै नम: प्रातर्नर्मदायै नमो निशि। नमोस्तु नर्मदे तुभ्यं त्राहि मां विषसर्पत:॥ विष्णुपुराण (4.3.12-13)।</ref> कूर्म पुराण एवं मत्स्य पुराण में ऐसा कहा गया है कि जो [[अग्निदेव|अग्नि]] या जल में प्रवेश करके या उपवास करके (नर्मदा के किसी तीर्थ पर या अमरकण्टक पर) प्राण त्यागता है वह पुन: (इस संसार में) नहीं आता।<ref>अनाशकं तु य: कुर्यात्तस्मिंस्तीर्थे नराधिप। गर्भवासे तु राजेन्द्र न पुनर्जायतें पुमान् ॥ मत्स्य. (194.29-30); परित्यजति य: प्राणान् पर्वत्तेऽमरकण्टके। वर्षकोटिशतं साग्रं रुद्रलोके महीयतें॥ मत्स्य पुराण (186.53-54)।</ref>
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[[विष्णु पुराण]] ने व्यवस्था दी है कि यदि कोई रात एवं दिन में और जब अन्धकारपूर्ण स्थान में उसे जाना हो तब 'प्रात:काल नर्मदा को नमस्कार, रात्रि में नर्मदा को नमस्कार! हे नर्मदा, तुम्हें नमस्कार; मुझे विषधर साँपों से बचाओं' इस मन्त्र का जप करके चलता है तो उसे साँपों का भय नहीं होता।<ref>नर्मदायै नम: प्रातर्नर्मदायै नमो निशि। नमोस्तु नर्मदे तुभ्यं त्राहि माँ विषसर्पत:॥ विष्णुपुराण (4.3.12-13)।</ref> कूर्म पुराण एवं मत्स्य पुराण में ऐसा कहा गया है कि जो [[अग्निदेव|अग्नि]] या जल में प्रवेश करके या उपवास करके (नर्मदा के किसी तीर्थ पर या अमरकण्टक पर) प्राण त्यागता है वह पुन: (इस संसार में) नहीं आता।<ref>अनाशकं तु य: कुर्यात्तस्मिंस्तीर्थे नराधिप। गर्भवासे तु राजेन्द्र न पुनर्जायतें पुमान् ॥ मत्स्य. (194.29-30); परित्यजति य: प्राणान् पर्वत्तेऽमरकण्टके। वर्षकोटिशतं साग्रं रुद्रलोके महीयतें॥ मत्स्य पुराण (186.53-54)।</ref>
 
==प्राचीन लेख==
 
==प्राचीन लेख==
टॉलेमी ने नर्मदा को 'नमडोज' कहा है।<ref>पृ0 102</ref> नर्मदा की चर्चा करने वाले शिलालेखों में एक अति प्राचीन लेख है एरन प्रस्तरस्तम्भाभिले, जो बुधगुप्त के काल<ref>गुप्त संवत् 165= 484-85 ई.</ref> का है।<ref>देखिए कार्पस इंस्क्रिप्शनम इण्डिकेरम जिल्द 3, पृ. 89</ref> नर्मदा में मिलने वाली कतिपय नदियों के नाम मिलते हैं, यथा-  
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[[टॉलमी]] ने नर्मदा को 'नमडोज' कहा है।<ref>पृ0 102</ref> नर्मदा की चर्चा करने वाले शिलालेखों में एक अति प्राचीन लेख है एरन प्रस्तरस्तम्भाभिले, जो बुधगुप्त के काल<ref>गुप्त संवत् 165= 484-85 ई.</ref> का है।<ref>देखिए कार्पस इंस्क्रिप्शनम इण्डिकेरम जिल्द 3, पृ. 89</ref> नर्मदा में मिलने वाली कतिपय नदियों के नाम मिलते हैं, यथा-  
 
*[[कपिला नदी]]<ref>दक्षिणी तट पर, मत्स्य पुराण 186.40 एवं पद्म पुराण 1.13.35</ref>  
 
*[[कपिला नदी]]<ref>दक्षिणी तट पर, मत्स्य पुराण 186.40 एवं पद्म पुराण 1.13.35</ref>  
 
*विशल्या<ref>मत्स्य पुराण 186.46= पद्म पुराण 2.35-39</ref>
 
*विशल्या<ref>मत्स्य पुराण 186.46= पद्म पुराण 2.35-39</ref>
[[चित्र:Narmada-River-1.jpg|thumb|250px|left|नर्मदा नदी <br /> Narmada River]]
 
