वंदना जी के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, जैसे- कादम्बिनी, बिंदिया, पाखी, हिंदी चेतना, शब्दांकन, गर्भनाल, उदंती, अट्टहास, आधुनिक साहित्य, नव्या, सिम्पली जयपुर आदि के अलावा विभिन्न ई-पत्रिकाओं में रचनाएँ, कहानियां, आलेख आदि प्रकाशित हो चुके हैं।
अब कैसे बीते ये उम्र सारी
अब तो लगी है प्यारे लगन तुम्हारी
लगन तुम्हारी , लगन तुम्हारी
अब कैसे बीते -------
1.) छोड़ गए हो मझधार कन्हाई
रो रो हारी ये गोपियाँ बेचारीं
अब कहाँ जाएँ , बिरहा की मारीं
अब तो लगी है मोहन लगन तुम्हारी
अब कैसे बीते ----------
2.) दिन हैं पतझड़ रात वीरानी
तुम्हारे बिना न लागे , कोई ऋतू प्यारी
दरस दीवानी फिरें , गली गली मारीं
अब तो लगी है श्याम लगन तुम्हारी
अब कैसे बीते --------
3.) मन की कुञ्ज गलिन में कब आओगे मुरारी
सूनी पड़ी है प्यारे , अटरिया हमारी
कहाँ खोजें अब तुम्हें हम, किस्मत की मारीं
अब तो लगी है प्यारे लगन तुम्हारी
अब कैसे बीते ये उमरिया सारी
4.) घर आँगन न , अब भाये बिहारी
बिरहा की घड़ियाँ दहकें रह रह मुरारी
किस आस पे गुजरे, अब ये उम्र सारी
कहाँ छोड़ गए हो , हे कृष्ण मुरारी
गली गली फिरतीं , बिरहा की मारी