 
*[[एरण्डी नदी]]<ref>मत्स्य पुराण 191.42-43 एवं पद्म पुराण 1.18.44</ref>  
 
*[[एरण्डी नदी]]<ref>मत्स्य पुराण 191.42-43 एवं पद्म पुराण 1.18.44</ref>  
*इक्षु-नादी<ref>मत्स्य पुराण 191.49 एवं पद्म पुराण 1.18.47</ref>
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*इक्षु-नादी<ref>[[मत्स्य पुराण]] 191.49 एवं पद्म पुराण 1.18.47</ref>
*[[कावेरी नदी]]।<ref>मत्स्य पुराण 189.12-13 एवं पद्म पुराण 1.16.6</ref><ref>नर्मदा की उत्तरी शाखा जहाँ 'ओंकार' नामक द्वीप अवस्थित है 'कावेंरी' नाम से प्रसिद्ध है।</ref>
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*[[कावेरी नदी]]।<ref>[[मत्स्य पुराण]] 189.12-13 एवं पद्म पुराण 1.16.6</ref><ref>नर्मदा की उत्तरी शाखा जहाँ 'ओंकार' नामक द्वीप अवस्थित है 'कावेंरी' नाम से प्रसिद्ध है।</ref>
  
 
==उपतीर्थ==
 
==उपतीर्थ==
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[[चित्र:Sardar-Sarovar-Dam.jpg|thumb|250px|[[सरदार सरोवर बाँध]], नर्मदा नदी]]
 
बहुत-से उपतीर्थों के नाम आते हैं जिनमें दो या तीन का यहाँ उल्लेख किया जायगा। जो है-  
 
बहुत-से उपतीर्थों के नाम आते हैं जिनमें दो या तीन का यहाँ उल्लेख किया जायगा। जो है-  
*महेश्वरतीर्थ (अर्थात् ओंकार), जहाँ से एक तीर द्वारा रुद्र ने बाणासुर की तीन नगरियाँ जला डालीं<ref>मत्स्य पुराण 188.2 एवं पद्म पुराण 1.15.2</ref>,
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*महेश्वरतीर्थ (अर्थात् ओंकार), जहाँ से एक तीर द्वारा रुद्र ने बाणासुर की तीन नगरियाँ जला डालीं<ref>मत्स्य पुराण 188.2 एवं [[पद्म पुराण]] 1.15.2</ref>,
* शुक्ल-तीर्थ<ref>मत्स्य पुराण 192.3 द्वारा अति प्रशंसित और जिसके बारे में यह कहा जाता है कि राजर्षि चाणक्य ने यहाँ सिद्धि प्राप्त की थी</ref>,  
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* शुक्ल-तीर्थ<ref>[[मत्स्य पुराण]] 192.3 द्वारा अति प्रशंसित और जिसके बारे में यह कहा जाता है कि राजर्षि चाणक्य ने यहाँ सिद्धि प्राप्त की थी</ref>,  
 
*भृगुतीर्थ:-जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य पाप-मुक्त हो जाता है, जिसमें स्नान करने से स्वर्ग मिलता है और जहाँ मरने से संसार में पुन: लौटना नहीं पड़ता,  
 
*भृगुतीर्थ:-जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य पाप-मुक्त हो जाता है, जिसमें स्नान करने से स्वर्ग मिलता है और जहाँ मरने से संसार में पुन: लौटना नहीं पड़ता,  
 
*जामदग्न्य तीर्थ:-जहाँ नर्मदा समुद्र में गिरती है और जहाँ भगवान जनार्दन ने पूर्णता प्राप्त की।  
 
*जामदग्न्य तीर्थ:-जहाँ नर्मदा समुद्र में गिरती है और जहाँ भगवान जनार्दन ने पूर्णता प्राप्त की।  
  
अमरकण्टक पर्वत एक तीर्थ है जो ब्रह्महत्या के साथ अन्य पापों का मोचन करता है और यह विस्तार में एक योजन है।<ref>मत्स्य पुराण 189.89 एवं 98</ref> नर्मदा का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तीर्थ है माहिष्मती, जिसके स्थल के विषय में विद्वानों में मतभेद रहा है। अधिकांश लेखक यही कहते हैं कि यह ओंकार मान्धाता है जो [[इन्दौर]] से लगभग 40 मील दक्षिण नर्मदा में एक द्वीप है। इसका इतिहास पुराना है। [[बौद्ध]] ग्रन्थों में ऐसा आया है कि अशोक महान् के राज्यकाल<ref>लगभग 274 ई.पू.</ref> में मोग्गलिपुत्त तिस्स ने कई देशों में धार्मिक दूत-मण्डल भेजे थे, जिनमें एक दूतमण्डल महिषमण्डल को भी भेजा गया था। डा. फ्लीट ने महिषमण्डल को माहिष्मती कहा है।<ref>जे. आर. ए. एस्., पृ. 425-477, सन् 1910</ref> महाभाष्यकार को माहिष्मती का ज्ञान था<ref>पाणिनि 3.1.26, वार्तिक 10</ref> [[कालिदास]] ने इसे रेवा से घिरी हुई कहा है।<ref>रघुवंश 6.43</ref> उद्योगपर्व<ref>उद्योगपर्व, 19.23-24 एवं 166.4</ref>, [[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]]<ref>अनुशासन पर्व, 166.4</ref>, [[भागवत पुराण]]<ref>भागवतपुराण, 10.79.21</ref> एवं पद्म पुराण<ref>पद्म पुराण, 2.92.32</ref> में माहिष्मती को नर्मदा या रेवा पर स्थित माना गया है। एक अन्य प्राचीन नगर है भरुकच्छ या भृगुकच्छ (आधुनिक भड़ोच)।
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अमरकण्टक पर्वत एक तीर्थ है जो ब्रह्महत्या के साथ अन्य पापों का मोचन करता है और यह विस्तार में एक योजन है।<ref>मत्स्य पुराण 189.89 एवं 98</ref> नर्मदा का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तीर्थ है [[माहिष्मती]], जिसके स्थल के विषय में विद्वानों में मतभेद रहा है। अधिकांश लेखक यही कहते हैं कि यह ओंकार मान्धाता है जो [[इन्दौर]] से लगभग 40 मील दक्षिण नर्मदा में एक द्वीप है। इसका इतिहास पुराना है। [[बौद्ध]] ग्रन्थों में ऐसा आया है कि अशोक महान् के राज्यकाल<ref>लगभग 274 ई.पू.</ref> में मोग्गलिपुत्त तिस्स ने कई देशों में धार्मिक दूत-मण्डल भेजे थे, जिनमें एक दूतमण्डल महिषमण्डल को भी भेजा गया था। डॉ. फ्लीट ने महिषमण्डल को माहिष्मती कहा है।<ref>जे. आर. ए. एस्., पृ. 425-477, सन् 1910</ref> महाभाष्यकार को माहिष्मती का ज्ञान था<ref>पाणिनि 3.1.26, वार्तिक 10</ref> [[कालिदास]] ने इसे रेवा से घिरी हुई कहा है।<ref>रघुवंश 6.43</ref> [[उद्योगपर्व महाभारत|उद्योगपर्व]]<ref>[[उद्योगपर्व महाभारत|उद्योगपर्व]], 19.23-24 एवं 166.4</ref>, [[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]]<ref>अनुशासन पर्व, 166.4</ref>, [[भागवत पुराण]]<ref>[[भागवतपुराण]], 10.79.21</ref> एवं पद्म पुराण<ref>पद्म पुराण, 2.92.32</ref> में माहिष्मती को नर्मदा या रेवा पर स्थित माना गया है। एक अन्य प्राचीन नगर है भरुकच्छ या भृगुकच्छ (आधुनिक भड़ोच)।
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==संबंधित लेख==
 
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11:21, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण


नर्मदा नदी
नर्मदा नदी
अन्य नाम रेवा
देश भारत
राज्य गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र
प्रमुख नगर जबलपुर, इन्दौर, वड़ोदरा
उद्गम स्थल विंध्याचल की मैकाल पहाड़ी श्रृंखला में अमरकंटक नामक स्थान
लम्बाई 1310 किमी
पौराणिक उल्लेख रामायण तथा महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं।
धार्मिक महत्त्व मत्स्य पुराण एवं पद्म पुराण आदि में ऐसा आया है कि उस स्थान से जहाँ नर्मदा सागर में मिलती है, अमरकण्टक पर्वत तक, 10 करोड़ तीर्थ हैं।
गूगल मानचित्र नर्मदा नदी

नर्मदा नदी (अंग्रेज़ी: Narmada River) भारत के मध्यभाग में पूरब से पश्चिम की ओर बहने वाली मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य की एक प्रमुख नदी है, जो गंगा के समान पूजनीय है। महाकाल पर्वत के अमरकण्टक शिखर से नर्मदा नदी की उत्पत्ति हुई है। नर्मदा सर्वत्र पुण्यमयी नदी बताई गई है तथा इसके उद्भव से लेकर संगम तक दस करोड़ तीर्थ हैं।

  • पुण्या कनखले गंगा कुरुक्षेत्रे सरस्वती ।

ग्रामे वा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा ॥[1]

  • नर्मदा संगम यावद् यावच्चामरकण्टकम् ।

तत्रान्तरे महाराज तीर्थकोट्यो दश स्थिता: ॥[2]

उद्गम स्थल

नर्मदा नदी, जबलपुर

नर्मदा का उद्गम विंध्याचल की मैकाल पहाड़ी श्रृंखला में अमरकंटक नामक स्थान में है। मैकाल से निकलने के कारण नर्मदा को मैकाल कन्या भी कहते हैं। स्कंद पुराण में इस नदी का वर्णन रेवा खंड के अंतर्गत किया गया है। कालिदास के ‘मेघदूतम्’ में नर्मदा को रेवा का संबोधन मिला है, जिसका अर्थ है—पहाड़ी चट्टानों से कूदने वाली। वास्तव में नर्मदा की तेजधारा पहाड़ी चट्टानों पर और भेड़ाघाट में संगमरमर की चट्टानों के ऊपर से उछलती हुई बहती है। अमरकंटक में सुंदर सरोवर में स्थित शिवलिंग से निकलने वाली इस पावन धारा को रुद्र कन्या भी कहते हैं, जो आगे चलकर नर्मदा नदी का विशाल रूप धारण कर लेती हैं। पवित्र नदी नर्मदा के तट पर अनेक तीर्थ हैं , जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इनमें कपिलधारा, शुक्लतीर्थ, मांधाता, भेड़ाघाट, शूलपाणि, भड़ौंच उल्लेखनीय हैं। अमरकंटक की पहाड़ियों से निकल कर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होकर नर्मदा क़रीब 1310 किमी का प्रवाह पथ तय कर भरौंच के आगे खंभात की खाड़ी में विलीन हो जाती है। परंपरा के अनुसार नर्मदा की परिक्रमा का प्रावधान हैं, जिससे श्रद्धालुओं को पुण्य की प्राप्ति होती है। पुराणों में बताया गया है कि नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से समस्त पापों का नाश होता है।
इसकी लम्बाई प्रायः 1310 किलो मीटर है। यह नदी पश्चिम की तरफ जाकर खम्बात की खाड़ी में गिरती है। इस नदी के किनारे बसा शहर जबलपुर उल्लेखनीय है। इस नदी के मुहाने पर डेल्टा नहीं है। जबलपुर के निकट भेड़ाघाट का नर्मदा जलप्रपात काफ़ी प्रसिद्ध है। वेदों में नर्मदा का कोई उल्लेख नहीं है। गंगा के उपरान्त भारत की अत्यन्त पुनीत नदियों में नर्मदा एवं गोदावरी के नाम आते हैं। रेवा नर्मदा का दूसरा नाम है और यह सम्भव है कि 'रेवा' से ही 'रेवोत्तरस' नाम पड़ा हो।

ग्रंथों में उल्लेख

  • वैदिक साहित्य में नर्मदा के विषय में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता।
  • रामायण तथा महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी जिससे उसका नाम सोमोद्भवा भी पड़ गया था।
  • गुप्तकालीन अमरकोश में भी नर्मदा को सोमोद्भवा कहा है।[3]
  • कालिदास ने भी नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है।[4]
  • रघुवंश में नर्मदा का उल्लेख है।[5]
  • मेघदूत में रेवा या नर्मदा का सुन्दर वर्णन है।[6]
नर्मदा नदी
  • वाल्मीकि रामायण में भी नर्मदा का उल्लेख है।[7] इसके पश्चात् के श्लोकों में नर्मदा का एक युवती नारी के रूप में सुंदर वर्णन है[8]
  • महाभारत में नर्मदा को ॠक्षपर्वत से उद्भूत माना गया है।[9] [10]
  • भीष्मपर्व में नर्मदा का गोदावरी के साथ उल्लेख है।[11]
  • श्रीमद्भागवत में रेवा और नर्मदा दोनों का ही एक स्थान पर उल्लेख है।[12]
  • शतपथ ब्राह्मण[13] ने रेवोत्तरस की चर्चा की है, जो पाटव चाक्र एवं स्थपति (मुख्य) था, जिसे सृञ्जयों ने निकाल बाहर किया था।[14]
  • पाणिनि[15] के एक वार्तिक ने 'महिष्मत्' की व्युत्पत्ति 'महिष' से की है, इसे सामान्यत: नर्मदा पर स्थित माहिष्मती का ही रूपान्तर माना गया है। इससे प्रकट होता है कि सम्भवत: वार्तिककार को (लगभग ई.पू. चौथी शताब्दी में ) नर्मदा का परिचय था।
  • रघुवंश[16] में रेवा (अर्थात् नर्मदा) के तट पर स्थित माहिष्मती को अनूप की राजधानी कहा गया है।

कहीं-कहीं साहित्य में इस नदी के पूर्वी या पहाड़ी भाग को रेवा (शाब्दिक अर्थ—उछलने-कूदने वाली) और पश्चिमी या मैदानी भाग को नर्मदा (शाब्दिक अर्थ—नर्म या सुख देने वाली) कहा गया है। (किन्तु महाभारत के उपर्युक्त उद्धरण में उदगम के निकट ही नदी को नर्मदा नाम से अभिहित किया गया है)। नर्मदा के तटवर्ती प्रदेश को भी कभी-कभी नर्मदा नाम से ही निर्दिष्ट किया जाता था। विष्णुपुराण के अनुसार इस प्रदेश पर शायद गुप्तकाल से पूर्व आभीर आदि शूद्रजातियों का अधिकार था।[17] वैसे नर्मदा का नदी के रूप में उल्लेख है।[18] [19]

नर्मदा की महत्ता

नर्मदा नदी

महाभारत एवं कतिपय पुराणों में नर्मदा की चर्चा बहुधा हुई है। मत्स्य पुराण[20], पद्म पुराण[21] कूर्म पुराण[22] ने नर्मदा की महत्ता एवं उसके तीर्थों का वर्णन किया है। मत्स्य पुराण[23] एवं पद्म पुराण आदि[24] में ऐसा आया है कि उस स्थान से जहाँ नर्मदा सागर में मिलती है, अमरकण्टक पर्वत तक, जहाँ से वह निकलती है, 10 करोड़ तीर्थ हैं। अग्नि पुराण[25] एवं कूर्म पुराण[26] के मत से क्रम से 60 करोड़ एवं 60 सहस्र तीर्थ हैं। नारदीय पुराण[27] का कथन है कि नर्मदा के दोनों तटों पर 400 मुख्य तीर्थ हैं[28], किन्तु अमरकण्टक से लेकर साढ़े तीन करोड़ हैं।[29] [30] वन पर्व[31] ने नर्मदा का उल्लेख गोदावरी एवं दक्षिण की अन्य नदियों के साथ किया है। उसी पर्व[32] में यह भी आया हैं कि नर्मदा आनर्त देश में है, यह प्रियंगु एवं आम्र-कुञ्जों से परिपूर्ण है, इसमें वेत्र लता के वितान पाये जाते हैं, यह पश्चिम की ओर बहती है और तीनों लोकों के सभी तीर्थ यहाँ (नर्मदा में) स्नान करने को आते हैं।[33] मत्स्य पुराण एवं पद्म पुराण ने उद्घोष किया है कि गंगा कनखल में एवं सरस्वती कुरुक्षेत्र में पवित्र है, किन्तु नर्मदा सभी स्थानों में, चाहे ग्राम हो या वन। नर्मदा केवल दर्शन-मात्र से पापी को पवित्र कर देती है; सरस्वती (तीन दिनों में) तीन स्नानों से, यमुना सात दिनों के स्नानों से और गंगा केवल एक स्नान से।[34] विष्णुधर्मसूत्र[35] ने श्राद्ध के योग्य तीर्थों की सूची दी हैं, जिसमें नर्मदा के सभी स्थलों को श्राद्ध के योग्य ठहराया है। नर्मदा को रुद्र के शरीर से निकली हुई कहा गया है, जो इस बात का कवित्वमय प्रकटीकरण मात्र है कि यह अमरकण्टक से निकली है जो महेश्वर एवं उनकी पत्नी का निवास-स्थल कहा जाता है।[36] [37] वायु पुराण[38] में ऐसा उद्घोषित है कि नदियों में श्रेष्ठ पुनीत नर्मदा पितरों की पुत्री है और इस पर किया गया श्राद्ध अक्षय होता है।[39] मत्स्य पुराण एवं कूर्म पुराण का कथन है कि यह 100 योजन लम्बी एवं दो योजन चौड़ी है।[40] प्रो.के.वी. रंगस्वामी आयंगर ने कहा है कि मत्स्य पुराण की बात ठीक है, क्योंकि नर्मदा वास्तव में लगभग 800 मील लम्बी है।[41] किन्तु दो योजन (अर्थात् उनके मतानुसार 16 मील) की चौड़ाई भ्रामक है। मत्स्य पुराण एवं कूर्म पुराण का कथन है कि नर्मदा अमरकण्टक से निकली हैं, जो कलिंग देश का पश्चिमी भाग है।[42]

नर्मदा नदी

मन्त्र का जप एवं उपवास

विष्णु पुराण ने व्यवस्था दी है कि यदि कोई रात एवं दिन में और जब अन्धकारपूर्ण स्थान में उसे जाना हो तब 'प्रात:काल नर्मदा को नमस्कार, रात्रि में नर्मदा को नमस्कार! हे नर्मदा, तुम्हें नमस्कार; मुझे विषधर साँपों से बचाओं' इस मन्त्र का जप करके चलता है तो उसे साँपों का भय नहीं होता।[43] कूर्म पुराण एवं मत्स्य पुराण में ऐसा कहा गया है कि जो अग्नि या जल में प्रवेश करके या उपवास करके (नर्मदा के किसी तीर्थ पर या अमरकण्टक पर) प्राण त्यागता है वह पुन: (इस संसार में) नहीं आता।[44]

प्राचीन लेख

टॉलमी ने नर्मदा को 'नमडोज' कहा है।[45] नर्मदा की चर्चा करने वाले शिलालेखों में एक अति प्राचीन लेख है एरन प्रस्तरस्तम्भाभिले, जो बुधगुप्त के काल[46] का है।[47] नर्मदा में मिलने वाली कतिपय नदियों के नाम मिलते हैं, यथा-

उपतीर्थ

सरदार सरोवर बाँध, नर्मदा नदी

बहुत-से उपतीर्थों के नाम आते हैं जिनमें दो या तीन का यहाँ उल्लेख किया जायगा। जो है-

  • महेश्वरतीर्थ (अर्थात् ओंकार), जहाँ से एक तीर द्वारा रुद्र ने बाणासुर की तीन नगरियाँ जला डालीं[54],
  • शुक्ल-तीर्थ[55],
  • भृगुतीर्थ:-जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य पाप-मुक्त हो जाता है, जिसमें स्नान करने से स्वर्ग मिलता है और जहाँ मरने से संसार में पुन: लौटना नहीं पड़ता,
  • जामदग्न्य तीर्थ:-जहाँ नर्मदा समुद्र में गिरती है और जहाँ भगवान जनार्दन ने पूर्णता प्राप्त की।

अमरकण्टक पर्वत एक तीर्थ है जो ब्रह्महत्या के साथ अन्य पापों का मोचन करता है और यह विस्तार में एक योजन है।[56] नर्मदा का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तीर्थ है माहिष्मती, जिसके स्थल के विषय में विद्वानों में मतभेद रहा है। अधिकांश लेखक यही कहते हैं कि यह ओंकार मान्धाता है जो इन्दौर से लगभग 40 मील दक्षिण नर्मदा में एक द्वीप है। इसका इतिहास पुराना है। बौद्ध ग्रन्थों में ऐसा आया है कि अशोक महान् के राज्यकाल[57] में मोग्गलिपुत्त तिस्स ने कई देशों में धार्मिक दूत-मण्डल भेजे थे, जिनमें एक दूतमण्डल महिषमण्डल को भी भेजा गया था। डॉ. फ्लीट ने महिषमण्डल को माहिष्मती कहा है।[58] महाभाष्यकार को माहिष्मती का ज्ञान था[59] कालिदास ने इसे रेवा से घिरी हुई कहा है।[60] उद्योगपर्व[61], अनुशासन पर्व[62], भागवत पुराण[63] एवं पद्म पुराण[64] में माहिष्मती को नर्मदा या रेवा पर स्थित माना गया है। एक अन्य प्राचीन नगर है भरुकच्छ या भृगुकच्छ (आधुनिक भड़ोच)।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद्म पुराण, आदिखण्ड 13-6-7
  2. पद्म पुराण, आदिखण्ड 21/42
  3. ’रेवातुनर्मदा सोमोद्भवा मेकलकन्यका’, पौराणिक अनुश्रुति
  4. ’तथेत्युपस्यृश्य पय: पवित्रं सोमोद्भवाया: सरितो नृसोम:’ रघुवंश 5,59
  5. 'स नर्मदारोधसि सीकराद्रैर्मरुद्भिरानर्तितनक्तमाले, निवेशयामास विलंघिताध्वा क्लांतं रजोधूसरकेतू सैन्यम्’, रघुवंश 5,42
  6. दे. रेवा
  7. ’पश्यमानस्ततो विध्यं रावणोनर्मदां ययौ, चलोपलजलां पुण्यां पश्चिमोदधिगामिनीम्’, वाल्मीकि रामायण-उत्तरकाण्ड, 31,19
  8. ’चकवाकै: सकारण्डै: सहंसजलकुक्कुटै:, सारसैश्च सदामत्तै: कूजदिभ: सुसमावृताम्।
    फुल्लद्रु मकृत्तोत्तंसां चकवाकयुगस्तनीम्, विस्तीर्णपुलिनश्रोणीं हंसावलि सुमेखलाम्।
    पुष्परेण्वनुलिप्तांगींजलफेनामलांशुकाम् जलावगाहसुस्पर्शां फुल्लोत्पल शुभेक्षणाम् पुष्पकादवरुह् याशु नर्मदां सरितां वराम्, इष्टामिव वरां नारीमवगाह्य दशानन्:’, उत्तरकाण्ड 31,21-22-23-24
  9. ’पुरश्चपश्चाच्च यथा महानदी तमृक्षवन्तं गिरिमेत्य नर्मदा’, शान्तिपर्व 52,32
  10. दे. वनपर्व 82,52
  11. ’गोदावरीं नर्मदां च बाहुदां च महानदीम्’, भीष्मपर्व 9,14
  12. ’तापी रेवा सरसा नर्मदा चर्मण्वती सिंधुरन्ध: शोणश्च नदौ’, श्रीमद्भागवत 5,19,18
  13. शतपथ ब्राह्मण, 12.9.3.1
  14. रेवोत्तरसमुह पाटवं चाक्रं स्थपतिसृञ्जया अपरुरुधु:। शतपथब्राह्मण (12.9.3.1)।
  15. पाणिनि 4.2.87
  16. रघुवंश 96.43
  17. ’नर्मदा मरुभूविषयांश्च-आभीर शूद्राद्या: भोक्ष्यन्ति’, विष्णुपुराण 4,24
  18. तैश्चोक्तं पुरुकुत्साय भूभुजे नर्मदा तटे, सारस्वताय तेनापि मह्यं सारस्वतेन च’; ‘नर्मदा सुरसाद्याश्च नद्यो विंध्याद्रिनिर्गता;’, विष्णु पुराण 1,2,9; 2,3,11
  19. दे. रेवा, सोमोद्भवा।
  20. अध्याय 186-194,554 श्लोक
  21. आदिखण्ड, अध्याय 13-23, 739 श्लोक, जिनमें बहुत से मत्स्य पुराण के ही श्लोक हैं
  22. उत्तरार्ध, अध्याय 40-42, 189 श्लोक
  23. मत्स्य पुराण 194.45
  24. पद्म पुराण, 21.44
  25. अग्नि पुराण 113.2
  26. कूर्म पुराण, 2.40.13
  27. उत्तरार्ध, अध्याय 77
  28. श्लोक 1
  29. श्लोक 4 एवं 27-28
  30. यद्यपि रेवा एवं नर्मदा सामान्यत: समानार्थक कही जाती हैं, किन्तु भागवत पुराण, 5.19.18 ने इन्हें पृथक्-पृथक् (तापी-रेवा-सुरसा-नर्मदा) कहा है, और वामन पुराण, 13.25 एवं 29-30 का कथन है कि रेवा विन्ध्य से तथा नर्मदा ऋक्षपाद से निकली है। सार्धत्रिकोटितीर्थानि गदितानीह वायुना। दिवि भुव्यन्तरिक्षे च रेवायां तानि सन्ति च॥ नारदीय पुराण (उत्तर, 77.27-28)।
  31. वन पर्व, 188.103 एवं 222.24
  32. वन पर्व, 89.1-3
  33. ऐसा लगता है कि प्राचीन काल में गुजरात एवं काठियावाड़ को आनर्त कहा जाता था। उद्योग पर्व, 97-6 में द्वारका को आनर्त–नगरी कहा गया है। नर्मदा आनर्त में होकर बहती मानी गयी है अत: ऐसी कल्पना की जाती है कि महाभारत के काल में आनर्त के अन्तर्गत गुजरात का दक्षिणीभाग एवं काठियावाड़ दोनों सम्मिलित थे।
  34. मत्स्य पुराण, 186.10-11=पद्म पुराण, आदि, 13.6-7=कूर्म पुराण 2.40.7-8
  35. विष्णुधर्मसूत्र, 85.8
  36. मत्स्य पुराण, 188.19
  37. नर्मदा सरितां श्रेंष्ठा रुद्रदेहाद्विनि:सृता। तारयेंत्सर्वभूतानि स्थावराणि चराणि च॥ मत्स्य पुराण (190.17= कूर्म पुराण 2.40.5= पद्म पुराण, आदिखण्ड 17.13)।
  38. वायु पुराण, 977.32
  39. पितृणां दुहिता पुण्या नर्मदा सरितां वरा। तत्र श्राद्धानि दत्तानि अक्षयाणि भवन्त्युत॥ वायुपुराण (77.32)।
  40. योजनानां शतं सग्रं श्रूयते सरिदुत्तमा। विस्तारेण तु राजेन्द्र योजनद्वयमायता॥ कूर्म पुराण (2.40.12=मत्स्य पुराण 186.24-25)। और देखिए अग्नि पुराण (113।2)।
  41. उनके द्वारा सम्पादित कल्पतरु, पृ. 199
  42. कलिंगदेशपश्चार्धे पर्वतेऽमरकण्टके। पुण्या च त्रिषु लोकेषु रमणीया मनोरमा॥ कूर्म पुराण (2.40.9) एवं मत्स्य पुराण (186.12)।
  43. नर्मदायै नम: प्रातर्नर्मदायै नमो निशि। नमोस्तु नर्मदे तुभ्यं त्राहि माँ विषसर्पत:॥ विष्णुपुराण (4.3.12-13)।
  44. अनाशकं तु य: कुर्यात्तस्मिंस्तीर्थे नराधिप। गर्भवासे तु राजेन्द्र न पुनर्जायतें पुमान् ॥ मत्स्य. (194.29-30); परित्यजति य: प्राणान् पर्वत्तेऽमरकण्टके। वर्षकोटिशतं साग्रं रुद्रलोके महीयतें॥ मत्स्य पुराण (186.53-54)।
  45. पृ0 102
  46. गुप्त संवत् 165= 484-85 ई.
  47. देखिए कार्पस इंस्क्रिप्शनम इण्डिकेरम जिल्द 3, पृ. 89
  48. दक्षिणी तट पर, मत्स्य पुराण 186.40 एवं पद्म पुराण 1.13.35
  49. मत्स्य पुराण 186.46= पद्म पुराण 2.35-39
  50. मत्स्य पुराण 191.42-43 एवं पद्म पुराण 1.18.44
  51. मत्स्य पुराण 191.49 एवं पद्म पुराण 1.18.47
  52. मत्स्य पुराण 189.12-13 एवं पद्म पुराण 1.16.6
  53. नर्मदा की उत्तरी शाखा जहाँ 'ओंकार' नामक द्वीप अवस्थित है 'कावेंरी' नाम से प्रसिद्ध है।
  54. मत्स्य पुराण 188.2 एवं पद्म पुराण 1.15.2
  55. मत्स्य पुराण 192.3 द्वारा अति प्रशंसित और जिसके बारे में यह कहा जाता है कि राजर्षि चाणक्य ने यहाँ सिद्धि प्राप्त की थी
  56. मत्स्य पुराण 189.89 एवं 98
  57. लगभग 274 ई.पू.
  58. जे. आर. ए. एस्., पृ. 425-477, सन् 1910
  59. पाणिनि 3.1.26, वार्तिक 10
  60. रघुवंश 6.43
  61. उद्योगपर्व, 19.23-24 एवं 166.4
  62. अनुशासन पर्व, 166.4
  63. भागवतपुराण, 10.79.21
  64. पद्म पुराण, 2.92.32

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